Home पशुपालन Animal Disease: इन 18 प्वाइंट्स में पढ़ें गलाघोंटू बीमारी के लक्षण, रोकथाम और उपचार का तरीका
पशुपालन

Animal Disease: इन 18 प्वाइंट्स में पढ़ें गलाघोंटू बीमारी के लक्षण, रोकथाम और उपचार का तरीका

livestock animal news
प्रतीकात्मक फोटो.

नई दिल्ली. आमतौर पर भैंस को गलाघोंटू बीमारी होती है. इसका वैज्ञानिक नाम हेमोरेजिक सेप्टिसीमिया भी है. ये इतनी खतरनाक बीमारी है कि इसमें अक्सर मवेशियों की मौत भी हो जाती है. पशु विशेषज्ञों का कहना है कि गलघोंटू बीमारी उन स्थानों पर पशुओं में अधिक होती है, जहां पर बारिश का पानी इकट्ठा हो जाता है. इस रोग के बैक्टीरिया गंदे स्थान पर रखे जाने वाले पशुओं तथा लंबी यात्रा या अधिक काम करने से थके पशुओं पर जल्दी हमला कर देते हैं. जबकि गंभीर बात ये भी है कि रोग का फैलाव बहुत तेजी से होता है.

एक्सपर्ट के मुताबिक हेमोरेजिक सेप्टीसीमिया (एचएस), मवेशियों और भैंसों की एक बहुत ही खतरनाक बीमारी है. कई जगहों पर इस बीमारी को गलघोंटू के अलावा ‘घूरखा’, ‘घोंटुआ’, ‘अषढ़िया’, ‘डकहा’ आदि नामों से भी जाना जाता है. जिसका वक्त रहते इलाज न किये जाने पर पशुओं की मौत होने से पशुपालकों को बहुत नुकसान उठाना पड़ता है. इसलिए जरूरी है कि इस बीमारी का वक्त से इलाज किया जाए.

बीमारी की हर डिटेल पढ़ें
यह गाय भैंसों में होने वाली गोवामु जनित बीमारी है जो आमतौर पर बरसात के मौसम में होती है.

मृत्युदर 80 फीसदी तक हो सकता है.

इस बीमारी के बैक्टीरिया आई व नम अवस्था में लंबे समय तक तक जिंदा रहते हैं.

क्या हैं इसके लक्षण
तेज बुखार, दूध उत्पादन में अचानक कमी.

लार गिरना और नाक से पानी बहना.

गले में बहुत ज्यादा सूजन.

सांस लेने में परेशानी, पशु धुर पुर्र की आवाज निकालता है.

लक्षण दिखने के 1-2 दिनों के अंदर पशुओं की मौत हो जाती है.

भैस और गायों की तुलना में ज्यादा संवेदनशील होतें हैं.

पशु खासतौर पर भैंस, लक्षण आने के बाद शायद ही बच पाते हैं.

बीमारी-विशेष क्षेत्र में ज्यादातर मृत्यु अधिक आयु वाले बछड़ों व कम आयु वाले वयस्कों में होती है.

कैसे करें रोकथाम
बीमार पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग करना चाहिए और उनका दाना, चारा और पानी की अलग व्यवस्था करनी चाहिए.

बरसात के मौसम में ज्यादा पशुओं को एक जगह पर एकत्र होने से बचाएं.

खास क्षेत्र में 6 माह व उससे अधिक उम्र के सभी पशुओं को बरसात शुरू होने के के पहले ही टीकाकरण करवा देना चाहिए.

उपचार के बारे में भी पढ़ें
जब बुखार की शुरूआत होती है तभी इलाज करने पर शायद पशु की जान बच जाए, वरना इस रोग में उपचार प्रभावी नहीं है.

लक्षण विकसित होने के बाद कुछ ही पशु की जान बच पाती है.

संक्रमण की शुरुआती अवस्था में उपचार न करने पर मृत्यु दर 100 प्रतिशत पहुंच जाती है.

Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Articles

langda bukhar kya hota hai
पशुपालन

Dairy Farm: 10 प्वाइंट्स में जानें कैसा होना चाहिए डेयरी फार्म का डिजाइन ताकि हैल्दी रहे पशु

क्षेत्र की जलवायु भी महत्वपूर्ण है और पशु आवास सुविधाओं के निर्माण...

langda bukhar kya hota hai
पशुपालन

Animal Husbandry: पशुओं की अच्छी सेहत और प्रोडक्शन के लिए ठंड में करें इन 14 टिप्स पर काम

वहीं सरकारी योजनाओं का फायदा उठाकर किसान पशुपालन में आने वाले जोखिम...