नई दिल्ली. रूरल एरिया में मुर्गियां फीड और पानी के लिए बाहर जाती हैं. इसके कारण आंतरिक परजीवी ग्रामीण मुर्गियों में एक पुरानी समस्या है. पोल्ट्री फार्म में स्वच्छता की कमी और कीड़ों की मौजूदगी, कुछ परजीवी के लिए मेज़बान हैं. आंतरिक परजीवी अक्सर फ्री रेंज, घर-आंगन पक्षियों में एक समस्या है. जिससे विभिन्न कीड़ों को खाते हैं और जंगली पक्षियों के साथ संपर्क में आते हैं. आंतरिक परजीवी जैसे कि निर्मेटोड्स (गोल कृमि) और सेस्टोड (फीता कृमि) पोल्ट्री को प्रभावित करते हैं. फीता कृमि की तुलना में गोल कृमि की वजह से नुकसान अधिक हो सकता है.
मुर्गियों का सबसे सामान्य निमॅटोड, गोल कृमि है और मुर्गियों के उत्पादन पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है. तीन महीने तक की उम्र की मुर्गियों में परजीवी होने की संभावना अधिक होती है और इसमें काफी मौत भी हो सकती है. परजीवी आमतौर पर कुपोषित पक्षियों को प्रभावित करते हैं. वयस्क परजीवी आंतों के लुमेन में रहते हैं और आंत में रुकावट पैदा कर सकते हैं. जबकि लार्वा चरण आंत, ऐनीमिया और मृत्यु दर के लिए आंतों के श्लेष्मा झिल्ली पर आक्रमण करते हैं. वहीं कीड़े अंडाशय में एंट्री करते हैं और अंडों के अंदर पाए जाते हैं.
ऐसे करें इलाज
गौरतलब है कि मुर्गियों के बीट में लक्षणों और परजीवी के अंडों की उपस्थिति और कुछ समय के वयस्क कीड़ों से इन्फेक्शन का निदान किया जा सकता है. इसके लिए पीपराजीन नमक का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है और पीने के पानी में प्रति पक्षी 50 से 100 मिलीग्राम अथवा 0.1 से 0.2 फीसदी एकल मौखिक खुराक के रूप में दिया जा सकता है. फेनबेंडाजोल 8 से 10 मिली ग्राम, किलोग्राम फीड में 3 से 4 दिन तक टेट्रामिसोल 40 मिली ग्राम प्रति किलोग्राम, लेवामिसोल 25 मिली ग्राम एक किलोग्राम किलो ग्राम आहर में बहुत प्रभावी होता है.
इस बीमारी का है कारण
हिटेराकिस गेलिनेरम एक और गोल कृमि होता है. जिसका जीवन चक्र डायरेक्ट होता है और मुर्गी के सीकम में पाया जाता है. यह एस्केरिडिया गैलाई की तुलना में कम या फिर कोई नुकसान नहीं पहुंचाता है, लेकिन एक प्रोटोज़ोन परजीवी हिस्टोमोनास मॅलेग्रिडीस के फैलाव में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो टर्कियों में “काली सिर की बीमारी” का कारण बनती है. मुर्गियों के बीट में बूढ़े परजीवी और ठेठ अंडों की उपस्थिति से इन्फेक्शन का इलाज किया जा सकता है. फेनबेंडाजोल और टेट्रामिसोल औषधि परजीवी के खिलाफ प्रभावी होती हैं.
कम उम्र की मुर्गियों पर करता है अटैक
सिन्गेमस ट्रैकिया (गैपवॉर्म) खुले परिस्थितियों में पाले गए पक्षियों के ट्रैकिया में पाए जाते हैं और सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से केंचुओं के माध्यम से मुर्गियों में आते हैं. परजीवी सांस संबंधी रुकावट का कारण बनता है. जिसके चलते उत्पादन के साथ-साथ सांस लेने में घुटन होती है. परजीवी कमज़ोरी के अलावा न्यूमोनिया का कारण हो सकते हैं. कम उम्र की मुर्गियों में लक्षण अधिक गंभीर होते हैं. मल में ठेठ अंडों का आना, निदान में सहायक होता है. फैन्वेंडाजोल और थाईबेंडाजोल @ 0.1 से 4%, गैपवॉर्म के खिलाफ प्रभावी हैं.
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