नई दिल्ली. बकरी पालन सदियों से किया जाने वाला कारोबार है. बहुत से लोग अपने घरों में एक दो बकरी तो यूहीं पाल लेते हैं. हालांकि बकरी पालन को व्यवस्थित ढंग से किया जाए तो ये बहुत ही मुनाफे का कारोबार है. आज बहुत से लोग ट्रेनिंग लेकर बकरी पालन से जुड़े हैं और यही वजह है कि उनका सालाना टर्नओवर लाखों और करोड़ों में है. अन्य पशुओं की तरह बकरियों को भी कई बीमारी लग जाती है. बकरियों को बीमारी लगने पर उनके बच्चों में मृत्युदर बहुत ज्यादा है. इसलिए बकरियों को बीमारी से बचाना जरूरी होता है.
बकरियों को दो तरह से बीमारी से बचाया जा सकता है. एक तरीका है वैक्सीनेशन का और दूसरा तरीका है कृमिनाशक दवाएं यानि कीड़े की दवाओं के जरिए. बकरियों को समय-समय पर टीकाकरण कराना चाहिए. साथ ही कृमिनाशक दवाएं भी दी जानी चाहिए ताकि वो बीमारियों से बच जाएं. इस आर्टिकल में हम आपको बकरियों के टीकाकरण कार्यक्रम और कृमिनाशक प्रोग्राम की जानकारी दे रहे हैं जो बकरी पालकों के लिए बेहद ही अहम है.
इन बीमारियों के लिए पढ़ें वैक्सीन प्रोग्राम
बकरियों को बीमारी से बचने के लिए खुरपका-मुंहपका बीमारी का टीका 2 से 3 महीने की उम्र पर लगाया जाता है. इसका बूस्टर डोज 2 से 4 माह बाद लगाना चाहिए. इसके बाद हर 6 महीने पर यह टीका लगाया जाता है. बकरी के प्लेग पीपीआर रोग के लिए 4 महीने की उम्र पर टीका लगाना चाहिए. इसमें बूस्टर डोज लगाने की जरूरत नहीं होती. इसके बाद 4 साल की उम्र पर वैक्सीन लगवाई जा सकती है. बकरी के चेचक बीमारी में तीन से चार महीने की उम्र पर टीका लगाना चाहिए. बूस्टर डोज तीन सप्ताह के बाद लगाना चाहिए और 12 महीने के बाद फिर टीका लगवाना चाहिए.
गलाघोटू के लिए कब लगवाएं टीका
आंतो में प्वाइजिंग के लिए यानि इंटेरोटोक्सीमिया में 3 महीने की उम्र पर इसकी वैक्सीन लगती है. उसके बाद बूस्टर डोज को तीन हफ्ते के बाद लगाना चाहिए. हर साल दो तक 3 सप्ताह के अंतराल पर इस बीमारी के लिए वैक्सीन लगाई जाती है. गलाघोटू बीमारी में 3 से 6 महीने की उम्र पर पहला टीका लगवा देना चाहिए. जबकि बूस्टर डोज 6 महीने के बाद और हर साल एक टीका लगवाने से बकरी सेफ हो जाएगी.
कृमिनाशक कार्यक्रम के बारे में जानें
कृमिनशाक दवा में काक्सीडियोसिस 3 से 2 माह के उम्र में 3 से 5 दिन तक काक्सीमारक दवा देना चाहिए. फिर 6 महीने की उम्र पर देना चाहिए. इसमें ध्यान देने वाली बात यह है की दवा 5 दिन तक निर्धारित मात्रा में दी जाती है. आंतरिक परजीवी के लिए तीन माह की उम्र में और बारिश जब शुरू हो तब सभी पशुओं के एक साथ दवा देनी चाहिए. बाहरी परजीवी के लिए सभी उम्र में वर्ष में काम से कम तीन बार या संक्रमण बढ़ने पर दिया जाना चाहिए. सभी बकरियों को एक साथ पिलाना चाहिए.
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