नई दिल्ली. भारत में पशुपालन सेक्टर में ग्रामीण इलाके में 6.7 लोग शहरी क्षेत्रों में 5.5 प्रतिशत लोग पशुपालन क्षेत्र में अपना योगदान रहे रहे हैं. जबकि देश की पचास प्रतिशत से ज्यादा जनसंख्या की जीविका तथा 21 प्रतिशत जीडीपी कृषि और उसके बाद पशुपालन पर ही निर्भर है. इसलिए सरकार भी चाहती है कि पशुपालन को बढ़ावा मिले तो कि किसानों की इनकम में इजाफा किया जा सके. हालांकि यह तभी संभव है जब खेतों में भरपूर फसल उनाई जाए और पशु स्वस्थ हों. तथा अधिक उत्पादन क्षमता रखते हों. अधिक उत्पादन, चाहे वो दूध या दूध से बचे अनेक आहार हों, मांस हो या शारीरिक क्षमता हो, किसान के लिए खुशहाली का मुख्य स्त्रोत हैं, क्योंकि उसकी जीविका का आधार यही है.
पंडित दीनदयाल उपाध्याय पशुचिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय एवं गो-अनुसंधान संस्थान, मथुरा के सर्वजीत यादव, अमित सिंह एव संजीव कुमार सिंह की रिपोर्ट के मुताबिक केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) के अनुमानों के अनुसार देश में दूध व दूध से बने प्रोडक्ट की ज्यादा मांग होने के बावजूद भी आज तक सघन पशुपालन एक व्यवसाय के रूप में विकसित नहीं हुआ सका है. पशुपालक एक या दो दुधारू पशु रखते हैं, तथा उनका ज्यादातर ध्यान कृषि कार्यों पर ही रहता है. जबकि दिक्कत ये भी है कि अधिकतर किसान पशुओं के आवास व दाने-चारे पर उचित ध्यान नहीं देते.
30 करोड है गाय और भैंस की संख्या
वहीं पशुओं को कृषि प्रोडक्ट पर ही रखा जाता है. यानि खाने के लिए जरूरी पोषक तत्व नहीं दिए जाते हें. इस वजह से ऐसे पशु क्षमता होते हुए भी अधिक दूध का उत्पादन नहीं कर पाते. गौरतलब है कि हमारे देश में गाय एवं भैसों की संख्या 30 करोड़ है. जिसमें 34 गाय एवं 12 भैंस की शुद्ध नस्लें पायी जाती हैं और तो और भैंस की सर्वश्रेष्ठ नस्लें भी हमारे देश में ही हैं. विश्व की लगभग 15 प्रतिशत गाय तथा 50 प्रतिशत भैंस हमारे देश में ही हैं. लेकिन हम उत्पादन के हिसाब से दुनियां से काफी पीछे हैं और इसका मुख्य कारण है कि देश की लगभग 80 प्रतिशत गाय एवं भैंस गैर नस्लीय या देशी है जिसको किसी विशेष नस्ल की श्रेणी में नहीं रखा गया है.
अमेरिका और डेनमार्क से काफी हैं पीछे
ऐसे पशुओं से काफी कम दूध प्राप्त होता है. इसके बावजूद हमारे देश के अच्छे डेयरी फार्मों पर भी एक गाय या भैंस से 1500 लीटर प्रति ब्यात दूध हासिल हो पाता है जबकि अमेरिका या डेनमार्क जैसे देशो में गायों का औसत 5000 से 6000 लीटर दूध प्रति ब्यात का है. अच्छे से अच्छा प्रबंध एवं पोषण देकर भी हम प्रत्येक पशु का दूध उत्पादन एक सीमा तक ही बढ़ा सकते हैं. क्योंकि प्रत्येक पशु की उत्पादन की एक निर्धारित क्षमता होती है और यह क्षमता जेनरेशन के कारण है और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में प्रजनन क्रिया द्वारा आती या जाती है.
वैज्ञानिक तरीका अपनाने की जरूरत
एक्सपर्ट के मुताबिक शरीर में हर एक क्वालिटी को प्रेजेंट करने तथा उनके परफार्मेंस के निर्देशन के लिए कुछ फंडामेंटल रासायनिक इकाइयां होती हैं. जिनको जीन कहते हैं, जो कि क्वालिटी सोर्स में पाये जाते हैं. इसलिए वैज्ञानिक तरीकों से प्रजनन कराकर हम गायों की भावी संतति में अधिक दूध देने वाली जीनों का अनुपात बढ़ा कर नस्ल सुधार कर सकते हैं. साथ ही पशुओं के रख-रखाव एवं वैज्ञानिक पशुपोषण करने के उपरान्त ही उनकी उत्पादकता बढ़ायी जा सकती है. वहीं पशुपालन में यह जरूरी है कि पशुओं की आवास व्यवस्था, प्रबन्ध व्यवस्था एवं पोषण की व्यवस्था उत्तम दर्जे की होने पर ही उत्पादन स्थिर बना रहेगा.
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