नई दिल्ली. भेड़ पालन सी केवल ऊन और मांस ही हासिल नहीं किया जाता है, बल्कि यह किसानों को अच्छी खासी आमदनी का जरिया भी है. इसके अलावा भेड़ की खाद भी खेतों के लिए महत्वपूर्ण होती है, जो कृषि उत्पादन को बढ़ावा देती है. भेड़ पालन करने वाले किसानों को भेड़ के दाना पानी पर भी बहुत ज्यादा खर्च करने की जरूरत नहीं होती है. ऐसी जगह चरत है, जहां पर अन्य पशु नहीं जा पाते हैं. कई गैरजरूरी खरपतवार का भी इस्तेमाल भेड़ अपने खाने के तौर पर करती है. मोटे तौर पर प्रतिदिन 4000 से 5000 की आय भेड़ से कमाई जा सकती है. भेड़ 200 रुपये किलोग्राम के हिसाब से बेची जाती है हर राज्य में प्रति किलो वजन के लिए अलग-अलग रेट भी होता है. अगर एक पशुपालक 100 या उससे अधिक भेड़ वाले तो जबरदस्त फायदा उठा सकता है.
भारत में भेड़ पालन सदियों से किया जाता है और अच्छी आय का साधन भी है. भेड़ की आबादी के मामले में भारत विश्व के छठे स्थान पर है. हमारे देश में लगभग 4.50 करोड़ भेड़े पाई जाती है. भौगोलिक और जलवायु सम्बन्धी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए भारत के भेड़ पालक क्षेत्रों को निम्नलिखित तीन विभिन्न भागों में बांटा जा सकता है.
इन भेड़ों से मिलता है बढ़ियां ऊन
हिमालय प्रदेश जिसमें कश्मीर, हि०प्र०, पंजाब व उत्तर प्रदेश के पहाड़ी जिले शामिल है. इन क्षेत्रों के भेड़ पालक सर्दियों में भेड़ों को निचले स्थानों में ले आतें है और गर्मियों में ऊंचे स्थानों पर चले जाते हैं. इन भेड़ों से अच्छी किस्म की ऊन प्राप्त होती है जो कि गर्म कपड़े बनाने के काम आती है. इस क्षेत्र की प्रमुख नस्लें है गद्दी, रामपुर बुशहर, बकरवाल और गुरेज प्रमुख हैं.
पश्चिमी प्रदेश की भेड़
खुश्क पश्चिमी प्रदेश जिसमें राजस्थान, दक्षिण पूर्व, पंजाब, गुजरात व पश्चिम उतर प्रदेश के कुछ इलाके शामिल है. इस क्षेत्र की भेड़ों की ऊन का रेशा मोटा होता है. तथा यह मुख्यतः कालीन, गलीचे आदि बनाने के काम आता है. कालीन बनाने के लिए भारत से बाहर भेजी जाने वाली कुल ऊन का तिहाई भाग राजस्थान की भेड़ों से प्राप्त होता है. इस क्षेत्र में पाई जाने वाली भेड़ों की खास नस्लें है. चोकला, मोगरा, मारवाड़ी, नाली आदि.
दक्षिणी प्रदेश की भेड़
दक्षिणी प्रदेश के विंध्य पहाड़ों से ले कर नीलगीरी तक फैले हुए दक्षिणी प्रदेशों में भेड़ों का घनत्व उत्तर भारत के मैदानों की अपेक्षा अधिक है. आम तौर पर इस क्षेत्र की भेड़ों की ऊन मुख्य रूप से काले और भूरे रंग की होती है. तथा अच्छी किस्म की नहीं होती. मान्डया नस्ल की भेड़े मांस के लिए प्रसिद्ध है. इस क्षेत्र में पाई जाने वाली नस्ले इस प्रकार है. जिसमें दक्कनी, नेलोर, बेलरी, मान्डया मुख्य हैं.
Leave a comment