नई दिल्ली. अब सभी मछलियों को दाना खिलाने की जिम्मेदारी ड्रोन की होगी. क्योंकि मछलियों को दाना खिलाना अपने आप में बहुत ही कठिन काम होता है. दाना देते वक्त ये ख्याल रखना पड़ता है कि सभी मछलियों को बराबर दाना मिल रहा है या नहीं. जबकि दवा का छिड़काव करते वक्त भी ऐहतियात बरतनी होती है, जबकि लाख कोशिशों के बाद बहुत सारी मछलियां छूट जाती हैं. यही वजह है कि ड्रोन ही सभी मछलियों तक दवा पहुंचाने में कारगर साबित होगा. इससे एक जगह बैठकर बीमार मछलियों के बारे में पता लगाया जा सकेगा. वैसे तो इस तरह के ड्रोन की कीमत बाजार में 5.5 लाख रुपये स्टार्ट होती है लेकिन उसके बाद आप जैसे फीचर चाहते हैं उसी हिसाब से उसके रेट तय होगा. दरअसल, जैसे आपको ड्रोन में रडार चाहिए, कैमरा और सेंसर चाहिए तो उसी हिसाब से रेट कम ज्यादा होगा.
बिना ड्रोन से तालाब के एक कोने पर तो कभी दूसरे और तीसरे कोने पर जाकर मछलियों को हाथ से दाना खिलाना होता है. ड्रोन बनाने वाली एक कंपनी के एमडी शंकर गोयंका इसकी जानकारी देते हुए कहा कि हर मछली पालक की यही कोशिश होती है कि सभी मछलियों को बराबर दाना मिले लेकिन ऐसा करना मुश्किल होता है. जिससे कुछ मछली मोटी ताजी तो कुछ कमजोर ही रह जाती हैं. यही वजह है कि ताकतवर मछली तो आगे आ जाती है जबकि कमजोर मछली पीछे रह जाती है.
कहने का मतलब ये है कि उसे भरपेट खाना नहीं मिल पाता. इसका मछली पालक को भी बड़ा नुकसान होता है क्योंकि दूसरी मछलियों के मुकाबले वो कम वजन की ही रह जाती है, लेकिन ड्रोन से जब दाना तालाब में डाला जाता है तो वो बराबर सभी मछलियों को मिलता है. शंकर गोयंका ने कहा कि इसी तरह से तालाब में दवा का छिड़काव करते वक्त यह ख्याल रखना पड़ता है कि सभी मछलियां दवा मिले. हाथ से दवा छिड़काव करने पर भी दाना देने वाली स्थिति हो जाती है. तालाब में कुछ न कुछ मछलियां छूट ही जाती हैं. बीमारी से अगर सभी मछली ठीक हो जाएं और एक भी बीमार रह जाए तो दूसरी मछलियों को बीमार कर देती है.
वहीं ड्रोन से खेत की तरह दवाई भी पूरे हिस्से में छिड़क दी जाती है और तालाब की हर एक मछली को दवा का डोज मिल जाता है. जबकि ड्रोन कैमरे पर लगे कैमरे से बीमार मछलियों पर लाल धब्बे वाली मछलियों को देखा जा सकता है. मछली तालाब के बीच में है. आपको किनारे से दिखाई नहीं दे रही है तो ऐसे में ड्रोन उसे आपके मोबाइल और लैपटॉप पर देख सकते हैं.
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