नई दिल्ली. परली जलाने के कई नुकसान है और यह एक समस्या है. पराली जलाने से वायुमंडलीय कर्ण पदार्थ और सूक्ष्म गैसों का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, जो स्थानीय और क्षेत्रीय जलवायु को काफी प्रभावित करता है. वायु प्रदूषण के कारण लोगों की सेहत बिगड़ सकती है. इस वजह से हृदय रोग, स्ट्रोक, क्रोनिक, पल्मोनरी डिजीज, फेफड़े का कैंसर और सांस लेने परेशानी आदि का खतरा है. यही वजह है कि भारतीय दंड संहिता आईपीसी की धारा 188 के तहत पराली जलाने को अपराध बनाया गया है.
साल 1981 के वायु रोकथाम प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम के तहत अपराध भी कहा गया था. बावजूद इसके किसान पराली जलाते हैं. क्योंकि उन्हें पता नहीं होता कि फसल के बचे इस अवशेष को कैसे डीकंपोज करें. जबकि पराली जलाने से वायुमंडल और कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और मीथेन गैसों की मात्रा बढ़ जाती है. साथ ही खेत की मिट्टी में पाए जाने वाला केंचुआ एवं राइजोबिया बैक्टीरिया भी मर जाते हैं.
पुआल से बना सकते हैं चारा
इस वजह से एक्सपर्ट पराली न जलाने की सलाह देते हैं. जबकि पुआल से पशुओं के चारा भी बनाया जा सकता है और उसका सही उपयोग किया जा सकता है. बिहार सरकार के पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग की ओर से पावल जलाने को लेकर एक फोटो जारी किया गया है. जिस पर पराली जलाने की समस्या और उससे होने वाली परेशानी के साथ-साथ चारा कैसे बनाएं. इस बारे में बताया गया है.
चारे के रूप में करें इस्तेमाल
धान के पावल का इस्तेमाल पशु के चारे के तौर पर किया जा सकता है. इससे जहां पुआल का निपटारा आसानी से हो जाएगा. वहीं पशुओं के लिए सस्ता चारा उपलब्ध हो सकेगा. पुआल का इस्तेमाल किया जाए तो चारे की कीमत तुलनात्मक रूप से काफी कम हो जाएगी. जिससे डेयरी किसानों को फायदा होगा और उनकी पशुओं के चारे पर आने वाली लागत कम हो जाएगी और उन्हें ज्यादा मुनाफा होगा.
पुआल को कैसे पौष्टिक चार बनाएं
गेहूं एवं धान के पुआल को सुखाकर काटकर तथा इसे यूरिया उपचारित कर संरक्षित किया जा सकता है. धान एवं गेहूं की भूसे को उपचारित करने से उसकी पौष्टिकता बढ़ जाती है. साथ ही प्रोटीन की मात्रा भी उपचारित भूसे में बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. किस चारे की कमी के समय पशुओं को हरे चारे के साथ पुआल को मिलाकर इस मिश्रण का इस्तेमाल कर सकते हैं.
Leave a comment