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Poultry: मक्का लगाकर कमाना चाहते हैं लाखों रुपये, तो ये खबर आपके लिए है

maize crop
खेत में तैयार हो चुकी मक्का की फसल.

नई दिल्ली. पोल्ट्री और पशुपालन में फीड के तौर पर मक्का का इस्तेमाल खूब होता है. एक आंकड़े पर गौर किया जाए तो 70 फीसदी मक्का की खपत पोल्ट्री फार्मिंग और पशुपालन में फीड के तौर पर की जाती है. यही वजह है कि सरकार चाहती है कि मक्का का उत्पादन बढ़े. सरकार का फोकस इसको बढ़ाने पर है. क्योंकि इससे किसानों को भी बेहतर मुनाफा मिलेगा. हालांकि एक्सपर्ट का कहना है कि किसान ज्यादा फायदा चाहते हैं तो उन्हें मक्का की फसल पर फोकस करना होगा तभी ये संभव होगा. उन्हें मक्का की खेती के लिए बेहतर बीज का भी चयन करना होगा.

आपको बता दें कि पोल्ट्री फार्मिंग में फीड के तौर पर सबसे बेहतर मक्का की फसल मानी जाती है. मुर्गी या इसे बड़े चाव से खाती है और बेहतर प्रोडक्शन करती है. इस वजह से पोल्ट्री फार्मर्स के बीच मक्का की डिमांड हमेशा बनी रहती है. अगर किसान मक्का की खेती करते हैं तो पोल्ट्री फार्मिंग में इस्तेमाल होने वाले मक्का को बेचकर उन्हें खूब फायदा हो सकता है. एक्सपर्ट का कहना है कि मक्का की डिमांड पोल्ट्री फार्मिंग में साल भर रहती है. इसलिए किसान इस फसल से अच्छी आय कमा सकते हैं.

एथेनॉल बनाने में भी होता है इस्तेमाल
वहीं मक्का की फसल का इस्तेमाल पशुपालन में भी होता है. मक्का की पत्तियों को खाकर पशुओं को तमाम तरह के पोषक तत्व मिलते हैं. इसका इस्तेमाल हरे चारे के तौर पर होता है. जब मक्का की फसल तैयार हो जाती है तो पशुओं को दाने के तौर पर भी मक्का दिया जाता है. इस​ लिहाज से भी देखा जाए तो मक्का की फसल अहम है. वहीं तकरीबन 30 फ़ीसदी मक्का का इस्तेमाल एथेनॉल और अन्य चीजों में होता है. जिसको देखते हुए भी सरकार मक्का की फसल को बढ़ाने के लिए किसानों को जागरुक कर रही है.

maize crop
बाजार में बिकता बुट्टा.

इन बीज को लगाने से मिलेगी अच्छी फसल
पोल्ट्री एक्सपर्ट का कहना है कि भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान द्वारा IMH 225, IMH 228 मक्के की किस्म तैयार की गई है. जिसको बसंत, रबी और खरीफ तीनों सीजन में उगाया जा सकता है. IMH 225 की उपज 102.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. इसके तैयार होने में 155 से 160 दिन का ही समय लगता है. वहीं ये किस्म तना छेदक, गुलाबी तना छेदक और फाल आर्मीवन के लिए प्रतिरोधी भी होती है. इसके अलावा IMH 228 की औसत उपज 105.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. इसकी खेती बिहार, झारखंड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और पूर्वी उत्तर प्रदेश के पूर्वोत्तर मैदान में होती है. इस तरह से IMH 224 और IMH 227 की किस्म का मक्का भी किसानों के लिए फायदेमंद है.

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