नई दिल्ली. मुर्गियों में कई बीमारियां बैक्टीरिया के कारण होती है. एक्सपर्ट कहते हैं कि पोल्ट्री और कच्चे मांस में साल्मोनेला, लिस्टेरिया, कैम्पिलोबैक्टर और ई. कोली जैसे हानिकारक बैक्टीरिया होते हैं जो खाद्य टॉक्सीन का कारण बन सकते हैं. हालांकि अच्छी तरह से पकाकर भोजन खान से इसकी संभावना कम हो जाती है और इन रोग को फैलने से रोका जा सकता है. मुर्गियों को अगर बीमारियां लगने से रोका जाए तो फिर ये बीमारी उनसे होकर इंसानों तक नहीं पहुंच सकेगी और पोल्ट्री फार्मिंग में भी नुकसान नहीं होगा. कई बार बीमारी गंभीर स्टेज तक पहुंचने पर मुर्गियों की मौत होने लग जाती है.
मुर्गियों में इंफेक्शियस कोराइजा मुर्गियों की एक संक्रामक बीमारी है, जिसमें आमतौर पर 12-20 सप्ताह तक के पक्षी अधिक प्रभावित होते हैं. इसमें मुर्गियां अधिक संख्या में रोग ग्रसित होती हैं, लेकिन मृत्यु दर 50 फीसदी तक हो सकती है. पोल्ट्री एक्सपर्ट का कहना है कि इस बीमारी से पक्षियों को बचाना बेहद ही जरूरी होता है. पोल्ट्री फार्म पर रोग की जानकारी होने पर तुरन्त पशु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए और इसका निदान करवाना चाहिए. पशु चिकित्सक की सलाह पर एन्टीबायोटिक्स का उपयोग कर रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है.
बीमारी होने का क्या है कारण
यह रोग हीमोफिलिस-पेरागेलिनेरम नाम के बैक्टीरिया के कारण होता है.
रोग ग्रसित मुर्गियों के सम्पर्क द्वारा यह रोग बहुत तेजी से दूसरी मुर्गियों में फैलता है.
वहीं अगर खाने-पीने के बर्तनों को सही तरह से नहीं धोया जाए तो इससे भी रोग का प्रसार होता है.
तेज हवा, नमी, टीकाकरण, स्थान परिवर्तन, पेट में कीड़े आदि कारणों से तनाव (स्ट्रेस) होने के कारण कोराइजा रोग हो जाता है.
विटामिन ‘ए’ की कमी से भी यह रोग हो सकता है.
क्या हैं इस बीमारी के लक्षण
लक्षण की बात की जाए छींक आना और नाक के छेदों का का बन्द होना.
नाक पर बदबूदार चिकना तरल पदार्थ पाया जाता है, जो नाक के चारों ओर जमा होकर सूख जाता है.
आंखों में भी पीले रंग का तरल जम जाता है, जिससे आंखों के चारों ओर सूजन आ जाती है. यह सूजन कलंगी तथा गलकम्बल तक फैल जाती है.
सांस की नली में तथा तालू पर भी गाढ़ा पदार्थ जमा हो जाने के कारण मुर्गियों को सांस लेने में दिक्कतें होती हैं.
चोंच खोलकर श्वास लेते हैं व एक विशेष प्रकार की आवाज करते हैं.
इतना ही नहीं इस बीमारी में अंडा उत्पादन में कमी हो जाती है.
वैक्सीनेशन कराना है जरूरी
कोराइजा का पहला टीका लेयर पक्षियों में ग्रोवर मुर्गी को केज में भेजने से पहले लगाना चाहिये.
रोग प्रकोप होने वाले क्षेत्र में 12 सप्ताह की आयु पर वैक्सीन लगाया जाता है, जिसे 4-5 सप्ताह पश्चात् पुनः लगाना चाहिये. वहीं पोल्ट्री फार्मिंग में अगर बीमारी हो जाए तो तुरंत ही पशु चिकित्सक की सलाह लें और एंटीबायोटिक का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
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