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Animal News: देश के 6 राज्यों के 7 जिले में खुरपका-मुंहपका का खतरा, यहां पढ़ें क्या हैं लक्षण

cow and buffalo farming
प्रतीकात्मक फोटो.

नई दिल्ली. डेयरी पशुओं में होने वाली खुरपका-मुंहपका बीमारी खतरनाक मानी जाती है. ये एक हाई रिक्स संक्रामक वायरस से होने वाली बीमारी है. एक्सपर्ट कहते हैं कि ये बीमारी, बीमार पशुओं के संपर्क में आने से, गंदा पानी पीने से, हवा और चारे के माध्यम से फैलती है. इसलिए पशुओं के चारे और पानी पर खास ध्यान देना चाहिए. एक्सपर्ट के मुताबिक वयस्क पशुओं के लिए यह रोग कभी-कभी होता है लेकिन गायों और भैंसो में अक्सर हो जाता है. बताते चलें कि इससे पशुओं दूध उत्पादन व प्रजनन क्षमता पर असर पड़ता है. वहीं बैलों में भारवाहक क्षमता को ये बीमारी कम कर देती है. इसलिए वक्त पर इसका इलाज करना जरूरी होता है.

एनिमल एक्सपर्ट का कहना है कि बछड़ा व बछडियों में यह आमतौर पर खतरनाक माना जाता है. यह भेड़ व बकरी और अन्य पशुओं को भी प्रभावित करता है. इसके चलते दूध उत्पादन व कार्यक्षमता में बेहद कमी आ जाती. इससे पशुपालकों को नुकसान का सामना करना पड़ता है. बता दें कि मार्च के महीने में इस बीमारी के फैलने की आशंका है. देश के छह राज्यों के सात जिलों में ये बीमारी फैल सकती है. इसलिए का उपाय करना चाहिए.

हाई रिस्क जोन में हैं ये शहर
जानकारी के मुताबिक गुजरात के बनासकांठा जिले में ये बीमारी हाई रिस्क पर है. इसलिए बचाव का उपाय करना बेहद ही जरूरी है. मध्य प्रदेश के बेतुल जिले में भी पशुओं में इस बीमारी के होने का खतरा बहुत ज्यादा है. देश की राजधानी दिल्ली के नार्थ वेस्ट में मार्च के महीने में इस बीमारी के फैलने का खतरा ज्यादा बताया जा रहा है. हिमाचल प्रदेश के उना और शिमला जिले में भी पशुओं को खुरपका-मुंहपका बीमारी होने का खतरा नजर आ रहा है. राजस्थान के जयपुर में ये बीमारी का खतरा ज्यादा बताया जा रहा है. इसलिए हाई रिस्क जोन में इसे डाल दिया गया है. महाराष्ट्र के अहमदनगर में भी पशुओं को इस बीमारी का खतरा है.

क्या हैं लक्षण
इस बीमारी के लक्षणों की बात की जाए तो बुखार, नाक से पानी जैसा स्राव होता है. वहीं बहुत ज्यादा लार भी गिरती है. इसके अलावा जुबान, दांतों, होंठ और मसूड़ों इत्यादि में छाले होना आम सी बात है. पैर के खुर के बीच में छाले होने से लंगड़ापन हो सकता है. निपल में छाले होने से थनैला हो सकता है. पशुओं की खराब हालत पशुओं के ठीक होने भी देर की वजह बनती है. 4 माह या उससे अधिक आयु के सभी पशुओं को 6 माह में एक बार टीकाकरण कराएं. संक्रमित पशुओं को स्वस्थ पशुओं से तुरंत अलग रखना चाहिए क्योंकि संक्रमित पशुओं के शरीर से निकलने वाले स्राव, गोबर, पेशाब में वायरस होते हैं.

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