नई दिल्ली. रिजका बहुवर्षीय फसल से लगातार लगभग 4-6 वर्षों तक पर्याप्त मात्रा में हरा चारा प्राप्त होता रहता है. इसलिए फसल की बुवाई के समय 30 किलो ग्राम नाइट्रोजन 60 किलो ग्राम फस्फोरस व 20 किलो ग्राम पोटाश का प्रयोग प्रति हेक्टेयर फायदेमंद होता है. दो-तीन वर्षों में एक बार 10 कुन्तल चूना, बोरोन की कमी वाले खेतों में 40-50 किलो ग्राम बोरेक्स प्रति हेक्टेयर मिलाने से उपज में अच्छी वृद्धि होती है. कैल्शियम की पूर्ति के लिए 50 ग्राम सोडियम मोलिबिडेट को 500 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव से उपज में वृद्धि होती है.
बुवाई का समय एवं विधि की बात की जाए तो रिजका की बुवाई देश के विभिन्न भागों में सितम्बर से अक्टूबर तक की जाती है. एक वर्षीय ल्युसर्न की बुवाई छिटकवां विधि से की जाती है. बहुवर्षीय लुसर्न की बुवाई मेड़ों पर की जाती है. इसमें 30 सेमी के अन्तर पर 60 सेमी चौड़ी मेंड़ बनायी जाती है. इन मेड़ों पर 10 सेमी के अन्तर पर रिजका के बीज की बुवाई की जाती है. मेड़ों की ऊंचाई 12-15 सेमी रखते हैं. बीज को 2-3 सेमी की गहराई पर बोया जाता है.
यहां पढ़ें बीज का कैसे करें उपचार
बीज की मात्रा एवं उपचार की बात की जाए तो छिटकवां विधि में बीज दर 12-15 कि.ग्रा. व मेड़ों पर बुवाई (हावर्ड विधि) में 10-12 कि.गा. प्रति हेक्ट. प्रयोग की जाती है.
बरसीम के समान ही ल्यूसर्न के बीज को राइजोबियम मेलीलोटाई नामक जीवाणु के क्ल्चर से उपचारित करना चाहिए.
सिंचाई व पानी के निकालने के बाद हल्की भूमियों में अधिक व भारी भूमियों में कम सिंचाईयों की आवश्यकता होती है.
इस फसल की जड़ें लम्बी होने के कारण मृदा में गहराई से भी पानी शोषित करती हैं.
वैसे ग्रीष्म काल में 10-12 दिनों के अन्तर पर और सर्दियों में 20-25 दिन के अन्तराल पर सिंचाईयां करते हैं. वर्षा ऋतु में सिचाई की आवश्यकता आमतौर पर नहीं होती है.
निराई-गुड़ाई और खरपतवार निकालने की बात की जाए तो एक वर्षीय फसल में खरपतवार की समस्या नहीं होती है लेकिन बहुवर्षीय फसल में निराई-गुड़ाई करना आवश्यक होता है.
अमरबेल प्रभावित क्षेत्रों में कब नामक रसायन की एक किलो ग्राम मात्रा को 1000 लीटर पानी के साथ अमरबेल के अंकुरण के बाद छिड़काव किया जाता है.
कटाई एवं उपजः कटाई बुवाई के 60-70 दिन के बाद की जाती है. इसके पश्चात फसल की वृद्धि तेज होती है और और अगली कटाईयां 25-30 दिन के बाद 10-12 प्रतिशत फूल आने की अवस्था पर की जाती हैं.
सामान्य अवस्थाओं में प्रति वर्ष 8-9 कटाईयां हो जाती हैं. उन्नतशील प्रजातियों की खेती से वर्षभर में 80-110 टन तक हरा चारा प्रति हेक्ट. प्राप्त हो जाता है. दो कटाईयां कम लेकर 2-4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बीज उत्पादन भी किया जा सकता है.
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