नई दिल्ली. पशु पालन करने वालों ये बात जानते ही हैं कि भेड़ किसी भी पशु पालक के लिए तीन-तीन काम आती है. जहां वो दूध देने के काम आती है तो वहीं सर्दी के लिए ऊन भी देती हैं. इसके अलावा स्वाद और पेट भरने के लिए भेड़ का मीट भी खूब पसंद किया जाता है. ये अलग बात है कि कम मात्रा में ही सही लेकिन भेड़ का मीट भी एक्सपोर्ट किया जाता है. वहीं भेड़ पालकों के लिए अच्छी बात ये है कि बकरीद पर भेड़ (दुम्बा) की डिमांड ज्यादा बढ़ जाती है. तब इसको पालने वालों को ज्यादा मुनाफा भी होता है. क्योंकि देश का आंध्रा प्रदेश और ठंडे पहाड़ी इलाकों में तो ज्यापदातर भेड़ की ही कुर्बानी दी जाती है. गौरतलब है कि भारत में 26 नस्ल की भेड़ है. इन भेड़ों में अलग-अलग नस्ल की भेड़ों में किसी को ज्यादा ऊन के लिए तो किसी को दूध तो किसी को मीट के लिए पाला जाता है.
गौरतलब है कि देश में सबसे ज्यादा भेड़ पालन राजस्थान में होता है. इसमें जोधपुर के ढाणी गांव में भी चरवाहों की पूरी एक बिरादरी है. इसके अलावा जयपुर से करीब 80 किमी दूर अविकानगर में भेड़ों की सबसे अच्छी नस्ल अविसान मिलती है. कहा जाता है कि इस नस्ल को दूसरे राज्यों में भी पाला जाता है. जबकि दूसरे राज्यों में बीकानेरी, चोकला, मागरा, दानपुरी, मालपुरी तथा मारवाड़ी नस्ल की भेड़ो की डिमांड ज्यादा रहती है. केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा के प्रिंसीपल साइंटिस्ट डॉ. गोपाल दास बताते हैं कि मुजफ्फरनगरी भेड़ के मीट में चिकनाई (वसा) ज्यादा होती है. इसलिए मुजफ्फरनगरी भेड़ के मीट को खाने के लिए ज्यादा पसंद किया जाता है. इसके अलावा आंध्रा प्रदेश में क्योंकि बिरयानी का चलन ज्यादा है तो चिकने मीट के लिए भी इसी भेड़ के मीट की खपत वहां ज्यादा है. इसके बनाने वाले एक्सपर्ट कहते हैं कि चिकने मीट की बिरयानी अच्छी बनती है.
राजस्थान में कहां नस्लीय भेड़ मिलती है
केंद्रीय भेड़ और ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर, टोंक, राजस्थान
भेड़ और ऊन प्रशिक्षण संस्थान, जयपुर, राजस्थान
केन्द्रीय ऊन विकास बोर्ड, जोधपुर राजस्थान
केन्द्रीय ऊन विश्लेषण प्रयोगशाला, बीकानेर राजस्थान
केंद्रीय भेड़ प्रजनन फार्म, हिसार हरियाणा
भेड़ और कहां-कहां पाली जाती है
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में सबसे ज्यादा मुजफ्फरनगरी भेड़ पाई जाती है. इसका नाम भी इस शहर के नाम पर है. भेड़ों में ये एक ऐसी नस्ल है जिसका ऊन तो किसी काम नहीं आता है लेकिन वजन में भी ये सबसे ज्यादा होती है. यही वजह है कि इसे मीट के लिए इस्तेमाल किया जाता है. जबकि पूगल नस्ल की भेड़ सर्वाधिक जैसलमेर, बीकानेर तथा नागौर जिलों में पाली जाती है. वहीं सोनारी नस्ल की भेड़ का उपनाम चनोथर भेड़ है. इसे सबसे ज्यादा बूंदी, झालावाड़, कोटा, उदयपुर जिलों में लोग पालते हैं. इसके कान चरते वक्त जमीन को छूते हैं.
इसके अलावा मारवाड़ी नस्ल की भेड़ सर्वाधिक जैसलमेर, जोधपुर, जयपुर, जालोर, बाड़मेंर, झुन्झुनू, दौसा, सीकर, पाली जिलों में मिलेगी. एक्सपर्ट कहते हैं कि इसकी इम्यूनिटी पॉवर सभी भेड़ों से ज्यादा होती है. वहीं मगरा नस्ल की भेड़ सर्वाधिक बाड़मेर, बीकानेर, जैसलमेर जिलों में दिखेगी. इनका ऊन से कालीन (चटाई) बनाने में इसतेमाल होता है. जबकि चोकला नस्ल की भेड़ का सर्वाधिक पालन शेखावाटी, बीकानेर, नागौर, जयपुर में किया जाता है. इस भेड़ के ऊन भारत एवं राजस्थान में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. इसलिए चोकला भेड़ को भारत की मेरीनो भी कहा जाता है. वहीं नाली नस्ल की भेड़ का सर्वाधिक गंगानगर और हनुमानगढ़ में होता है. जैसलमेरी नस्ल की भेड़ जैसलमेर जिले में पाई जाती है. यह राजस्थान में सर्वाधिक ऊन उत्पादन करने वाली भेड़ है. बता दें कि सबसे लम्बी ऊन भी जैसलमेरी भेड़ की होती है. खेरी नस्ल की भेड़ भी राजस्थान की है. खेरी भेड़ सर्वाधिक जोधपुर, नागौर तथा पाली जिलों में पाई जाती है. यह सफेद ऊन के मशहूर है.
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