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Poultry: मुर्गी से ज्यादा फायदेमंद है बटेर पालन, यहां पढ़ें डिटेल

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बटेर पक्षी की प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. कुक्कुट पालन करने वालों के लिए बटेर पालन एक मुनाफाबख्श सौदा है. इसके पालन में यदि हाथ आजमाते हैं तो ये बेहतर कारोबार साबित हो सकता है. क्योंकि कुक्कुट पाल में बटेर पालन मुर्गी पालने जैसा ही है लेकिन यह ज्यादा फायदेमंद माना जाता है. बटेर पालन में सबसे अच्छी बात यह है कि इसका आकार बहुत छोटा होता है इसलिए इसके पालन करने में ज्यादा जगह की जरूरत नहीं होती है. बटेर की एक खास बात और भी है कि इसमें जल्दी बीमारियां नहीं लगती हैं. इस वजह से वैक्सीनेशन और दवा वगैरह का खर्चा भी इसमें नहीं होता है. यही वजह है कि एक्सपर्ट इसको आसानी से और कम बजट में किया जाने वाला व्यवसाय कहते हैं.

मुर्गी से पहले देने लगती है अंडा
अगर बटेर पालन को मुर्गी पालन से कंपेयर किया जाए तो या उसी से मिलता जुलता है, लेकिन बहुत कम समय में मुर्गियों की अपेक्षा इससे ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है. आकार में यह छोटा पक्षी बड़ी कमाई वाला साबित होता है. जबकि इसकी मांस की मांग भी अब तेजी से बढ़ती जा रही है. यही वजह है कि ग्रामीण इलाकों में इसकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है. एक वर्ग फीट में 5 से 6 बटेर पाली जा सकती है. जबकि इसकी बड़वार ही बहुत तेज होती है. जहां एक मुर्गी चार महीने में पहला अंडा देती है तो वहीं बटेर डेढ़ महीने में ही अंडा देना शुरू कर देती है. बटेर की सेहत बहुत अच्छी होती है. बटेर तब तक बीमार नही होती है जब तक कि किसी दूसरे बीमार पक्षी के संपर्क में न आए.

बटेर के चूजे मृत्युदर बहुत कम होती है
एक्सपर्ट कहते हैं कि जब बटेर अंडा देती है तो उसे चूजा बाहर आने में भी बहुत ज्यादा समय नहीं लगता है. वहीं चूजा भी तेजी के साथ बढ़ जाता है. एक हफ्ते तक चूजे की देखभाल करनी होती है. खासतौर से उसे समय जब बच्चे का वजन 7 से 10 ग्राम होता है. इस दौरान 24 घंटे उसे रोशनी देनी होती है. इस एक तापमान में रखना होता है. समय—समय पर साफ सुथरा पानी बटेर को मुहैया कराना पड़ता है. सब कुछ सही तरीके से किया जाए तो नुकसान का खतरा खत्म हो जाता है. क्योंकि बटेर के बच्चों में भी मृत्यु दर सिर्फ एक से दो प्रतिशत होती है. विशेषज्ञों के मुताबिक बटेर के चूजों को 95 डिग्री फॉरेनहाइट में रखना चाहिए.

सेहत के लिए अच्छा होता है मांस
अगर बटेर के मांस की बात की जाए तो बहुत अच्छा माना जाता है. ये बहुत ही जूसी होता है. इसका फ्लेवर भी अच्छा होता है. जबकि ये 1000 से 1200 रुपये प्रति किलो बिकता है. डाइटिशियन भी रेड मीट की जगह लोगों को व्हाइट मीट के सेवन की सलाह देते हैं. क्योंकि इसमें फैट की मात्रा कम होती है. इसमें कोलेस्ट्रॉल भी काम होता है. इसलिए यह दिल की सेहत के लिए भी बेहतर है. बटेर ज्यादा बीमार नहीं होती, इसलिए इसका मांस शुद्ध माना जाता है. इसमें एंटीबायोटिक के अंश भी नहीं पाए जाते हैं.

बटेर को इस तरह पालें
बटेर को खुले आसमान और घर के पिछवाड़े पालन संभव नहीं है. इसकी दो वजह बताई जाती है. खुले आसमान के नीचे पालने पर या तो उड़ जाएंगे या दूसरे पक्षी इनका शिकार कर लेंगे. इसलिए केज में पालना ही बेहतर माना जाता है. बटेर पालन के लिए ढाई मीटर लंबे डेढ़ मीटर चौड़े और आधा मीटर ऊंचे केज बनाए जाते हैं. इस तरह के एक पिंजरे में 100 बटेर को रखा जा सकता है. अंडा उत्पादन करने वाली बटेर एक दिन में 18 से 20 ग्राम दाना खाती हैं. जबकि मांस के लिए पाली जाने वाली बटेर को 25 से 28 ग्राम दाने की जरूरत होती है.

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