नई दिल्ली. भारत में गाय पालन एक बेहतरीन व्यवसाय है. देसी गाय के दूध की पौष्टिकता को देखते हुए इसकी मांग बहुत ज्यादा है. छोटे बच्चों को भी डॉक्टर मां के दूध के बाद गाय का दूध देने की सलाह देते हैं. ऐसे में पशुपालक गाय का पालन करके अच्छी कमाई कर सकते हैं. वहीं भारत में विदेशी गाय की पहचान करना काफी आसान है. देसी गायों में कूबड़ पाया जाता है. इसी वजह से इन्हीं कूबड़ धारी भारतीय नस्ल की गाय भी कहा जाता है. देसी गाय जिस क्षेत्र की है, अगर उसी क्षेत्र में पाली जाए और सही दाना पानी दिया जाए तो उत्पादन अच्छा होता है. इस आर्टिकल में आप देसी गाय की कुछ खास नस्लों के बारे में यहां पढ़ेंगे.
गिर नस्ल
गिर नस्ल की गाय मूलत गुजराती इलाकों से आती है. गिर के जंगलों में पाए जाने के कारण इनका नाम गिर पड़ा है. इन्हें भारत में सबसे ज्यादा दूध देने वाली नस्ल माना जाता है. इस नस्ल की एक गाय दिन में 50 से 80 लीटर तक दूध दे देती है. इस गाय के थन बड़े होते हैं. देश ही नहीं विदेश में भी इस गाय की काफी डिमांड है. इजराइल और ब्राज़ील के लोग गिर गाय को पालना पसंद करते हैं.
साहिवाल गाय
साहिवाल गायों को दूध व्यवसाय काफी पसंद करते हैं. ये गाय सालाना 2000 से 3000 लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती हैं. एक बार मां बनने पर लगभग 10 महीने तक यह दूध देने में सक्षम हैं. इन्हें भारत की सर्वश्रेष्ठ प्रजाति माना जाता है. पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में पाई जाती हैं.
राठी नस्ल
राठी राजस्थान की गाय मानी जाती है. राठस जनजाति के नाम पर इसका नाम रखा गया था. इन्हें ज्यादा दूध देने के लिए पाला जाता है. ये गाय राजस्थान के गंगानगर, बीकानेर और जैसलमेर इलाकों में खूब पाली जाती हैं. प्रतिदिन 6 से 8 लीटर दूध देने की क्षमता होती है.
हल्लीकर नस्ल
हल्लीकर नस्ल गाय का कर्नाटक में पाई जाने वाली नस्ल है. मैसूर, कर्नाटक में नस्ल सबसे ज्यादा पाली जाती है. इस नस्ल की गायों की दूध देने की क्षमता भी काफी ज्यादा होती है.
हरियाणवी नस्ल
हरियाणवी नस्ल की गाय हरियाणा से ताल्लुक रखती है. मगर उत्तर प्रदेश, राजस्थान के क्षेत्र में भी खूब पाली जाती है. यह गाय सफेद रंग की होती है. इससे दूध उत्पादन भी अच्छा होता है. इस नस्ल के बैल खेती में अच्छा कार्य करते हैं.
कांकरेज नस्ल
कांकरेज नस्ल मूलत: गुजरात और राजस्थान में मिलती है. यह प्रतिदिन 5 से 10 लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती है. इसका मुंह छोटा और चौड़ा होता है. इस नस्ल के बैल भी अच्छे भरवाहक माने जाते हैं.
लाल सिंधी
लाल सिंधी गाय पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक तमिलनाडु में सबसे ज्यादा पाली जाती है. अपने रंग के कारण इन्हें लाल सिंधी कहा जाता है. लाल रंग की इस गाय को ज्यादा दूध देने के लिए पाला जाता है. लगभग 2000 से 3000 लीटर सालाना ये दूध दे देती हैं. यह नस्ल सिर्फ सिंधी इलाके में ही पाई जाती है, लेकिन अब पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, उड़ीसा में भी पाली जा रही है.
कृष्णा वैली नस्ल
कृष्णा वैली नस्ल मूल रूप से कर्नाटक की है. सफेद रंग की इस गाय के सींग छोटे होते हैं और मोटी काठी के होती हैं. एक बार मां बनने के लिए औसतन 900 किलोग्राम दूध देती हैं.
नागौरी नस्ल
नागौरी नस्ल राजस्थान की नागौर जिले में पाली जाने वाली गाय है. इस नस्ल का रंग हल्का लाल सफेद और हल्का जमुनी होता है. एक बार मां बनने के बाद 600 से 1000 लीटर तक दूध देती है. इसके दूध में वसा 4.9% होती है. इस नस्ल के बैल अच्छे भारवाहक होते हैं.
खिल्लारी नस्ल
खिल्लारी नस्ल की गाय महाराज कर्नाटक और पश्चिम महाराष्ट्र में पाई जाती है. इस प्रजाति का रंग खाकी सिर बड़ाख् सींग लंबे और पूंछ छोटी होती है. खिल्लारी प्रजाति के बैल काफी शक्तिशाली माने जाते हैं. इस नस्ल का वजन औसतन 400 किलो और गाय का औसतन वजन 350 किलो होता है. इसके दूध में वसा लगभग 4.2% होती है. या एक बार मां बनने के बाद 240 से 515 तक दूध देती है.
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