नई दिल्ली. पशुपालन में दूध के उत्पादन से खूब कमाई होती है. अगर पशु ज्यादा दूध देते हैं और उसमें क्वालिटी भी है तो फिर पशुपालकों की बल्ले—बल्ले हो जाती है. पशुपालक अच्छी कमाई कर लेते हैं. जबकि दूसरी ओर अगर दूध का उत्पादन कम होता है तो फिर मुनाफा उतना ज्यादा नहीं होता है, जितना होना चाहिए. इसलिए जरूरी है कि भैंस का चयन करते समय हम ऐसी नस्लों को चुनें जो ज्यादा मिल्क प्रोडक्शन करती हों. ज्यादा दूध का उत्पादन करेंगी तो फिर पशुपालन पर पैसों की बारिश होगी.
आमतौर पर भैंस की नस्ल में मुर्राह को लोग पालना ज्यादा पसंद करते हैं. हालांकि यहां हम जिस नस्ल का जिक्र करने जा रहे हैं वो मुर्राह और सुरती की संकरण नस्ल है. इन दोनों से क्रॉस करके इस नस्ल को बनाया गया है. ये नस्ल भी दूध उत्पादन के मामले में अच्छी मानी जाती है. जिसको पालकर पशुपालक ज्यादा से ज्यादा फायदा उठा सकते हैं.
दुधारू नस्ल की मानी जाती है
मेहसाना नस्ल के बारे में कहा जाता है कि ये एक दुधारू नस्ल मानी है. गुजरात के मेहसाना नगर के पास ज्यादा संख्या में पाई जाती है. यह बानसकांता गांधीनगर और अहमदनगर जिलों में भी पाई जाती है. यह मुर्राह व सुरती की संकरण नस्ल है. मादा सीधी स्वभाव की होती है व नर आसानी से संभाले जा सकते हैं. यह पशु काले भूरे व भूरे रंग के होते हैं. थूथन व सींग काले होते हैं. सिर फैलाव लिए हुए सीधा व झुकाव लिए सींग तक होता है. मुंह लंबा व सीधा आंखे चमकीली काली होती हैं. कान मध्यम तथा किनारे पर नुकीले होते हैं. व अन्दर की बाल पाए जाते है.
दूध में 7 फीसदी होती है वसा
सींग हंसिये के आकार के होते हैं. आमतौर पर नीचे की और झुके होते हैं, गर्दन लम्बी, कंधो से सही से जुड़ी होती है. नर की गर्दन मांसल तथा कूबड़ लगभग नही होता हैं. छाती गहरी व चौड़ी होती है. पैर मध्यम से छोटे लम्बाई में व साफ़-सुधरी जुडाव लिए होते हैं. खुर काले होते हैं. अयन का जुडाव मजबूत, नसे उभरी हुयी होती हैं. वहीं इसका थन आपस में समान दूरी पर जुड़ा होता है. पिछला अयन प्रदेश अधिक बड़ा होता है. नर का वजन लगभग 400-602 किग्रा होता है. जबकि मादा का लगभग 315-580 किग्रा होता है. प्रथम गर्भधारण की उम्र 830 दिन, प्रथम ब्यांत उम्र 1266 दिन, दुग्ध उत्पादन 598-3220 किलोग्राम होती है. दुग्ध सवण काल 308 दिन, शुष्क काल 99-580 दिन है. इसके दूध में वसा 7 प्रतिशत होती है.
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