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Milk Production: ज्यादा से ज्यादा दूध उत्पादन के लिए ये काम जरूर करें पशुपालक, पढ़ें डिटेल

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प्रतीकात्मक फोटो. livestock animal news

नई दिल्ली. पशुपालन करने वाले पशुपालकों को ये मालूम ही होगा कि बेहतर प्रोडक्शन के लिए आहार का क्या महत्व है. अगर आपको जानकारी नहीं है तो ये जान लें कि आहार जितना अच्छा होगा, प्रोडक्शन भी उतना ही अच्छा मिलेगा. इसलिए जरूरी है कि पशुओं के आहार पर ध्यान दिया जाए. एक्सपर्ट का कहना है कि पशुओं के आहार की क्वालिटी की अगर लैब में जांच हो जाए तो बेहतर होता है. इसलिए हर पशुपालक को चाहिए कि वो जिस फीड को पशुओं को परोस रहा है, उसकी जांच जरूर से करवा ले.

एक्सपर्ट के मुताबिक पशुपालकों को अपने पशुओं के लिये आहार बनाने से पहले आहार एवं उसके घटकों की क्वालिटी का परीक्षण नियमित रूप से प्रयोगशाला में करवाना चाहिए. पशु आहारों का रासायनिक विश्लेषण बीआईएस के अनुसार पानी, कच्चे प्रोटीन, रेशे, वसा एवं अम्ल घुलनशील राख की जांच के लिए करवाना चाहिये.

पानी की मात्रा कितनी हो
पशु आहार में दिए जाने वाले पानी की मात्रा का विशेष महत्व है. इससे आहार की क्वालिटी पर प्रभाव पड़ता है. बीआईएस के अनुसार पानी 10-11 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होना चाहिये. पानी की मात्रा यदि 13 प्रतिशत से ज्यादा है, तो आहार के भंडारण के समय फफूंदी के होने का खतरा रहता है. इसी प्रकार यदि आहार में पानी की मात्रा 15 प्रतिशत है, तो इसका मतलब है कि पशुपालक 4-5 प्रतिशत जल का मूल्य विक्रेता को दे रहे हैं.

कच्चा प्रोटीन और वसा
बीआईएस के अनुसार दुधारू पशुओं में कच्चा प्रोटीन और फैट की मात्रा 2 और 2.5 प्रतिशत से कम नहीं होनी चाहिये. ऐसे में पशुओं में दोनों पोषक तत्वों की कमी से उनके उत्पादन एवं शारीरिक विकास पर बुरा असर पड़ेगा. बीआईएस के अनुसार दुधारू पशुओं के आहार में कच्चे रेशे की मात्रा 12 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिये. इससे पशु आहार में उपस्थित अन्य पोषक तत्वों की पाचनशीलता एवं उनके शरीर में उपलब्धता कम हो जायेगी, जिसका विपरीत प्रभाव उत्पादन पर पड़ेगा.

अम्ल घुलनशील राख
बीआईएस के अनुसार दुधारू पशुओं में अम्ल घुलनशील राख की मात्रा 4 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिये. इस राख में मुख्य रूप से रेत (सिलिका) होती है. इसकी अधिकता पशुओं के पेट/आंत में घाव कर सकती है. यह आहार में उपस्थित अन्य तत्वों जैसे-प्रोटीन, वसा, रेशे, शर्करा इत्यादि को पाचनशीलता को घटाकर उनकी शारीरिक उपलब्धता में भी कमी कर देती है. इसका प्रतिकूल प्रभाव पशु के स्वास्थ्य एवं दुग्ध उत्पादन पर पड़ता है. आहार को गुणवत्ता के परीक्षण से पशुपालक अपने व्यवसाय के अति महत्वपूर्ण अवयव पशु पोषण का नियमन कर अधिक से अधिक आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकते है।

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