नई दिल्ली. ब्यात के समय गाय और भैंस की देखभाल करना बेहद ही जरूरी पहलू है. यदि ब्यात के समय या बाद में गाय की देखभाल में लापरवाही बरती जाती है तों विभिन्न बीमारियों एवं रोगों की आने की सम्भावना रहती है. नवजात को चोट लगने की सम्भावना रहती है. बीमारियां और चोट से बचाव के लिए जरूरी है कि इस दौरान पशुओं अच्छे ढंग से देखरेख की जाए. वहीं ज्यादा दूध उत्पादन के नजरिए से भी पशुओं की देखरेख करना बेहद ही अहम माना जाता है.
गाय एवं भैंस के ब्यात के दौर से गुजरती हैं तो कुछ लक्षण नजर आते हैं. इस दौरान अयन का आकार बढ़ जाता है, लटका हुआ, फैला रहता है. अयन में खीस भरा रहने के कारण सख्त हो जाता है. पशु परेशान व बेचैन रहता है. पूंछ के दोनो ओर मांसपेशिया ढीली पड़ जाती है और पुट्ठों पर गढ़ढे पड़ जाते हैं. पशु अकेले में रहना पसन्द करता है. योनि से सफेद पदार्थ (म्यूकस) आता दिखाई पड़ता है. प्रसव पीड़ा शुरु हो जाती है. पशु बार-बार बैठती, उठती, लेटती एवं पेशाब करती है.
क्या-क्या करना चाहिए जानें यहां
जब पशु की प्रसव किया में कुछ दिन ही बाकी हो तो पशु के साथ रहने से चोट लगने या लड़ने का डर रहता है. वहीं संक्रमित गर्भपात हो तो अन्य पशुओं में फैलने का डर रहता है. इसलिए पशु को अलग कमरे या बाड़े (प्रसव कक्ष) में रखे क्योंकि ऐसे समय पशु अकेले रहना पसन्द करता है. प्रसव कक्ष के मैनेजमेंट की बात की जाए तो प्रसव कक्ष में गदंगी नहीं होनी चाहिए. इसके लिए प्रसव कक्ष की निचली सतह को समतल रखें, साफ रखें एवं पशु एवं नवजात पशु को बीमारियों से रोकथाम हेतु कक्ष को 10 प्रतिशत फिनायल के घोल अथवा बुझे हुए चूने से जीवाणु रहित कर लें.
जमीन पर बिछावन लगाएं
कभी-कभी पशु खड़ी अवस्था में भी बच्चा दे देता है. इसलिए नवजात को ऊपर से गिरने पर चोट भी लग सकती है इसके लिए विछावन के रुप में गेंहू का भूसा धान का पुआल एवं अन्य सूखा, मुलायम एवं साफ बिछावन की 10 से 15 सेमी तक बिछा देनी चाहिए. इससे सर्दीयों में कक्ष में गर्मी भी रहती है तथा बिछावन आरामदायक भी रहता है. प्रसव एक प्राकृतिक क्रिया है. यदि प्रसव सामान्य है तो प्रसव काल 3-4 घंटे का होता है. जिसमें पशु बच्चा दे देता हैं. पशु को बच्चा देने के तुरन्त बाद नवजात की नाक, मुंह और कान साफ कर दें.
साफ कपड़े से शरीर को पोछें
फिर साफ एवं स्वच्छ कपड़े से नवजात के पूरे शरीर को पोंछकर सुखा दें और नवजात को पशु को चाटने दें, ताकि इससे न केवल सुखाने में मदद मिलेगी. बल्कि बच्चे में संचार बढ़ता है और बच्चे में स्फूर्ति आती है. इसके बाद नाभि नाल को 5 सेमी शरीर से छोड़ कर साफ केंची से काट दें. उस पर टिन्चर आयोडिन लगा दें. सर्दी के मौसम में नवजात एवं पशु को सर्दी से बचाव का पूरा इन्तजाम करें.
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