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Diwali 2024: गोबर से नहीं बनाए गए हैं रिकॉर्ड के लिए जलाए जा रहे 28 लाख दिये, जानें वजह

diwali 2024
दीपों के लगाने के बाद का नजारा.

नई दिल्ली. एक तरफ सरकार की ओर से आदेश जारी किया गया है कि इस दीपावली के मौके पर गाय के गोबर से बने दीपों को रोशन करने के लिए आम जनता को जागरूक किया जाए लेकिन दूसरी ओर सरकार खुद गाय के गोबर से बने दीपों को रोशन नहीं कर रही है. अयोध्या दीपवाली के मौके पर करीब 28 लाख दीपों की रोशनी रोशनी होगी लेकिन इसमें गाय के गोबर से बने दीयों को शामिल नहीं किया गया है. कहा जा रहा है कि रिकॉर्ड कायम करने के लिए अयोध्या में सिर्फ और सिर्फ मिट्टी से बने परंपरागत दीयों का ही इस्तेमाल किया जा रहा है.

बताते चलें कि इस दीपोत्सव 2024 के मौके पर योगी सरकार की मंशा के मुताबिक सरयू के 55 घाटों पर दो हजार से अधिक पर्यवेक्षक, समन्वयक, घाट प्रभारी, दीप गणना व अन्य सदस्यों की देखरेख में 30 हजार से अधिक वालंटियर 28 लाख दीपों को सजाने का काम कर रहे हैं. इसके साथ ही 80 हजार दीपों से वालंटियर द्वारा राम की पैड़ी के घाट नम्बर 10 पर प्रतीक के रूप में स्वास्तिक बनाया जा रहा है. यह दीपोत्सव आकर्षण का केन्द्र होने के साथ पूरे विश्व को शुभता का संदेश देगा. इसके लिए अलग से 150 से वालंटियर लगाये गए हैं.

आम जनता को जागरुक करने का आदेश
वहीं सरकार की ओर से दीपावली, गोवर्धन पूजा और भाईदूज के त्योहारों के मद्दनेजर एक आदेश जारी किया गया है. जिसमें पुलिस महकमे के साथ-साथ नगर पालिका आदि की जिम्मेदारी तय की गई है. आदेश में में गौशालाओं का भी जिक्र है. इसी पत्र में कहा गया है कि गाय के गोबर से बने दीपों, मूर्तियों आदि के इस्तेमाल के लिए आम लोगों में व्यापक प्रचार प्रसार किया जाए. ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग गाय के गोबर से बने इन दीपों और मूर्तियों का इस्तेमाल करें. वहीं आदेश में ये भी कहा गया है कि स्थानीय प्रशासन दीपों और मूर्तियों की बिक्री के लिए बाजारों में जगह भी उपलब्ध करवाए ताकि बेचने वालों और खरीदारों दोनों को आसानी हो. सरकार की मंशा है कि ऐसे गाय के गोबर से बने प्रोडक्ट के प्रति लोगों की रुचि बढ़ेगी.

गोबर का दीया क्यों नहीं किया जाता शामिल
बीते दो साल से दिये जलवाने में नोडल अफसर की भूमिका निभाने वाले डॉ. राममनोहर लोहिया अवध यूनिवर्सिटी के डीन और हेड प्रोफेसर आशुतोष सिन्हा ने बताया कि क्यों गोबर के दीयों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. उनका कहना है कि दीयों के वर्ल्ड रिकॉर्ड के लिए जो कैटेगरी बनी है वो मिट्टी के दीपों को लेकर है. इसलिए गोबर की दीयों को इसमें शामिल नहीं किया जा सकता है, नहीं तो कैटेगरी अलग हो जाएगी. वहीं लोगों से बातचीत के आधार पर ये निकलकर सामने आया है कि गोबार से बने दिये में उसकी लौ सही से नहीं जलती है. गोबर तेल ज्यादा पी जाता है. दीये सूखे गोबर के होते हैं तो उसमें आग भी लग जाती है.

30 हजार वालंटियर्स लगे हैं इस काम में
वहीं दूसरी ओर सरकार के पास भी आम लोगों को जागरुक करने का एक मौका था लेकिन उसे गंवा दिया गया है. सरकार अयोध्या में दिवाली पर 28 लाख दीयों को जलाकर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने जा रही है. हालांकि इन दीपों में मिट्टी के दीयों को ही शामिल किया गया है. गाय के गोबर से बने दीपों को घाट पर नहीं जलाया जाएगा. जबकि दीपोत्सव के विश्व कीर्तिमान के लिए यूनिवर्सिटी परिसर सहित 14 महाविद्यालय, 37 इंटर कालेज, 40 एनजीओ के 30 हजार वालंटियर लगाये गए हैं. सरयू के 55 घाटों पर 30 एमएल दीए के 16 गुणे 16 का एक ब्लाक वालंटियर द्वारा बनाया जा रहा है. जिनमें 256 दीए बिछाये जा रहे हैं. दीपोत्सव के दिन 30 एमएल दीए में 30 एमएल सरसों के तेल का इस्तेमाल किया जायेगा. घाट प्रभारी व समन्वयक की देखरेख में बड़ी सावधानी से दीए में तेल डालने का काम करेंगे. दीए बिछाने का कार्य 28 अक्टूबर तक पूरा कर लिया जायेगा. 29 से घाटो पर लगे दीए की गणना की जायेगी. वही 30 अक्टूबर को घाटों पर लगे दीयों में बाती, तेल डालकर व प्रज्ज्वलन करके विश्व रिकार्ड बनायेंगे.

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