नई दिल्ली. ठंड का मौसम डेयरी कारोबारियों के लिए मुश्किल वाला होता है. क्योंकि इस समय गाय-भैंस को ज्यादा ऊर्जा देने की जरूरत होती है. जबकि ज्यादा दूध उत्पादन लेने के लिए भी बाईपास-प्रोटीन, बाईपास- फैट और चीलेटेड-मिनरल पशुओं को दिया जाना बेहद ही जरूरी होता है. एक्सपर्ट कहते हैं कि जुगाली करने वाले पशुओं में पशु आहार का ज्यादा पाचन ‘रुमेन’ नाम का भाग में मौजूद सुक्ष्मजीवी करते हैं. वहीं इन सुक्ष्मजीवियों को पाचन के दौरान काफी ज्यादा प्रोटीन की जरूरत होती है.
एक्सपर्ट के मुतबिक ऐसे में पशु आहार में दिए गये प्रोटीन का इस्तेमाल पूरी तरह नहीं हो पाता है. इससे बचने के लिए प्रोटीन को रुमेन से बाईपास निकालना बेहद जरूरी भी होता है. इसके लिए पशुओं को बाईपास-प्रोटीन और बाईपास-फैट दिया जाता है. इसी प्रकार सामान्य मिनरल-मिक्सचर की तुलना में ‘चीलेटेड-मिनरल’ का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. इसमें बिनौला और अलसी की खल, सोयाबीन, बाजरा, मक्का और सूरजमुखी के बीज आदि शामिल किए जाते हैं. इसको बनाने के लिए खास तौर से चार तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है और घर पर ही इसे आसानी से बनाया जा सकता है. एक्सपर्ट के मुताबिक इसको देने से दूध उत्पादन बढ़ जाता है.
बनाने का तरीका पढ़ें यहां
हीट ट्रीटमेंट: इसके तरीके में कुछ विशेष पोषक पदार्थों का 100 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक तापमान पर ताप उपचार किया जाता है.
टेनिन से क्रियाः इस तरीके में हाइड्रोलाईसेबल टेनिन की (2-4 फीसद की दर से) क्रिया करवाई जाती है.
फार्मेल्डिहाइड ट्रीटमेंट: एक ग्राम फार्मेल्डिहाइड की क्रिया प्रति 100 ग्राम खल-प्रोटीन से करवाकर प्लास्टिक बैग में चार दिन के लिए बंद कर देते हैं.
कैप्सूल में भर करः बाईपास प्रोटीन कैप्सूल में भर कर खिलाया जाता है. इससे अमीनो अम्लों का बचाव होता है.
चीलेटेड-मिनरल मिक्सचर बनाने के तरीके
चीलेटेड-मिनरल में मिनरल के साथ अमीनो अम्ल और पेप्टाइड आदि डालते हैं. ये अपने कार्बनिक रूप में होते हैं. इसे पशु आसानी से खा और पचा लेते हैं.
बाईपास फैट कैसे करें तैयार
इसमें बिनौला सीड, सोयाफैट आदि शामिल होते हैं. इसको बनाने के लिए खास तौर से तीन विधियां काम में ली जाती हैं:
फैट का हाइड्रोजनीकरण किया जाता है.
लंबी चेन वाले फैटीय एसिड के कैल्शियम सॉल्ट बनाए जाते हैं.
तेल वाले बीजों का फार्मेल्डिहाइड उपचार किया जाता है.
क्या हैं इसके फायदे
पशुओं के दूध उत्पादन में ग्रोथ होती है.
कीटोसिस रोग की संभावना कम हो जाती है.
पाचन में सुधार और अच्छी शारीरिक ग्रोथ होती है.
प्रजनन क्षमता में सुधार, हैल्दी बच्चे पैदा होते हैं.
सर्दियों में ज्यादा एनर्जी की जरूरत की पूर्ति हो जाती है.
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