नई दिल्ली. गांवों में मुर्गीपालन में की बात की जाए तो ये परंपरा बहुत पुरानी है. रूरल एरिया में छोटे किसान, भूमिहीन मजदूर, गरीब व पिछड़े वर्ग के लोगों द्वारा घर के आंगन में मुर्गीपालन किया जाता रहा है. है. बैकयार्ड में मुर्गीपालन समाज में कमजोर, निर्धन किसानों, जिन मजदूरों के पास जमीन नहीं है, उनके तथा छोटे किसानों के लिये एक्सट्रा इनकम कमाने का सहारा है. वहीं उनके लिए पौष्टिक आहार का सबसे बेहतरीन और कम खर्च वाला जरिया है. वहीं मौजूदा वक्त में एक्सपर्ट भी यही कहते हैं कि गरीब तबके लोग मुर्गी पालन करके अच्छी कमाई कर सकते हैं.
गांवों में मुर्गीपालन की खासियत की बात की जाए तो इस व्यवसाय को घर के आंगन में 20-25 मुर्गियों को पाल कर किया जा सकता है. यानि इसमें ज्यादा खर्च करने की जरूरत नहीं है. बस कुछ चिक्स की मदद से इसे कर सकते हैं. वहीं इस कारोबार को घर के पीछे आंगन में कर सकते हैं. मुर्गीपालन में मुर्गियों दिन में बाहर खेतों में घूमती रहती हैं और रात में उन्हें पेड़ों पर या फिर दबड़ों में रख दिया जाता है.
खेत और झूठन से मिलता है फीड
मुर्गियों दिन में खेतों में पड़े अनाज के दाने, बीज, खरपतवार आदि खाकर अपना पेट भरती हैं और किसान सीमित मात्रा में घर की झूठन, खराब अनाज आदि मुर्गियों को खिलाता है तो उन्हें इससे एक्सट्रा फीड मिल जाता है. हालांकि इस मेथड में मुर्गियों का अंडा उत्पादन बहुत कम होता है. मुर्गियों का सालाना अंडा उत्पादन की बात की जाए तो मात्र 40-50 अंडे हैं. वहीं अंडे का रंग भूरा व वजन मी बहुत कम होता है. लेकिन इसकी मांग होती है और इसका अच्छा दाम मिलता है. वहीं वयस्क मुर्गियों का वजन 1 किलो तथा मुर्गों का वजन 1.5 किलो होता है जो कि उन्नत नस्ल के मुकाबले कम है.
मौत से होता है ज्यादा नुकसान
आमतौर से मुर्गी 10-12 अंडे देने के बाद कुड़क हो जाती है और अंडे सेने के लिए तैयार हो जाती है. अंडे से चूजे निकलने के बाद मुर्गी एक माह तक उसकी देखभाल करती है और उसके बाद फिर अंडे देने लगती है. इस तरह यह चक्र एक वर्ष में 4-5 बार चलता है और कुल अंडा उत्पादन 40-50 अंडा होता है. चूजों को पालते समय उनकी मृत्युदर बहुत अधिक होती है. वहीं इन मुर्गियों को संक्रामक रोगों के प्रकोप के कारण मृत्युदर ज्यादा होती है. वहीं उचित आवास के अभाव में कुत्तों, बिल्लियों व अन्य जगली पशुओं द्वारा चूजों व मुर्गियों को खाने से किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है. जबकि कुक्कुट पालन के लिये जरूरी एवं जानकारी का अभाव होता है. आंगन में मुर्गीपालन बिना किसी खर्च अथया बहुत कम खर्च करके किया जाता है.
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