नई दिल्ली. पशुपालन में पशुओं को दो तरह से गाभिन किया जाता है. एक नेचुरल तरीके और दूसरा कृत्रिम गर्भाधान के जरिए. अक्सर कृत्रिम गर्भाधान को लेकर किसानों के मन में ये सवाल उठता है कि इससे क्या फायदा है. एक्सपर्ट का कहना है कि इस तकनीक हाई क्वालिटी वाले सांड से ज्यादा से ज्यादा मादा पशुओं को गर्भित किया जा सकता है जो कि नस्ल सुधार और दूध उत्पादन में बढ़ोतरी का बहुत अच्छा साधन है. वहीं हाई क्वालिटी वाले सांड के स्पर्म को इकट्ठा करके, फ्रीजिंग करके दूर दराज के इलाकों में भी भेजा जा सकता है.
एक्सपर्ट का कहना है कि यहां तक कि फ्रीजिंग स्पर्म दूसरे देशों से भी मंगवाया या फिर भेजा जा सकता है. जिससे मनचाहे सांड की नस्ल का बच्चा विश्व के किसी भी देश में पैदा कराया जा सकता है. हाई क्वालिटी वाले सांड हर स्थान पर उपलब्ध नहीं होते लेकिन उनका फ्रीजिंग स्पर्म किसी भी स्थान पर उपलब्ध करवाया जा सकता है.
रोक सकते हैं जेनेटिक बीमारियां
वहीं सांड के सपर्म को इकट्ठा करके, उसे लेबोरेटरी में विभिन्न बीमारियों व क्वालिटी के लिए जांचा जाता है. इस तरह नेचुरल तरीके से फैलने वाली बीमारियों से मादा को बचाया जा सकता है. वहीं पशुपालक को सांड के पालने व रखरखाव का खर्च वहन नहीं करना पड़ता है. इसके अलावा हर 3-4 वर्ष बाद सांड को बदलकर जेनेटिक बीमारियों को रोका जा सकता है. नजदीकी रिश्ते के फ्रीजिंग स्पर्म की उपलब्धता के कारण अलग-अलग सांडो के वीर्य द्वारा गर्भाधान करवाया जा सकता है. वहीं खूंखार सांड, मादा पशु को चोट पहुंचा सकते हैं, लेकिन कृत्रिम गर्भाधान करवाने में इस प्रकार का कोई खतरा नहीं होता.
चोट लगने का नहीं होता है खतरा
गांवों में अक्सर सांडो की संख्या सीमित होती है, यदि एक गांव में एक ही दिन में 50-60 मादा पशु गर्मी में आ जायें तो उन सभी को प्राकृतिक समागम द्वारा गर्भित नहीं करवाया ता सकता है. यदि मादा पशु का गर्मी में आने का चक्र, छूट जाये तो पशुपालक को काफी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है. जबकि कृत्रिम गर्भाधान द्वारा सभी पशुओं को गर्भित करवाया जा सकता है. भारी व बड़े आकार के सांड बछड़ियों को प्राकृतिक समागम के समय चोट पहुंचा सकते हैं लेकिन कृत्रिम गर्भाधान विधि में ऐसा कोई खतरा नहीं होता.
रिकॉर्ड रखना होता है आसान
बहुत अच्छी नस्ल के सांड को यदि चोट लग जाये या किसी कारण से नेचुरल तरीके से गाभिन कराने में दिक्कत हो जाए तो उसका स्पर्म फ्रीजिंग करके, कृत्रिम गर्भाधान विधि द्वारा प्रयोग में लाया जा सकता है. कृत्रिम मुर्भाधान करने से पहले पशु चिकित्सक द्वारा मादा पशु की अच्छी तरह से जांच की जाती है. कभी कभी गर्भित पशु भी गर्मी के लक्षण देने लग जाते हैं, ऐसे पशुओं को सांड के पास ले जाया जाये तो, सांड समागम कर लेता है. जिससे गर्भ गिर सकता है और पशु पालक को अनावश्यक रूप से नुकसान हो जाता है. पशु चिकित्सक, मादा पशु की जांच करते समय गर्भाशय की बीमारियों की अच्छी तरह से जांच भी करता है. इस प्रकार रोगग्रस्त मादा पशु का उचित उपचार समय रहते किया जा सकता है. कृत्रिम गर्भाधान का रिकार्ड रखना बहुत आसान होता है.
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