नई दिल्ली. पशुपालन में चारे की बहुत अहमियत होती है. एक मोटे आंकलन के मुताबिक पशुपालन में करीब 70 फीसदी खर्च फीड पर ही होता है. इस वजह से चारे का रोल अहम होता है. एक्सपर्ट कहते हैं कि ज्वार का चारा पशुओं को पोषण देता है. इतना ही नहीं यह चारा पशुओं में पानी की कमी को पूरा करता है. एक्सपर्ट के मुताबिक ज्वार का चारा जानवरों को गर्मी से भी राहत देता है. यानि इसे गर्मी में खिलाना बेहतर होता है. वहीं ये चारा दूध उत्पादन बढ़ाने में भी मददगार साबित होता है. वहीं इसकी खासियत ये भी है कि इसे पशु बहुत ही चाव से खाते हैं.
ज्वार की फसल से दोहरा फ़ायदा मिलता है, क्योंकि इसका अनाज इंसानों के आहार के तौर पर भी इस्तेमाल होता है. ज्वार की फसल कम बारिश में भी अच्छी उपज दे सकती है. इसलिए इसे पशुपालन के लिए परफेक्ट माना जाता है. आइए जानते हैं कि इसकी बुवाई, सिंचाई और कटाई आदि के बारे में.
कब करना चाहिए
ज्वार की अगेती तथा एकल कटाई वाली प्रजातियों के लिये 35-40 कि. ग्रा. बीज दर प्रति हेक्टेयर तथा बहु कटाई वाली किस्मों के लिये बीज दर 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टर रखते हैं. यदि खेतों में खरपतवारों की समस्या अधिक है तो बीज दर थोड़ी ओर बढ़ा देते हैं. बुवाई की विधि और समय की बात की जाए तो गर्मी के मौसम में जल्दी चारा लेने के लिये मार्च के महीने में ज्वार की बहु-कटाई वाली प्रजातियों की बुवाई करते हैं. खरीफ में एकल कटाई वाली प्रजातियों की बुवाई जून-अगस्त में की जाती है. बुवाई आमतौर पर छिड़कवां विधि से की जाती है. लाइन में बुवाई हेतु 25-30 से.मी. की दूरी पर फसल को बोया जाता है.
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सिंचित क्षेत्रों में उगाई जाने वाली फसल में 60-80 कि.ग्रा. नत्रजन तथा 40-50 कि.ग्रा. फास्फोरस देना चाहिये. बहु कटाई वाली प्रजातियों में 80 से 100 किलो ग्राम नत्रजन तथा 50-60 किलोग्राम फास्फोरस देना आवश्यक है. भूमि में पोटाश और जिंक की कमी होने की स्थिति में 40 किलोग्राम पोटाश तथा 10-20 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर देना चाहिये. इन तत्वों की एक तिहाई मात्रा को कार्बनिक तथा जैविक खादों से देने पर लागत में कमी आती है तथा उपज में भी बढ़ोत्तरी के साथ-साथ भूमि पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है। फास्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई के समय दी जाती है. बहु कटाई वाली प्रजातियों में हर कटाई के बाद नत्रजन की टाफ ड्रेसिंग करना जरूरी है.
सिंचाई व निराई गुड़ाई
गर्मी वाले मौसम में फसल को 3 से 5 सिंचाईयों की आवश्यकता पड़ती है. बरसात में फसल में आमतौर पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती. जमीन और फसल की मांग के अनुसार ही सिंचाई करना चाहिए. यदि खरपतवारों की समस्या अधिक है तो बीज दर बढ़ाकर अथवा एट्राजिन एक किलो ग्राम सक्रिय तत्व को 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई के तुरन्त बाद छिड़काव करते हैं. चारे वाली ज्वार के तने पतले तथा पत्तियां अधिक होनी चाहिये. इसे बुवाई के 50-70 दिन बाद 50 प्रतिशत फूल निकले पर काटना शुरू कर दें. बहु-कटाई वाली किस्मों की पहली कटाई 50-60 दिन तथा बाद की कटाई 25-35 दिन के अन्तर पर करते हैं. इन किस्मों को जमीन से तीन या चार अंगुल ऊपर से काटने पर कल्ले अच्छे निकालते हैं.
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