नई दिल्ली. कई जड़ी बूटियों जैसे हल्दी (कर्कुमा लोंगा), तुलसी (ओसिमम सैंक्टम), लहसुन (एलियम सेटायवम), वासा (अधातोडा वासिका) आदि का इस्तेमाल करके मछलियों का इलाज किया जा सकता है. कई हर्बल आधारित चिकित्सीय उपायों को फिनफिश और शेलफिश के विभिन्न रोगों के उपचार और नियंत्रण के लिए अपनाया गया है. बैक्टीरिया से होने वाले मछली रोगों को ठीक करने के लिए जड़ी बूटियां खुद ही प्राकृतिक रूप से एंटीबायोटिक का काम करती हैं. कई हर्बल दवाइयां और दवाएं पौधे के अर्क से फिनफिश और शेलफिश के बैक्टीरियल रोगजनकों के इलाज और नियंत्रित करने की कोशिश की गई है.
इंडियन मेजर कार्प, कतला को जब 2 फीसद जलीय हर्बल अर्क के साथ इलाज किया गया, तो यह पाया गया कि वे एरोमोनास हाइड्रोफिला संक्रमण के प्रतिरोधी थे, और उनमें अनुपचारित नियंत्रण की तुलना में उच्चतर न्युट्रोफिल और लिम्फोसाइटों की संख्या थी.
किन बीमारियों पर किया जा सकता है कंट्रोल
एक्सपर्ट कहते हैं कि 5-7 दिनों के अंतराल पर प्रभावित मत्स्य तालाब में हल्दी और चूने लगाने से मछली में एपिजुओटिक अल्सरेटिव सिंड्रोम (ई.यू.एस.) पर सफल नियंत्रण किया जा सकता है.
कुछ मछली के रोगजनक जीवाणुओं पर हल्दी (कर्कुमा लोंगा) के प्रभाव का अध्ययन किया और पाया कि इसका दो महत्वपूर्ण मछली रोगजनकों ए. हाइड्रोफिला और स्टेफायलोकोकस पर जीवाणुरोधी प्रभाव था.
हल्दी के मेथानोलिक अर्क में माइक्रोकोकस लूटियस, एंटरोकोकी फिकैली और स्टैफायलोकोकस ऑरियस के खिलाफ बैक्टीरिया को खत्म करने की क्षमता मिली.
जिंजरोल को जीवाणुरोधी पाया गया. कवकरोधी और एंटीऑक्सीडेंट गतिविधियों वाला पाया गया है. जबकि नीम (अजाडिराक्टा इंडिका) के बीज के तेल में सूक्ष्मजीवों के खिलाफ जीवाणुरोधी कार्रवाई का एक व्यापक स्पेक्ट्रम है.
जिसमें एम ट्यूबकुलोसिस और स्ट्रेप्टोमाइसिन प्रतिरोधी जीवाणु शामिल हैं. इन विट्रो में यह विब्रियो कोलेरी, क्लेबसिएला न्यूमोनिया, एम ट्यूबरकुलोसिस और एम पाइजेंस को रोकता है.
नीम के अर्क के जीवाणुरोधी प्रभाव को स्ट्रेप्टोकोकस म्युटन्स और एस फिकेलिस के खिलाफ प्रदर्शन किया गया है.
नीम की छाल का अर्क क्लेबिसिएला, स्टैफायलोकोकस और सेरेसिया प्रजातियों के खिलाफ सक्रिय है. नीम तेल के एक उत्पाद नीम 76, जीवाणु, कवक और विषाणु सहित विभिन्न रोगजनकों पर निरोधात्मक प्रभाव दिखाता है. नीम की जीवाणुरोधी क्षमता के लिए जिम्मेदार कुछ यौगिक हैं.
निष्कर्ष
एक्सपर्ट का कहना है कि महंगी दवाओं की जगह अगर हर्बल इलाज पर फोकस किया जाए तो मछलियां बीमार नहीं होंगी और बेहतर ग्रोथ मिलेगी.
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