नई दिल्ली. बकरी, मछली, मुर्गी पालन करक अच्छी कमाई की जाती है. इसमें भी मछली पालन कर लिया तो सोने पर सुहारा. बस एक ही शर्त है कि मछली पालन पूरी तरह से साइंटिफिक होना चाहिए. अगर अपना दिमाग ज्यादा लगाने की कोशिश की तो नुकसान हो सकता है. विशेषज्ञ भी मछली पालन को फायदे का सौदा बताते हैंं. अगर ठीक से मछली पालन कर लिया तो लाखों रुपये प्रतिवर्ष कमा सकत हैं. मछली पालन को सरकार बढ़ावा भी दे रही है. मछली पालन में अगर कुछ तकनीकों का सहारा लिया जाए और पूरी ट्रेनिंग हो तो फिर इससे ज्यादा से ज्यादा मुनाफा हासिल किया जा सकता है. अच्छी तरह से मछली पालन करने का तरीका नीचे दिया गया है.इसलिए पूरी खबर को पढ़ें.
गर्मी के मौसम में मछली पालन से अच्छी आय प्राप्त करने के लिए उनके उचित रखरखाव की आवश्यकता है. यह विचार गुरु अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल साइंसेज यूनिवर्सिटी, लुधियाना के फिशरीज कॉलेज के डीन डॉ. मीरा डी आंसल ने साझा किए. उन्होंने कहा कि सबसे अच्छी नीति है कि सावधानी बरतें और बीमारियों से बचें. पानी को साफ रखने के लिए विशेषज्ञों की राय के अनुसार चूना, लाल दवा या सीफेक्स का प्रयोग करना चाहिए. यदि कोई परेशानी हो तो किसी विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए.
तालाब की करें ऐसे देखभाल
उन्होंने कहा कि मछली के तालाबों में पानी का स्तर लगभग 6 फीट रखा जाना चाहिए ताकि निचले हिस्से में पानी का तापमान उपयुक्त रहे. तालाब में ऑक्सीजन कम नहीं होनी चाहिए, जो आमतौर पर गर्मी के मौसम में सुबह के समय कम होती है, तालाबों में ऑक्सीजन का स्तर बनाए रखने के लिए या तो एरेटर (पानी हिलाने वाली मशीनें) चलानी चाहिए या जानवरों या इंसानों को तालाबों में जाकर पानी को हिलाना चाहिए. मछली वाले तालाब का पानी खेतों में डालना चाहिए, जो कि फसलों के लिए बहुत फायदेमंद है. इसके स्थान पर तालाबों में नया पानी डालना चाहिए.
तालाब में न होने दें काई और खरपतवार
डाक्टर मीरा ने कहा कि मछली पालकों को इस बात का भी ध्यान रखना आवश्यक है कि पानी में अम्लता या लवणता की मात्रा संतुलित रहे. इस मौसम में पानी में विभिन्न प्रकार के खरपतवार, घास आदि उग आते हैं या पानी में काई जम जाती है ऐसी वनस्पतियों को लगातार साफ करना बहुत जरूरी है. इससे पानी में अमोनिया और कार्बन डाइऑक्साइड गैसें बढ़ जाती हैं, जो मछली के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक गैसें हैं. इस बात का भी ध्यान रखना जरूरी है कि मछलियों को उतनी मात्रा में ही खुराक दी जाए जितनी वो खा सकें. अतिरिक्त चारा तालाबों की तली में जमा हो जाता है, जिससे पानी में जहरीली तलछट बढ़ जाती है.
मछली पालक इन मुख्य बिंदुओं पर डालें नजर
—डॉक्टर मीरा ने बताया कि इस अवधि के दौरान ‘ऑक्सीजन’ के स्तर की निगरानी करने के लिए आगाह किया, जो तालाब में बढ़ी हुई जैविक गतिविधि के कारण सुबह के दौरान घातक स्तर तक गिर सकता है और श्रेष्टतम ऑक्सीजन स्तर बनाए रखने के लिए, सूर्योदय से पहले दिन के शुरुआती घंटों में तालाबों को ताजा पानी डालकर या एरेटर के माध्यम से पानी को साफ रखें.
—अगर मछलियां पानी की सतह पर हवा के लिए हांफती हुई दिखाई दें, तो हवा दें, ताजा पानी डालें और पानी की गुणवत्ता में सुधार होने तक खाद देना और खिलाना बंद कर दें.समय-समय पर जल विनिमय से मछली की वृद्धि और उत्पादन में और वृद्धि होगी.
—पोषक तत्वों से भरपूर तालाब के पानी का उपयोग धान या अन्य कृषि क्षेत्रों की सिंचाई के लिए किया जा सकता है, जिससे तालाब के पानी की गुणवत्ता में सुधार होगा और फसल उर्वरक की आवश्यकता भी कम होगी.
—निरंतर प्लवक उत्पादन के लिए, चरणबद्ध तरीके से विभाजित खुराकों के साथ तालाब में खाद डालें. फीड की बर्बादी को कम करने और बेहतर फीड रूपांतरण दक्षता प्राप्त करने के लिए खेत में बने पेलेट फीड का उपयोग करें.
—अगर पानी का रंग गहरा हरा/भूरा/हरा-भूरा हो जाता है या पानी की सतह पर शैवाल के फूल दिखाई देते हैं, तो ऐसी स्थिति में सामान्य होने तक खाद डालना और खिलाना बंद कर दें. पानी के पीएच में दिन-रात के अंतर की भी जांच करें, जो दिन के अधिकतम घंटों के दौरान 9.5 को पार कर सकता है और रात के घंटों के दौरान 7.0 से नीचे गिर सकता है. विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार चूने या फिटकरी/जिप्सम का उपयोग करके श्रेष्टतम पीएच रेंज (7.5-8.5) बनाए रखें.
—किसानों को उच्च उत्पादकता प्राप्त करने के लिए तालाबों में अत्यधिक भंडारण और अत्यधिक भोजन या अत्यधिक खाद डालने से बचना चाहिए. इससे इनपुट लागत बढ़ती है और पानी की गुणवत्ता भी खराब होती है.तापमान और पीएच में वृद्धि के साथ अमोनिया विषाक्तता बढ़ जाती है, जिससे तनाव और बाद में बीमारी का प्रकोप या मृत्यु दर बढ़ जाती है. ऐसी स्थिति में, तालाबों को अच्छी तरह से हवादार रखें, सामान्य नमक डालें और विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार जिप्सम/फिटकरी डालें.
—मछली पालन में रोग प्रबंधन के लिए एक शानदार नियम है “इलाज से बेहतर रोकथाम है”, क्योंकि बड़े तालाब के पानी की मात्रा को कीटाणु रहित करना एक महंगा मामला है और स्थलीय जानवरों के विपरीत, पानी के नीचे की मछली का उपचार संभव नहीं है. डॉ. मीरा ने किसानों को चूना (50-100 किग्रा/एकड़, यदि पीएच<8.0 हो), पोटेशियम परमैंगनेट (1-2 किग्रा/एकड़) या ‘सिफैक्स’ (400 मिली/एकड़) के प्रयोग के साथ अनुशंसित रोगनिरोधी उपायों का पालन करने की सलाह दी.
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