नई दिल्ली. मछली और झींगा पालन में जलीय पीएच और जलीय तापमान की अहमियत है. उत्तर प्रदेश के मछली पालन विभाग की मानें तो इन दोनों की वजह से मछली और झींगा उत्पादन प्रभावित हो सकता है. पानी के तापमान की बात की जाए तो मछली और झींगा के मेटा बॉल्जिम, भोजन दर और अमोनिया विषाक्तता को प्रभावित कर सकता है. तापमान ऑक्सीजन की खपत दर पर सीधा प्रभाव डालता है और ऑक्सीजन की घुलनशीलता को भी प्रभावित करता है (गर्म पानी में ठंडे पानी की तुलना में कम घुलित ऑक्सीजन होता है).
तालाब में तापमान पूरी तरह से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है. जलीय जंतु अपने शरीर के तापमान को पर्यावरण के अनुसार बदलते हैं और तेजी से तापमान में बदलाव के प्रति संवेदनशील होते हैं.
तामपान में बढ़ोत्तरी से क्या होता है
हर एक प्रजाति के लिए, तापमान की स्थिति की एक सीमा होती है. इसलिए मछली और झींगा को टैंक से तालाब में स्थानांतरित करते समय अनुकूलित करना महत्वपूर्ण है.
तापमान में प्रत्येक 10 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि मेटा बाल्जिम, रासायनिक क्रियाएं और ऑक्सीजन खपत की दर को दोगुना कर देती हैं.
जलीय पीएच क्या है
पीएच पानी कि अम्लीयता या क्षारीयता को बताता है. मछली का औसत रक्त पीएच 7.4 होता है, इसलिए इसके करीब पीएच वाला तालाब का पानी अच्छा होता है.
जलीय कृषि प्रणालियों में इष्टतम पीएच स्तर 7.5-8.5 की सीमा में होना चाहिए. 4.0 से 6.5 और 9.0 से 11.0 के बीच pH वाले पानी में मछलियां तनावग्रस्त हो सकती हैं.
सुरक्षित सीमा पीएच बनाए रखना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मेटा बॉल्जिम और मछली और झींगा की अन्य शारीरिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करता है.
सीमा से बाहर के मान तनाव पैदा कर सकते हैं, बीमारी के प्रति संवेदनशीलता बढ़ा सकते हैं, उत्पादन स्तर कम कर सकते हैं और खराब विकास और यहां तक कि मृत्यु का कारण बन सकते हैं.
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