नई दिल्ली. कुछ लोगों का सोचना है कि मछली पालन करना बहुत खर्चीला है इसलिए अपनी परंपरागत खेती ही ठीक है. तालाब बनाने में बहुत खर्चा होता है. इतने पैसे कहां से लेकर आएंगे. अगर कुछ लोग ऐसा सोच रहे हैं तो वो गलत है. अब मछली पालन पहले जैसा बहुत खर्चीला और पेचीदा नहीं. तालाब खोदने की भी जरूरत नहीं.अब घर या खेत पर ही एक छोटे से टैंक के जरिए मछलियों का पालन कर सकते हैं. इस तकनीका नाम बायोफ्लाक तकनीक है. अगर इसके माध्यम से मछली पालन करेंगे तो किसान मोटी कमाई कर सकते हैं. उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के सतरिख क्षेत्र में किसानों के बीच ये तकनीकी बहुत तेजी से बढ़ रही है. कई गांवों में इस तकनीका का इस्तेमाल कर मछली पालन कर रहे हैं. एक टैंक बनाने में 40 हजार रुपये तक की लागत आती. अगर टैंक बनाकर मछली पालन करते हैं तो चार महीने में ही लागत की रकम का डेढ़ गुना तक मिलने की संभावना है.
देश की अर्थव्यवस्था में पशुधन बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. खासतौर पर अगर हम ग्रामीण परिवेश की बात करें तो पशुपालन के जरिए से प्राप्त होने वाली अतिरिक्त आय किसान, पशुपालकों को आत्मनिर्भर बनाती है. मछली पालन में भी किसानों के इसलिए मछली पालन कर किसान प्रतिवर्ष लाखों रुपये कमा सकते हैं. अगर आप सिस्टम के तहत काम करेंगे तो सरकार भी इसमें मदद करती है. केंद्र और प्रदेश सरकारें भारी छूट के साथ लोन देती हैं, जिससे पशुपालक या किसान मछली फार्म खोलकर मोटी कमाई कर सकते हैं.
ऐसे काम करती है बायोफ्लाक तकनीक
अब तो तालाब खोदने की भी जरूरत नहीं. टैंक के जरिए मछलियों का पालन कर सकते हैं. किसान बायोफ्लाक तकनीक के माध्यम से किसान मोटी कमाई कर सकते हैं. अब लोगों के दिमाग में आ रहा होगा कि ये बायोफ्लाक तकनीक क्या है. इसे लेकर परेशान होने की जरूरत नहीं, हम आपको आसान भाषा में समझा देते हैं. बायोफ्लाक तकनीक में बैक्टीरिया का प्रयोग किया जाता है. इस तकनीक के तहत मछलियों के लिए एक सीमेंट या मोटी पॉलिथीन से एक टैंक बनात हैं. उनमें इन मछलियों को डाल देते हैं. मछलियों को खाना दिया जाता है, उसका 75 फीसदी मल के रूप में बाहर निकाल देती हैं. बायोफ्लाक तकनीक इस मल को प्रोटीन के के रूप में तब्दील कर देती है, जिससे मछलियों खा जाती है जिससे उनका विकास तेजी से होता है.
एक टैंक में आता है इतना खर्चा आएगा
अगर मछली पालक दस हजार लीटर क्षमता का टैंक बनवाते हैं तो उसे बनाने में करीब 35 से 40 हजार रुपये की लागत आती है. इस टैंक का प्रयाग पांच सालों तक किया जा सकता है. इस तकनीक का प्रयोग कर कार्प, दसी मांगुर, सिंहि, पन्गेसियस और कॉमन कार्प प्रजाति की मछलियां बड़ी ही आसानी से पाल सकते हैं.
आप मछली पालो, सरकार करेगी मदद
मछली पालन करके किसान प्रतिवर्ष लाखों रुपये कमा सकते हैं. केंद्र और प्रदेश सरकारें भारी छूट के साथ लोन देती हैं. केंद्र सरकार की ओर से प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत बायोफ्लाक तकनीक से मछली उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए मत्स्य विभाग 40 से लेकर 60 फीसदी तक की सब्सिडी तक देती है. इस तकनीक से बराबंकी के 32 किसान आरएस विधि से काम कर रहे हैं.
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