नई दिल्ली. केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान CIRG की मानें तो मथुरा जिला भौगालिक स्थिति को देखा जाए तो ये बकरी पालन के लिए बहुत ही अच्छा है. जिले में हजारों की संख्या बकरियां हैं, जो बरबरी, जमुनापारी, सिरोही और अन्य नस्ल की हैं. आज भी ज्यादातर किसान बकरी पालन को परंपरागत तरीकों से ही कर रहे हैं, जिससे बकरियां अपनी 100 प्रतिशत नहीं दे पाती हैं. कहने का मतलब है कि उत्पादन क्षमता के मुताबिक प्रोडक्शन नहीं करती हैं. CIRG वैज्ञानिक बकरी पालन के लिए कहते हैं कि इसमें सांइटिफिक तरीकों को शामिल करना चाहिए. जिन्हें अपनाकर आप अपने लागत मूल्य की 3 से 4 गुना आमदनी ली जा सकती है.
बकरी पालन में सबसे पहले नंबर आता है बकरी की नस्ल और उत्तम बकरी नस्ल के चयन की. बकरी पालकों के लिए ये जानना बेहद ही जरूरी है कि किस नस्ल की बकरी को पालें. मथुरा की बात की जाए तो यहां बरबरी, जमुनापारी, सिरोही और जखराना नस्ल की बकरी अच्छी तरह पाली जाती हैं. अच्छी कीमत के लिए हमेशा शुद्ध नस्ल की बकरियां पालना चाहिए.
मादा का चयन कैसे करें
- मादा बकरी के चयन के लिए बकरी का पिछला हिस्सा तिकोना और पैर मुड़ा हुआ होना चाहिए.
- इस बात का ध्यान दें कि बकरी हैल्दी और नस्ल के अनुसार रूप, रंग और भार की हो.
- उम्र के हिसाब से थन का विकास सही हुआ हो.
- दो ब्यातों की बीच कम गैप होना चाहिए और जुड़वां बच्चे देती हो.
बीजू बकरे का चयन कैसे करें
- नस्ल के अनुसार रूप, रंग एवं कद-काठी अच्छी होनी चाहिए.
- शारीरिक रूप से पूरी तरह से हैल्दी होनी चाहिए.
- दोनों टेस्टीकल्स पूरी तरहह से विकास होने चाहिए.
- यह ध्यान दें कि बीजू बकरे अच्छी मां की संतान हों.
ब्रीडिंग प्रबंधन कैसे करें
- समान्य नस्ल के नर और मादा का प्रजनन करायें.
- पूरी तरह से मेच्योर होने के बाद (डेढ़ से दो वर्ष) बकरे का प्रजनन में इस्तेमाल करें.
- एक बकरा 20-30 बकरियों को गाभिन कराने के लिए पर्याप्त है.
- ध्यान रहे कि एक बकरे से हासिल बकरी फिर उसी बकरे (पिता से) गाभिन नहीं कराना चाहिए.
- मादाओं को गर्मी में आने के 12 घंटे बाद गाभिन करायें.
- बकरियों को गामिन कराने का बेहतर समय अक्टूबर-नवम्बर एवं मई-जून माह है.
- प्रसव से पहले बकरियों को दाने की मात्रा बढ़ा दें और अलग आवास व्यवस्था रखें.
मेमना प्रबंधन कैसे करें
- बच्चे के जन्म के बाद तुरंत साफ कपड़े से उसकी सफाई करें.
- नाभि को नई ब्लेड से काटकर टिन्चर आयोडीन डालें.
- मां का पहला दूध या खीस (कोलोस्ट्रम) बच्चे को तुरन्त पिलायें, इसके लिए जड़ गिरने का इंतजार न करें. इससे बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है.
- बच्चों को 15 दिन का होने पर हरा चारा देना शुरू करें एवं धीरे-धीरे दूध की मात्रा कम करें.
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