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Goat: बकरी पालन से किसानों-महिलाओं को फायदा पहुंचाने व इकोनॉमी मजबूत करने का ब्लूप्रिंट तैयार

नेशनल गोट समिट में मौजूद एक्सपर्ट.

नई दिल्ली. बकरी पालन से किसानों की आय को बढ़ाया जा सकता है. साथ ही महिलाओं को भी इससे फायदा पहुंचाया जा सकता है. वहीं देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में भी बकरी पालन का काम अहम है. इन चीजों का ब्लूप्रिंट तैयार करने के मकस से नेशनल गोट समिट का आयोजन किया गया. जहां 100 से अधिक हितधारकों ने एक स्मार्ट, समावेशी और जलवायु-संवेदनशील बकरी मूल्य श्रृंखला के लिए रोडमैप तैयार करने हेतु भाग लिया. समिट Passing Gifts – Heifer International की एक सहायक संस्था द्वारा आयोजित किया गया था, जिसमें ICAR-Central Institute for Research on Goats (CIRG) और GIZ India ज्ञान भागीदार के रूप में शामिल थे.

बताया गया कि इस आयोजन ने सरकार, निजी क्षेत्र, विकास संस्थानों, वित्तीय निकायों, किसान उत्पादक संगठनों और जमीनी उद्यमियों के नेताओं को एक मंच पर लाने का काम किया है. सम्मेलन का समापन नीति, वित्त, इनोवेशन और समुदाय-नेतृत्व वाली कामों को मानने राष्ट्रीय फ्रेमवर्क की मजबूत मांग के हुआ. जो स्केलेबल, जलवायु-स्मार्ट और महिला-नेतृत्व वाली बकरी मूल्य श्रृंखलाओं की नींव रखेगा. यह ढांचा PPP मॉडल को बढ़ावा देगा, मिश्रित वित्त का लाभ उठाएगा, और जोखिम न्यूनीकरण तंत्रों के माध्यम से निवेश को आकर्षित करेगा. जो ग्रामीण भारत के आर्थिक भविष्य के परिवर्तन की दिशा में रास्ता देगा.

अलका उपाध्याय ने नस्ल सुधार पर दिया जोर
गौरतलब है कि भारत में 148 मिलियन से अधिक बकरियां हैं और लगभग 3.3 करोड़ ग्रामीण परिवार बकरी पालन पर निर्भर हैं. इसके बावजूद, यह क्षेत्र अभी भी अपर्याप्त पशु चिकित्सा देखभाल, गुणवत्तापूर्ण चारे की कमी, कम उत्पादकता और सीमित बाज़ार कनेक्टिविटी जैसी प्रणालीगत चुनौतियों से जूझ रहा है. समि​ट में पशुपालन एवं डेयरी विभाग की सचिव अल्का उपाध्याय ने ग्रामीण परिवर्तन को आगे बढ़ाने में बकरी क्षेत्र की विशाल लेकिन कम उपयोग की गई संभावनाओं पर बल दिया. उन्होंने ज्ञान, साझेदारी और नस्ल सुधार प्रयासों के समन्वय के लिए एक राष्ट्रीय संसाधन संगठन की आवश्यकता पर जोर दिया. पश्चिम बंगाल के ब्लैक बंगाल बकरी क्लस्टर की सफलता का उदाहरण देते हुए, उन्होंने टीकाकरण, कृत्रिम गर्भाधान और बाज़ार पहुंच में सुधार के लिए डेटा-आधारित, क्लस्टर आधारित दृष्टिकोण की सिफारिश की. उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय डेटा का बेंचमार्किंग निजी निवेश को आकर्षित करेगा और अधिक लक्षित, उच्च-प्रभाव हस्तक्षेपों को सक्षम बनाएगा.

उत्पादकता को बढ़ावा है मकसद
CIRG के निदेशक डॉ. मनीष कुमार ने कहा कि ‘विकसित भारत रोडमैप फॉर द बकरी सेक्टर’ का अनावरण किया – एक दूरदर्शी रणनीति जिसका उद्देश्य उत्पादकता बढ़ाना, लचीलापन मजबूत करना और विज्ञान-संचालित, जलवायु-स्मार्ट नवाचारों के माध्यम से मूल्य श्रृंखला एकीकरण को आगे बढ़ाना है. GIZ India ने ERADA और AVCERR जैसे इंडो-जर्मन विकास सहयोग परियोजनाओं के माध्यम से समुदाय-केंद्रित दृष्टिकोणों और ग्रामीण विकास कार्यक्रमों को अपनाने पर बल दिया, जिससे सफल आजीविका मॉडल को राज्यों और राष्ट्रीय स्तर पर स्केल किया जा सके. महात्मा गांधी नरेगा और एनआरएलएम जैसे कार्यक्रमों से जुड़ी बकरी, सहजन, मछली पालन और आम मूल्य श्रृंखलाएं इसके उदाहरण हैं.

महिलाओं को केंद्र में रखते हुए इंटीग्रेटेड मॉडल
दिन भर विशेषज्ञ पैनलों ने छोटे किसानों के लिए वित्तपोषण के अभिनव तरीकों, अंतिम छोर तक पशु चिकित्सा सेवाएं पहुँचाने, और मजबूत साझेदारियों के माध्यम से लचीली मूल्य श्रृंखलाएं बनाने पर चर्चा की. इन वार्तालापों ने नीति, निजी निवेश और नवाचार के अपनाने की जरूरतों की ओर इशारा किया. वहीं Passing Gifts की कार्यकारी निदेशक रीना सोनी ने कहा, “हमारा उद्देश्य महिलाओं और छोटे किसानों को केंद्र में रखते हुए इंटीग्रेटेड मॉडल के माध्यम से बकरी-आधारित आजीविका को सशक्त बनाना है.” GIZ India की सीनियर एडवाइजर मीखा हन्ना पॉल ने सभी साझेदारों को धन्यवाद देते हुए इसे बकरी क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण सहयोगात्मक प्रयास बताया. GIZ के फरहाद वानिया ने भारत में एग्रोफॉरेस्ट्री, कृषि और बकरी संबंधित परियोजनाओं में इंडो-जर्मन साझेदारी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया. सम्मेलन में Zappfresh, Licious, Chevon, NABARD, INFAH, ICAR-NRCM, और गेट्स फाउंडेशन सहित प्रमुख उद्योग प्रतिनिधियों और अनुभवी बकरी उद्यमियों व तकनीकी विशेषज्ञों ने भाग लिया.

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