नई दिल्ली. भारत में 37 नस्ल की बकरियों का पालन किया जाता है. इन नस्लों की बकरियों में सिरोही नस्ल भी प्रमुख होती है. वैसे तो ये एक मध्यम आकार की बकरी है लेकिन इसका पालन किसान मीट और दूध उत्पादन दोनों के लिए करते हैं. एक्सपर्ट कहते हैं कि छोटे और सीमांत किसानों के लिए सिरोही बकरी पालन जीविकोपार्जन के लिए एक बेहतर विकल्प हो सकता है. क्योंकि इस बकरी पर हर दिन 4 से 5 रुपये का ही खर्च आता है और ये आसानी से पाली जा सकती है. ये बकरी मूल रूप से राजस्थान के सिरोही जिले की मानी गई है. यही वजह है कि इसी जिले के नाम पर इस नस्ल का नाम भी सिरोही पड़ गया है. इस नस्ल के बकरों के वजन की बात की जाए तो 50-60 किलो और बकरियों का का 30 किलो तक होता है. वहीं बकरी एक दिन में 750 ग्राम से 1 लीटर तक दूध देती है.
दो बच्चे को देती है जन्म
सिरोही नस्ल की बकरी राजस्थान के अलावा उत्तर प्रदेश और गुजरात में भी पायी जाती है. वैसे इसका पालन अब भारत के अन्य हिस्सों में भी किया जाता है. इसकी पहचान की बात की जाए तो यह छोटे आकार का जानवर है. इसके शरीर का रंग भूरा होता है. वहीं शरीर पर हल्के या भूरे रंग के धब्बे भी देखने को मिलते हैं. कान इसके चपटे और लटके हुए होते हैं. जबकि सींग मुड़े हुए. बाल छोटे और मोटे होते हैं. वहीं नर सिरोही के शरीर की लंबाई लगभग 80 सेमी तक होती है. जबकि मादा की लंबाई लगभग 62 सेमी तक होता है. एक्सपर्ट कहते हैं कि इसकी 60 प्रतिशत से ज्यादा संभावना होती है कि ये दो बच्चों को जन्म दे.
विशेष प्रकार का भोजन स्थल बनाना चाहिए
एक्सपर्ट कहते हैं कि ये नस्ल बहुत ही जिज्ञासु प्रकृति की होती है. इनके दाने खाने की बात की जाए तो ये विभिन्न प्रकार के भोजन, जो कड़वे, मीठे, नमकीन और स्वाद में खट्टे होते हैं सभी को खा लेती हैं. वैसे स्वाद और आनंद के साथ फलीदार भोजन जैसे लोबिया, बरसीम, लहसुन आदि खाना इन्हें पसंद होता है. मुख्य रूप से ये चारा खाना ज्यादा पसंद करते हैं. जिससे उन्हें ऊर्जा और उच्च प्रोटीन मिलता है. एक खराब आदत भी इस नस्ल की होती है कि ये भोजन वाले स्थान पर पेशाब कर देती हैं, जिससे भोजन खराब हो जाता है. इससे बचने के लिए विशेष प्रकार का भोजन स्थल बनाना चाहिए.
बीमारी से बचाने के लिए क्या करें
एक्सपर्ट के मुताबिक सिरोही बकरियों की अच्छी सेहत के लिए कुछ खास टिप्स पर ध्यान देना चाहिए. गाभिन बकरी के ब्याने के 6-8 सप्ताह पहले ही दूध नहीं निकालना चाहिए. वहीं ब्यांत वाली बकरियों को ब्याने से 15 दिन पहले साफ, खुले और कीटाणु रहित ब्याने वाले कमरे में में रखने की सलाह एक्सपर्ट देते हैं. जन्म के तुरंत बाद मेमने के पूरे शरीर को साफ सुथरे और सूखे कपड़े से साफ करना चाहिए. वहीं उसके नाक, मुंह, कान में से जाले साफ करना चाहिए.इन बकरियों का क्लोस्ट्रीडायल बीमारी से बचाव करना जरूरी होता है. इसके लिए वैक्सीन जरूर लगवाना चाहिए. जब बच्चा 5-6 सप्ताह का हो जाए, तब रोग से लड़ने के लिए टीकाकरण कराएं.
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