नई दिल्ली. बकरी को गरीबों की गाय कहा जाता है. हालांकि बकरी पालन बड़े पैमाने पर भी की जाती है और इससे बकरी पालक लाखों कमाते हैं. हाल ही में बकरीद का त्योहार गुजरा है और बकरी पालकों की खूब कमाई हुई है. बकरी पालन करते हैं तो सरकार भी मदद करती है और इसके लिए बकायदा तौर पर लोन और सब्सिडी भी दी जाती है. बकरी पालन से मीट और दूध बेचकर कमाई की जा सकती है. बस इसमें इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि बकरी को बीमारी न लगे. अगर बकरी बीमार पड़ गई तो फायदा नुकसान में बदलते देर नहीं लगेगी.
आमतौर पर भारतीय ग्रामीण अंचल में उचित पशुचिकित्सा सुविधाओं व कार्यक्रमों के अभाव में, बकरियां विशेषकर उनके बच्चों में असामान्य मृत्युदर के शिकार हो जाते हैं. बकरी समूहों में अधिकांश मृत्यु दर, संक्रामक, परजीवी अथवा पोषण सम्बन्धित रोगों के कारण होती है. संक्रामक रोग आमतौर पर बैक्टीरिया, वायरस, माइकोप्लाज्मा, प्रोटोजोआ और फंफूदी जनित होते हैं लेकिन इनमें से कई रोग संक्रामक नहीं होते. कई बार रोग कारक स्वस्थ पशु शरीर में ही रहता है लेकिन पोषण या अन्य प्रतिबल की दशा में यह रोग जनक बन जाता है.
इन बीमारियों से बचाएं
संक्रामक रोग के कारक वायरस, बैक्टीरिया व बाह्य परजीवी, प्रोटोजोआ, माइकोप्लाज्मा मुख्य रूप से होते हैं. इन बीमारियों से बकरियों को बचाना बेहद जरूरी होता है. एक्सपर्ट कहते हैं कि बकरियों को बीमारियों से बचाने के लिए समय-समय पर टीका लगवाते रहना चाहिए. अगर बकरी बीमार पड़ जाते तो तुरंत स्वस्थ बकरी से उसे अलग कर देना चाहिए. इससे हेल्दी बकरियों को बचाया जा सकता है. अगर बकरियों को बीमारियों से बचा लिया जाए तो उत्पादन बेहतर होगा और बकरी पालक को इसका ज्यादा फायदा मिलेगा.
ये है बीमारी की पहचान
बकरियों में वायरस से होने वाला पी.पी.आर. (बकरी प्लेग) यह अत्यधिक संक्रामक व घातक विषाणु जनित रोग है. विशेषकर नवजात शिशुओं में इस रोग का असर व मृत्यु दर काफी ज्यादा है. इस रोग से करीब 80-90 प्रतिशत बकरियां ग्रसित हो जाती हैं. व उनमें 40-70 प्रतिशत तक बकरियों की मृत्यु हो जाती है. इस बीमारी की मुख्य पहचान के रूप में तेज बुखार, दस्त, आँख व नाक से पानी आना, न्यूमोनिया व मुँह में छाले पड़ जाना है.
तुरंत टीकाकरण करवाएं
इस रोग का उपचार सफल नहीं है फिर भी जीवाणुओं के खिलाफ दिया गया उपचार सेकेंडरी संक्रमण को रोकते हुए कुछ पशुओं की रक्षा कर सकता है. बाजार से खरीदकर लाई गई बकरियों को टीकाकरण के बाद ही अपने स्वस्थ रेबड़ में मिलाना चाहिए. 4 माह की आयु से ऊपर के सभी बच्चों / बकरियों में पी.पी.आर. रोग का टीकाकरण ही रोग की रोकथाम का एक मात्र व अन्तिम उपाय है।
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