नई दिल्ली. पशुपालन करने वाले पशुपालक भाई इस बात को जानते हैं कि पशुओं को हरा चारा खिलाना कितना जरूरी है. हरे चारे विटामिन ए और खनिज भरपूर मात्रा में होते है. जिससे पशु इसे बहुत ही चाव से खाते हैं और ये आसानी के साथ पच भी जाता है. जबकि पशुओं के चाव से खाने और आसानी से पच जाने कारण दूध उत्पादन भी बेहतर मिलता है. वहीं हरा चारा खिलाने का ये भी फायदा है कि इससे पशु की प्रजनन शक्ति बढ़ती है. जबकि पशु समय पर गर्मी में आता है और दो ब्यातों के बीच का अंतर कम हो जाता है. इसलिए ऐसे हरे चारे का इस्तेमाल करना चाहिए, जो पशुओं को ज्यादा फायदा पहुंचाए.
अंजन घास को सफेद धमन, वफल घास, चारवां कोलूकती घास आदि नामों से भी जाना जाता है. यह अच्छी गुणवत्ता वाली बहुवर्षीय घास है. इसे सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया और भारत में उगाया गया था. भारत में इसकी खेती पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात एवं तामिलनाडू में काफी होती है. अंजन घास की खासियत ये है कि इसमें 8.36 प्रतिशत प्रोटीन, 30.54 प्रतिशत क्रूड फाइबर, 0.7 प्रतिशत कैल्शियम और 0.72 प्रतिशत फास्फोरस पाया जाता है. अन्य घास की तुलना में यह पशुओं के अधिक खाने योग्य साबित हुआ है.
जलवायुः इसकी खेती 150 से 1250 मिमी बारिश वाली जगहों पर की जा सकती है. यह बारिश के अलावा सूखा भी सहन कर सकती है. इसकी बढ़वार में सूखा और नमी दोनों रुकावट नहीं आती है.
मिट्टीः बलुई मिट्टी, पठारी, मरूभूमि, बलुई दोमट और आधे सूखा क्षेत्र में इसकी खेती आसानी के साथ की जा सकती है. यहां तक कि यह भारी मटियार भूमि में भी उग सकती है. भूरा दोमट युक्त मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त मानी गयी है.
बुआई का समयः इसकी बुआई बारिश शुरू होने पर करना सबसे अच्छा होता है. मॉनसून के पहले भी इसकी बुआई की जा सकती है. हालांकि वसंत काल, बुआई के लिए सही समय नहीं होता है.
बीज दरः इसकी बुआई बीज और रूट-स्लिप दोनों विधियों से की जा सकती है. तुरंत तैयार बीज इसकी बुआई के लिए सही नहीं होता है. दौनी के बाद 3 से 8 माह बीज को स्टोर करने के बाद ही बुआई करनी चाहिए. नया बीज का उभार प्रतिशत बहुत ही कम होता है. इसके बीज में उभरने की क्षमता 30 से 60 प्रतिशत तक ही होती है. हालांकि इसके बीज को 3 से 4 वर्ष तक रखा जा सकता है. बीज दर मिट्टी, बारिश के दौरान और जलवायु पर निर्भर करता है. सूखे क्षेत्रों में बीज दर दो से ढाई किलोग्राम प्रति हेक्टेयर काफी होता है. जबकि अच्छी बारिश वाले क्षेत्रों के लिए 3 से 5 किलोग्राम, प्रति हेक्टेयर की दर से बीज डालनी चाहिए.
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