नई दिल्ली. वैसे तो मछली पालन एक फायदे का सौदा है और अब बहुत से किसान मछली की खेती करके लाखों में कमाई कर रहे हैं. सरकारें भी ऐसी जमीनों पर जो कृषि योग्य नहीं हैं. वहां मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए तमाम योजनाएं चलाती रहती हैं. ताकि किसान अपनी खाली-पड़ी जमीन पर मछली पालन करके कमाई कर सकें. यही वजह है कि किसान भी मछली पालन करने में भी रुचि ले रहे हैं.
मछली पालन में सबसे ज्यादा नुकसान मछलियों की बीमारी के कारण होता है. इसमें फंगल डिसीज भी खतरनाक है. जो आद्रता बढ़ने पर बारिश के मौसम में फैलती है. इन मौसम में ज्यादा तेजी के साथ मछलियों को अपना शिकार बनाते हैं. फंगल डिजीज दो तरह की होती है. इन बीमारी में मछली के अंडे, स्पान तथा नवजात और घायल बड़ी मछलियों पर फफूंद लग जाता है और यह शरीर के घायल अंगों पर जगह शेल्टर बनाकर फलते-फूलते हैं.
सेप्रोलिग्नीयोसिस
सेप्रोलिग्नीयोसिस नाम का फफूंद जो जाल चलाने और परिवहन के दौरान मछलियों को घायल कर देता है. घायल हो जाने पर शरीर पर चिपक जाता है और तेजी के साथ फैलने लगता है. इससे स्किन सफेद जालीदार सतह बन जाती है. या सबसे घातक रोग होता है. इसमें जबड़े फूल जाते हैं. अंधापन होने का खतरा रहता है. पैक्टोरलफिन और कौंडलफिन के जोड़ पर खून जमा हो जाता है. रोग ग्रस्त भाग पर रूई के समान गुच्छे उभर जाते हैं. मछली कमजोर तथा सुस्त हो जाती है.
इलाज
तीन प्रतिशत नमक का गोल या 1:1000 भाग पोटाश के घोल या 1:2000 कैल्शियम सल्फेट के गोल में 5 मिनट तक डुबोने तथा इस रोग के समाप्त होने तक दोहराने से फायदा होता है.
ब्रेकियोमाइसिस
इस बीमारी का आक्रमण गर्लफड़ों पर होता है. जो कुछ समय के बाद सड़-गल कर गिर जाते हैं. उपचार की बात की जाए तो 250 पीपीएम का फार्मिलिन घोल बनाकर मछली को नहलाना चाहिए. तीन प्रतिशत सामान नमक के घोल में मछली को विशेष कर गलफड़ों को धोना चाहिए. पानी का 1.2 पीपीएम कॉपर सल्फेट नीला थोथा से उपचार करना बेहतर होता है. पोखर में 15 से 25 पीपीएम की दर से फॉर्मलीन डालना चाहिए.
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