Home पशुपालन Sheep Farming: गर्भकाल में भेड़ को कितने चारे की होती है जरूरत, यहां पढ़ें डाइट प्लान
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Sheep Farming: गर्भकाल में भेड़ को कितने चारे की होती है जरूरत, यहां पढ़ें डाइट प्लान

muzaffarnagari sheep weight
मुजफ्फरनगरी भेड़ की प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. पांच महीने के गर्भकाल में भेड़ों का शारीरिक वजन 7 किलो से 15 किलो तक बढ़ जाता है. यह वजन मेमने और अन्य सामग्री के कारण बढता है. बच्चा पैदा होने पर वनज घट कर पुराने स्तर पर आ जाता है. क्योंकि भेड़ों के लिए यह अवधि (लेक्टेशन) दूध देने और दूध पिलाने की नजर से गर्भावस्था की अपेक्षा अधिक कठिन होती है. इसलिए यह आवश्यक है कि दूध पिलाने की अवस्था में यदि मेमने को उचित मात्रा में दूध मिले तो उसके यथोचित विकास में सहायता मिलती है व मेमने की मृत्यु दर में अपेक्षाकृत कमी आती है.

जहां तक संभव हो सके गर्भावस्था में भी भेड़ों को अच्छे चरागाहों और घासों पर रखना चाहिए. यदि मेमने बसन्त ऋतु में हो तो जाड़ों में उनको खने की कम हो जाती है. अतः उन्हें पेड़ों की पतियां, सूखी घास और फलीदार पतियां आदि अलग से खिलानी चाहिए. इस दौरान प्रोटीनयुक्त चारा इनके लिए अत्याधिक लाभदायक होता है. जहां कहीं सम्भव हो उन्हें मक्का, गेहूं, जई, लूर्सन आदि इस दौरान दी जा सकती है.

इस तरह देनी चाहिए खुराक
जो भेड़ खास तौर से जाड़ों में बच्चा देती है. उन्हें अतिरिक्त खाद्य की विशेष आवश्यकता होती है. वैसे गर्भावस्था के समय सभी भेड़ों को अतिरिक्त साबूत दाने की आवश्यकता पड़ती है. क्योंकि इस अवस्था में उन्हें अतिरिक्त शक्ति की आवश्यकता होती है. इसलिए इस अवधि में उन्हें शक्ति प्रदान करने वाले खाद्यों की नितान्त आवश्यकता होती है. इसी दौरान भेड़ों की खुराक घट जाती है. इसलिए पौष्टिक तथा पाचक पदार्थो व सन्तुलित खाद्य की नितान्त आवश्यकता होती है. बच्चा होने के 1 से 1.5 माह पहले ही उन्हें इस प्रकार की खुराक देनी चाहिए.

पोष्टिक भोजना की होती है जरूरत
विशेषज्ञों के मुता​बिक भेड़ों को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक है कि उनको पौष्टिक भोजन, पानी, नमक आदि नियमित रूप से समय पर मिलते रहे. रोगों से छुटकारा पाने के लिए इस बात का विशेष ध्यान रखने की जरूरत पड़ती है कि जो चारा या पानी भेड़ों को दिया जाए वह साफ सुथरा हो. चूंकि ज्यादातर भेड़े चारागाहों में चरकर अपना भोजन तलाश कर लेती हैं तो यहां पशुपालकों को इस बात का ध्यान देना चाहिए कि ऐसी चारागाहों में चरने के लिए न ले जाएं जहां पर घास उनकी सेहत को नुकसान पहुंचा दे.

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