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Fisheries: ठंड में मछली पालक अगर नहीं करते हैं ये काम तो मरने लगती हैं मछलियां, पढ़ें डिटेल

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तालाब में मछली निकालते मछली पालक

नई दिल्ली. अक्टूबर के महीने की शुरुआत हो चुकी है और अब धीरे-धीरे मौसम बदलेगा. गर्मियों का दिन सर्दियों में तब्दील हो जाएगा. ऐसे दिनों में मछलियों का खास ख्याल रखने की जरूरत होती है. जो भी फिश फार्मर्स हैं, उन्हें मछलियों की देखभाल में और ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है. एक्सपर्ट का कहना है कि अगर मछलियों की देखरेख में ठंड के दौरान लापरवाही की जाती है तो ऐसे में मृत्यु दर बढ़ जाती है. इसके चलते मछली पालक को फायदे की जगह नुकसान होने लगता है. अगर बात की जाए जनवरी में पड़ने वाली कड़ाके की ठंड की तो इस दौरान मछलियों की ग्रोथ कम होती है. वहीं मछलियां सुस्त होने लगती हैं. इसलिए ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है.

एक्सपर्ट का कहना है कि ठंड में मछलियां स्वस्थ रहती हैं और उनकी गतिविधि बिल्कुल कम हो जाती है. ऐसे में वह भोजन भी नहीं खाती हैं. 15 डिग्री सेल्सियस तापमान से कम होने पर मछली को पूरक आहार देना बंद कर देना चाहिए. क्योंकि इस दौरान मछलियां पूरक आहर को भी नहीं खाती हैंं.

कितना होना चाहिए पानी का स्तर
ठंड के मौसम में प्राकृतिक आहार की उपलब्धता तालाब में बनाने के लिए हर एकड़ में 10 से 15 दिन तक के गैप पर 15 किलोग्राम चूना, 15 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 5 किलो मिनरल मिक्सचर और 50 किलोग्राम सरसों या राई की खाली पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए. वहीं तापमान ज्यादा हो जाने पर तालाब में किसी तरह का पूरक आहार, चूना, खाद गोबर और दवा आदि का छिड़काव नहीं करना चाहिए. ठंड में कार्प मछली वाले तालाब में न्यूनतम पानी का स्तर 5 से 6 फीट और पेंगिशियस मछले वाले तालाब में पानी का स्तर 8 से 10 फीट बनाए रखना चाहिए. पेंगिशियस तालाबों में 10 से 20 फीसदी तक पानी का बदलाव ट्यूबवेल से करना बेहतर होता है.

संक्रमण होने पर क्या करें
एक्सपर्ट का कहना है की मछली बीज उत्पादन के लिए ब्रीडिंग जनवरी के आखिरी में या फरवरी माह से शुरू करने के लिए 15 से 20 दिन पहले नर और मादा के बूड को दो अलग-अलग तालाबों में संचयन कर लेना चाहिए. मछली ब्रूड को अरगुलस के संक्रमण से बचने के लिए जरूरत के मुताबिक 80 से 100 एमएल प्रति एकड़ की दर से बुटौक्स, क्लीनर या टिनिक्स का छिड़काव दिन में 10:00 बजे से 2:00 बजे के बीच किया जा सकता है. ठंड में मछलियों को पैरासाइटिक संक्रमण और फफूंद होने का भी खतरा रहता है. 40 से 50 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से नमक घोलकर डाल दिया जाए या बीकेसी दवा 1 लीटर प्रति एकड़ की दर से घोल दें तो यह प्रॉब्लम नहीं होगी.

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