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IIMR नई तकनीकों से मक्का उत्पादन बढ़ाएगा, जानें क्या होगा इसका फायदा

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प्रतीकात्मक फोटो.

नई दिल्ली. अब देश में मक्का की कमी दूर होने वाली है. दरअसल, केंद्र सरकार इथेनॉल तैयार करने के ल‍िए मक्का उत्पादन बढ़ाने की कोश‍िश में है. इसको देखते हुए इंड‍ियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेज र‍िसर्च (IIMR) को जिम्मेदारी दी है. इसके ल‍िए ‘इथेनॉल उद्योगों के जलग्रहण क्षेत्र में मक्का उत्पादन में वृद्धि’ नाम से एक प्रोजेक्ट की शुरुआत की गई. गौरतलब है कि इथेनॉल का उत्पादन गन्ना, मक्का और कटे चावल से होता है लेक‍िन गन्ने और धान की फसल में ज्यादा पानी की खपत होती है. वहीं मक्का में बहुत कम पानी लगता है. इसको देखते हुए इथेनॉल के ल‍िए मक्के का उपयोग पर फोकस क‍िया जा रहा है. नई तकनीक से उत्पादन बढ़ाया जाएगा.

बता दें कि केंद्र सरकार ने 2025-26 तक पेट्रोल में 20 प्रतिशत इथेनॉल मिलाने का टारगेट सेट किया है. इसको देखते हुए आईआईएमआर 15 राज्यों के 78 जिलों के 15 जलग्रहण क्षेत्रों में मक्का उत्पादन बढ़ाने के ल‍िए काम कर रहा है. कृषि मंत्रालय ने भी अगले पांच वर्षों में मक्का उत्पादन में 10 मिलियन टन के इजाफे की बात कही है. इस प्रोजक्ट को लीड कर रहे आईआईएमआर के वरिष्ठ मक्का वैज्ञानिक डॉ. एसएल जाट का कहना है क‍ि मक्का से इथेनॉल उत्पादन की तकनीकें उपलब्ध हैं. इसलिए इसपर फोकस किया जा रहा है. गौरतलब है कि मक्का के उत्पादन से पोल्ट्री सेक्टर को भी फायदा होगा.

उत्पादन बढ़ाने की कोश‍िश
ज्यादा उपज देने वाली संकर किस्में (खरीफ में 6.5 टन/हेक्टेयर से अधिक और रबी में 10 टन/हेक्टेयर से अधिक) तमाम इकोलॉजी में खेती के लिए उपलब्ध हैं. बेहतर इथेनॉल रिकवरी 40% से अधिक वाली मोमी मक्का संकर की कुछ किस्में पाइपलाइन में हैं और कुछ खेती के लिए उपलब्ध हैं. ज्यादा स्टार्च 65% से अधिक संकर किस्में पाइपलाइन में हैं. बेहतर मक्का की खेती के लिए प्रभावी पोषक तत्व और खरपतवार प्रबंधन मेथड भी उपलब्ध हैं. वहीं चावल और गन्ने की तुलना में मक्का तैयार होने में कम समय लगता है. इसल‍िए मक्के की खेती इथेनॉल के ल‍िए सबसे ठीक है.

क‍ितना है उत्पादन
बताते चलें कि आईआईएमआर के अनुसार 2022-23 के दौरान देश में 38.09 म‍िल‍ियन टन मक्का का उत्पादन हुआ है. ज‍िसमें खरीफ सीजन के दौरान 23.67, रबी सीजन में 11.69 और जायद में 2.73 म‍िल‍ियन टन उत्पादन शाम‍िल है. इस समय मक्के की राष्ट्रीय औसत उत्पादकता 1.44 टन प्रत‍ि एकड़ है. रबी सीजन में सबसे ज्यादा 2.17 टन प्रत‍ि एकड़ प्रोडक्शन होता है. जबक‍ि खरीफ सीजन में 1.19 टन ही उत्पादकता है. आईआईएमआर के वैज्ञान‍िकों के अनुसार किसानों के खेत में संभावित औसत उपज बढ़ सकती है. यह खरीफ सीजन में 2.0 से 2.5 टन प्रत‍ि एकड़, रबीमें 3.0 से 3.5 और जायद में 2.5-3 टन प्रत‍ि एकड़ तक हो सकती है। नई क‍िस्मों और तकनीकों के माध्यम से संस्थान ऐसा करने की कोश‍िश कर रहा है.

शुरू हो गया है रिसर्च
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मेज रिसर्च (IIMR) के निर्देशक डॉ हनुमान सहाय जाट कहते हैं कि कि भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान इथेनॉल को बढ़ावा देने के लिए 78 जिलों में कम से कम एक साल में दो बार मक्के की खेती के लिए काम कर रहे हैं और नई किस्मों को विकसित कर रहें है. इसमे राज्य सरकार और निजी बीज़ कंपनियों के साथ काम मिलकर किया जा रहा है. इसके अलावा संस्थान उच्च उपज और हर क्लाइमेट में अच्छ उत्पादन देने वाली किस्मों को विकसित में जुटा है. बायो एथेनॉल उत्पादन की प्रक्रिया को बनाने के संबंध में भी रिसर्च किया जा रहा है.

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