नई दिल्ली. राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, इंपीरियल इंस्टीट्यूट फॉर एनिमल हस्बैंड्री एंड डेयरी से तब्दील हुआ. इसकी स्थापना वर्ष 1923 में बैंगलोर में की गई थी. अपने 93 सालों से अधिक के सफर में इस संस्थान ने एक राष्ट्रीय संस्थान के रूप में खुद को प्रतिष्ठित कर लिया है. ये संस्थान अनुसंधान और शिक्षा के माध्यम से डेयरी उद्योग भारत और एशिया तथा अफ्रीका के अन्य विकासशील देशों की मानव संसाधन आवश्यकताओं को पूरा करता है. 1923 में बैंगलोर में सैन्य डेयरी फार्म के परिसर में डेयरी प्रशिक्षण और अनुसंधान केंद्र के रूप में इंपीरियल इंस्टीट्यूट ऑफ एनिमल हस्बैंड्री एंड डेयरी की स्थापना की थी. बाद में, करनाल में मवेशी-सह-डेयरी फार्म (पुराना करनाल फार्म) के परिसर में एक डेयरी साइंस कॉलेज के साथ मिलकर राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान को स्थापित करने का फैसला लिया गया. बैंगलोर में पहले से ही विकसित प्रभावशाली बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के मकसद से यूनिट को संस्थान के दक्षिणी क्षेत्रीय स्टेशन के रूप में पुनर्गठित किया गया था. जून 1955 में डेयरी अनुसंधान निदेशक का मुख्यालय करनाल में स्थानांतरित कर दिया गया था.
दूध उत्पादन में वृद्धि के साथ ये काम करता है संस्थान
संस्थान के लक्ष्य की बात की जाए तो दूध उत्पादन में वृद्धि के लिए उन्नत दुधारू पशुओं की खोज और सृजन और प्रसार के लिए अनुसंधान एवं विकास सहायता प्रदान करना करना है. वहीं डेयरी उद्योग की अधिक उत्पादकता और डेयरी पेशे के प्रबंधन पहलुओं के लिए राष्ट्र को सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ प्रदान करना भी इस संस्थान का मकसद है. 1970 में, अनुसंधान के क्षेत्र में प्रबंधन कार्य में अधिक से अधिक परिचालन स्वायत्तता प्रदान करने के मकसद से एनडीआरआई को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत लाया गया था. वहीं 1989 में मानव संसाधन विकास के लिए शैक्षणिक कार्यक्रम को और मजबूत करने के लिए संस्थान को मानद विश्वविद्यालय के दर्जे से सम्मानित किया गया था. जबकि 1990 में, दुनिया के पहले आईवीएफ भैंस के बछड़े का जन्म एनडीआरआई के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ.
यहां पढ़े संस्थान ने जिन उपलब्धियों को हासिल किया
ये संस्थान दुनिया में पहला आईवीएफ (इन विट्रो निषेचन में) भैंस बना कर राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान ने विश्व भर में प्रसिद्धि हासिल की. दुनिया की पहली क्लोन भैंस के बछड़े के साथ, भारत ने डॉली भेड़ का जवाब दिया था, लेकिन डॉली के विपरीत, फेफड़ों के संक्रमण से पांच दिनों के बाद ही मर गयी थी. पहला क्लोन बछड़ा 6 फ़रवरी 2009 को पहला पैदा हुआ था. हालांकि यह केवल छह दिन के लिए जिया. वहीं 9 मार्च 2012 को विश्व की पहली पशमीना बकरी नूरी पैदा हुई. वहीं 25 जनवरी 2013 को सामान्य प्रसव द्वारा क्लोन भैंस गरिमा ने एक महिला बछड़ा “महिमा” को जन्म दिया था. दुनिया में, पहली बार क्लोन भैंसों के माध्यम से बछड़ा जन्मा था. इसका वजन 32 किलो था. वहीं 18 मार्च 2013 को एक क्लोन बछड़ा ‘स्वर्ण’ पैदा हुआ. यह जिंदा है और स्वस्थ है. इसी साल वहीं 6 सिंतबर, 2013, को एक क्लोन मादा भैंस ‘पूर्णिमा’ पैदा हुई. अगले साल 2 मई, 2014 को लालिमा “हाथ-गाइडेड क्लोनिंग तकनीक” के माध्यम से पैदा हुई थी. “हाथ-गाइडेड क्लोनिंग तकनीक” के माध्यम से 23 जुलाई, 2014 को ‘रजत’ नाम का एक बछड़ा पैदा किया गया था.
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