नई दिल्ली. कहते हैं कि किसी भी कार्य की अति हमेशा हानिकारक होती है. ऐसा ही जैसलमेर के साथ हो रहा है. भारत के 35% सोलर प्लांट राजस्थान में लगे है. राजस्थान के भी 65% सोलर प्लांट जैसलमेर में लगे हैं. ऐसा नहीं कि अब जैसलमेर में कोई सोलर प्लांट नहीं लगेगा. बीसियों सोलर प्लांट निर्माणाधीन है और सैकड़ों सोलर प्लांटों के लिए दलाल एवं कंपनियां जैसलमेर में जमीनें खोज रहें. देश को विद्युत चाहिए क्योंकि विद्युत देश के विकास का प्रमुख पायदान है, लेकिन क्या जैसलमेर को ही निचोड़ कर देश का विकास निकलेगा. जैसलमेर पशुपालन-आधारित जिला है. यहां कि 70% जनसंख्या पशुपालन पर पलती है जो भी शांति-सुकून और संपन्न्ता के साथ हो सकता है.
राजस्थान में जैसलमेर के सीमावर्ती क्षेत्र में चारागाहों में सैकड़ों कुएं है, जिनके जल से आमजन का जीवन चलता ही है, जैसलमेर कम वर्षा वाला क्षेत्र है, इसलिए यहां पर खेती कम पशु पालन बड़ी मात्रा में होता है. पशुपालन के लिए ही स्थानीय लोगों ने अपने चारागाहों (ओरण- गोचर) में यह कुएं बनाएं, जिससे उन्हें व उनके पशुधन को पानी मिल सके. इस क्षेत्र लाखों पशुओं के लिए सैकड़ों की संख्या पर कुएं हैं. इन सभी कुंओं पर लाखों की संख्या में पशु पानी पीते हैं. मगर, सरकार ने इन चारागाह, गोचर और ओरण की जमीन को विंड कंपनियों को आंवटित करना चाहती है. इन ओरण, चारागाह को बचाने के लिए बड़ा अभियान छिड़ा हुआ है. इसमें अलग-अलग क्षेत्र के कलाकारों के अलावा अब मातृशक्ति भी कूद गई है. कलाकर जगह—जगह प्रोग्राम पेटिंग कर सरकार को जगाकर मरुस्थल के लोगों की आवाज को बुलंद कर रहे हैं. वहीं मातृशक्ति ने पैदम मार्च निकालकर ओरण को बचाने के लिए मुहिम छेड़ दी है.
पशुपालन के महत्व को समझना होगा
टीम ओरण ने कहा कि किसी की नजर में पशुपालन का कोई महत्व नहीं हो लेकिन जैसलमेर के लिए यह प्रमुख रोजगार है. एक सफल व्यवसाय है, जिससे जिले को शानदार आय होती है. वह भी तब जब इस कार्य में सरकार का सहयोग शून्य है. अगर सरकारें सोलर कंपनियों की बजाए जैसलमेर के गरीब—किसान पशुपालक के प्रति संवेदनशील होती तो आज देश के डेयरीसेक्टर में जैसलमेर का नाम होता. सरकारों ने जैसलमेर से लेना ही सीखा है देना कुछ नही. जैसलमेर में सोलर दो प्रकार की जमीनों पर लगा है और लगाया जा रहा है. एक तो कंपनियां किसानों से जमीन लेती है.
पशुओं का हो रहा नुकसान
दूसरा कंपनियां सरकार से सरकारी जमीनें ले रही है जो सरकारी न होकर हमारे ओरण-गोचर है. जहां जैसलमेर पीढ़ियों से पशुपालन करता आया है जो हमारी ही अनभिज्ञता के कारण आजादी के बाद ओरण-गोचर के रूप में दर्ज नही हो पाई. जिन्हें आज सरकारें सरकारी भूमि बता सोलर कंपनियों को बेच रही हैं. जैसलमेर के गरीब किसान-पशुपालक के पेट पर लात मार रही है. साहब जैसलमेर सदियों देश के उत्तरी द्वार का रक्षक रहा लेकिन आज देश के ही रक्षक मेरे जैसलमेर को खाने पर आतुर है. सोलर ने पहले ही जैसलमेर के पर्यावरण का, प्रकृति का, वन्यजीवन का, ग्रामीण जीवन एवं संस्कृति व परंपरा का और पशुपालन का सर्वनाश कर दिया है. निकट भविष्य में सरकार हमारी बची हुई ओरण-गोचर सोलर कंपनियों को बेच जैसलमेर का पूर्ण नाश करने पर तुली है. अब यह जैसलमेर पर है कि वह अपने गांव-शहर और जिले को कैसे बचाते है.
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