नई दिल्ली. भारत में ज्यादातर किसान कृषि के जरिए अपनी आजीविका चलाते हैं लेकिन पशुपालन अब दूसरा ऐसा जरिया है, जिससे बहुत से किसान जुड़ गये हैं. ऐसे में पशुपालन को ज्यादा फायदेमंद बनाने के लिए पशुपालक भाइयों को चाहिए कि वह अपने पशुओं से ज्यादा उत्पादन हासिल करें. ताकि उन्हें ज्यादा से ज्यादा फायदा मिल सके. हालांकि अक्सर पशुपालक पशुओं से ज्यादा उत्पादन हासिल नहीं कर पाते हैं. जबकि भारत में पशुओं की संख्या तो बहुत ज्यादा है लेकिन प्रति पशु उत्पादन की कमी है.
एक्सपर्ट कहते हैं नियमित ब्यात से मतलब यह है कि पशु पालक का पशु प्रजनन प्रबंधन इस प्रकार हो कि उसे पशु के जीवन काल से अधिक से अधिक फायदा हो. इसलिए जरूरी है कि नियमित रूप से पशुओं के प्रजनन पर ध्यान दिया जाए. सामान्य तौर पर गाय ढाई से 3 वर्ष में तथा भैंस तीन से चार वर्ष की आयु में प्रजनन योग्य हो जाती हैं. प्रजनन काल में पशु 21 दिनों की अंतराल के बाद गाभिन करा देना चाहिए.
जल्दी हासिल होगा दूध
जब पशु के अंदर लक्षण दिखाई देने लगें तो पशुओं को उन्नत नस्ल के सांडों से हासिल वीर्य कृत्रिम गर्भाधान विधि द्वारा पशुओं को गर्भित कराया जाना चाहिए. यदि किसान भाई पशुओं के खान-पान और आवास प्रबंधन पर अच्छी तरह से ध्यान दें तो इस तरह पशुपालक भाइयों को लगभग 3 से 3.5 वर्ष में गाय और 3 से 4 वर्ष भैंस से दूध मिलना हासिल हो सकता है. आमतौर पर देखा जाता है कि पशुपालक भाई इस प्रकार दूध देने वाले जानवरों में प्रतिवर्ष एक ब्यात प्राप्त करने का लक्ष्य नहीं रखते हैं. एवं कभी-कभी उन्हें दूसरे ब्यात पहले ब्यात की लगभग 2 वर्ष उपरांत प्राप्त होती है.
हर ब्यात में गाभिन कराएं
इस तरह पशु को दो ब्यात का अंतराल 1 वर्ष से अधिक होने पर उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है. एक गाय की उत्पादन आयु लगभग 14 वर्ष मानी जाती है. 3 वर्षों में प्रथम ब्यात की पश्चात यदि नियमित रूप से प्रतिवर्ष एक बछड़ा गाय से प्राप्त किया जाए तो कुल 11 वर्ष गाय से दूध हासिल किया जा सकता है और 11 बछड़े और बछड़ी भी मिलेंगे. अगर दो ब्यात को छोड़कर लिया जाए और फिर उसमें दो अंतर वर्ष का अंतर भी हो जाए तो फिर पशुपालकों को दूध और बछड़ों का नुकसान होगा. इसलिए जरूरी है कि ब्यात को मिस न होने दें.
गाभिन होने के क्या हैं लक्षण
बहुत से किसानों को पशुओं के गाभिन होने के वक्त को लेकर कंफ्यूजन रहता है. अगर आप ये जानना चाहते हैं तो जान लें कि ऐसी अवस्था में मादा पशु की भूख कम हो जाती है. दुधारू पशु में दूध का उत्पादन कम हो जाता है. मादा पशु बार-बार पेशाब करती है. मादा पशु की योनि द्वारा कुछ चिचपिपा सा निकलता है. भग कोष्ठ गुलाबी रंग के हो जाते हैं. मादा पशु अन्य साथ में रखे गए पशुओं पर चढ़ती है. मादा पशु इस दौरान नर पशु के साथ रहना पसंद करती है.
Leave a comment