नई दिल्ली. अगर किसी पशुपालक भाई से ये कह दिया जाए कि कुछ जरूरी काम आप कर लें तो गाय-भैंस को बीमारी से भी बचा सकते हैं और इसके साथ ही दूध उत्पादन भी बढ़ सकता है. तो यकीन जानें कि ऐसा कोई नहीं होगा जो इन कामों को न करे. क्योंकि पशुपालन में दूध को बेचकर ही कमाई की जाती है. अगर दूध बढ़ जाए तो डेयरी में कई गुना फायदा बढ़ जाता है. इसलिए डेयरी एक्सपर्ट भी कहते हैं कि पशुपालकों को हमेशा ही पशुपालन इस तरह करना चाहिए कि जिससे उत्पादन ज्यादा से ज्यादा मिल सके.
एनिमल एक्स्पर्ट का कहना है कि इसके लिए सबसे जरूरी काम ये है कि एक माह पहले कृत्रिम गर्भाधान कराए गए पशुओं का गर्भ परीक्षण कराएं, जो पशु गर्भित नहीं हैं, उन पशुओं की जांच के बाद फिर से जांच करवाएं. अगर जांच में कुछ निकलता है इलाज करवाएं. जब पशु हैल्दी रहेगा तो दूध उत्पादन में भी कमी नहीं आएगी.
नारियल का तेल जरूर लगाएं
वहीं दूध दुहने से पहले और बाद में थनों पोटेशियम परमैंगनेट के घोल से अच्छी तरह साफ करना चाहिए. हमेशा ही नवजात बच्चों को खीस पिलाएं और उन्हें ठंड से बचाएं. पशुओं को शरीर के अंदर के कीड़ों मारने के लिए परजीवी नाशक दवाएं जरूर पिलाएं. वहीं पशुओं को ताजा या गुनगुना पानी पिलाएं. एनिमल एक्सपर्ट का कहना है कि दुधारू पशुओं को गुड़ खिलाने से दूध उत्पादन बढ़ता है. दूध दुहने के बाद पशुओं को नारियल का तेल लगाएं. पशुशाला को समुचित स्वच्छ व सूखा रखें. वहीं कमजोर व रोगी पशुओं को बोरी की झूल बना कर ढकें. सर्दी से बचने के लिए रात के समय पशुओं को छत के नीचे या घास-फूस के छप्पर के नीचे बांध कर रखें.
गुड़ खिलाने का क्या होता है फायदा
एनिमल एक्सपर्ट कहते हैं कि पशु को तेल व गुड़ देने से भी शरीर का तापमान सामान्य रखने में सहायता मिलती है. वहीं पशुओं को बाहरी परजीवी से बचाने के लिए पशुशाला में फर्श और दीवार तथा सभी स्थानों पर 1 फीसदी मेलाथियान के घोल का छिड़काव या स्प्रे कर सफाई करें. इसके अलावा बाहरी परजीवी से बचाव हेतु दवा से नहलायें या पशु चिकित्सक के परामर्श से इंजेक्शन लगवाएं. गर्मी में आए पशुओं का कृत्रिम गर्भाधान कराएं. पशुओं को बीमारी से बचाना जरूरी है. खासतौर पर खुरपका-मुंहपका रोग से बचाव के लिए वैक्सीनेशन जरूर कराएं.
क्या खिलाना चाहिए
वहीं पशुओं का गर्भ परीक्षण कराना भी जरूरी होता है. दुधारू पशुओं को थनैला रोग से बचाने के लिए संपूर्ण दूध को मुट्ठी बांधकर निकालना चाहिए. जबकि पशुओं को चारे के तौर पर बरसीम, रिजका व जई की सिंचाई को 012 से 14 दिन एवं 18 से 20 दिन के अंतराल पर करें. बताते लें कि बरसीम, रिजका एवं जई से सूखा चारा या अचार यानी साइलेज के रूप में इकट्ठा कर चारे की कमी के समय के लिए सुरक्षित रखें. वहीं स्थानीय मौसम के हिसाब से पशुओं को ठंड से बचाने के उपाय जारी रखें.
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