नई दिल्ली. कई क्षेत्रों में गोवंश छुट्टा घूमते हैं. ये खेतों में खड़ी फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं. कुछ स्थानों पर पूरी फसल तक सफाचट कर देते हैं. किसान इससे परेशान हैं. निराश्रित गोवंश को रोकने के लिए किसानों ने खेतों में बल्लियां लगाकर बेरिकेडिंग की है. किसान रात के समय खेत पर रुककर फसल की रखवाली करते हैं. निराश्रित गोवंश के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है. मध्य प्रदेश सरकार ने निराश्रित गोवंशों को आसरा देने के लिए स्वावलंबी गौशाला स्थापना नीति बनाई है. इस नीति को मंजूरी मिल चुकी है. अब निराश्रित गोवंशों से लोगों को भी राहत मिलेगी.
निराश्रित गोवंश खेती को नुकसान पहुंचा देते हैं. इनके कारण कई बार सड़क हादसे होते हैं. मध्य प्रदेश में निराश्रित गोवंश के लिए सरकार के प्रयास अब लोगों को राहत देंगे. खेती को सफाचट करने वाले गोवंश अब सड़कों पर नहीं दिखेंगे और हादसों में भी कमी आने की संभावनाएं हैं. जो किसान समृद्ध हैं, वे कंटीले तारों की बाड़ या फिर झटका मशीन के माध्यम से खेतों की रखवाली कर पाते हैं. कुछ किसान ऐसे होते हैं कि घर की प्रयोग में न आने वाली साड़ियों को भी खेत के चारों ओर बांधकर रखवाली करते हैं. अब एमपी में स्वावलंबी गौशाला स्थापना नीति 2025 को मंजूरी मिल गई है, जिससे निराश्रित गोवंश की देखरेख हो सकेगी और किसानों को परेशानी नहीं होगी.
606 करोड़ रुपये खर्च करेगी सरकार: मध्य प्रदेश सरकार की स्वावलंबी गौशाला स्थापना नीति निराश्रित गोवंशों को आसरा देगी. इस योजना में 606 करोड रुपए सरकार द्वारा खर्च किए जाएंगे. आईए आपको बताते हैं कि निराश्रित भावनाओं के लिए सरकार किस तरीके से कदम उठा रही है और क्या-क्या काम योजना में किए जाएंगे.
अब सरकार 40 रुपये प्रति गाय देगी: सितंबर 2019 से सरकार प्रति गाय को प्रतिदिन 20 रुपये दे रही थी. अब 1 अप्रैल से 40 रुपये प्रति गाय के हिसाब से दिए जाएंगे. एक अनुमान के मुताबिक प्रदेश में करीब 1.87 करोड़ गोवंश हैं इनमें से 8 लाख से अधिक निराश्रित हैं. इन गोवंशों को 2190 गौशालाओं में रखा जा रहा है. रोजाना इन पर 80 रुपये का खर्चा आ रहा है. 40 के हिसाब से 2025-26 में 606 करोड़ रुपए दिए जाएंगे. 20 वर्ष के लिए जमीन भी दी जाएगी. एजेंसी गोसंवर्धन बोर्ड होगा. इसमें नस्ल सुधार के कार्यक्रम भी होंगे. जैविक खाद 8 दिन में तैयार होगी. इस योजना से निराश्रित गोवंश के आसरा मिलने से लोगों को राहत मिलेगी.
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