Home मीट Meat Production: फार्मास्युटिकल सेक्टर में पशुओं की ग्रंथियों का होता है इस्तेमाल, बनाई जाती हैं दवाएं
मीट

Meat Production: फार्मास्युटिकल सेक्टर में पशुओं की ग्रंथियों का होता है इस्तेमाल, बनाई जाती हैं दवाएं

red meat and chicken meat
प्रतीकात्मक फोटो.

नई दिल्ली. एक कहावत है कि आम के आम गुठलियों के दाम. पशुपालन में भी ये कहावत सही बैठती है. अगर पशुपालक भैंस पालते हैं तो जब तक भैंस दूध देती है, वो उसके दूध से कमाई करते हैं. इसके बाद जब दूध देना बंद कर देती है तो उसे स्लाटर हाउस में कटिंग के लिए भेज दिया जाता है. इससे एक मुश्त रकम पशुपालकों को मिल जाती है. वहीं स्लाटर हाउस में कटिंग के बाद जानवरों से सिर्फ मीट ही नहीं बल्कि कई बाई प्रोडक्ट भी मिलता है, जिससे अच्छी कमाई हो जाती है. मीट जहां लोगों के खाने के काम आता है तो वहीं बाई प्रोडक्ट से कई प्रोडक्ट बनते हैं.

इन्हीं बाई प्रोडक्ट में पशुओं की ग्रंथियां भी शामिल हैं. जो फार्मास्युटिकल सेक्टर में भी काम आती हैं. दवाओं को बनाने के लिए पशुओं की कोशिकाएं इस्तेमाल में ली जाती हैं. हालांकि ये तब संभव होता है जब पशुओं की कटिंग स्लाटर हाउस में होती है, जहां तमाम सुविधाएं होती हैं, जिससे ग्रंथियों को दवाओं के इस्तेमाल के लिए सही तरह से रखा जाता है.

इस तरह स्टोर की जाती हैं ग्रंथियां
एक्स्पर्ट कहते हैं कि एक जानवर में ग्रंथियों की बड़ी संख्या होती है जो एंजाइम, हार्मोन, रंगद्रव्य और विटामिनों के संश्लेषण और स्राव में शामिल होती हैं. ये एंजाइम जीवित कोशिका में चयापचय प्रक्रिया में शामिल होते हैं और इसलिए उनका प्राकृतिक रूप में उपलब्ध होना औषधीय और औद्योगिक उत्पादों में बहुत उपयोगी है. जानवरों की ग्रंथियां और अंग कई देशों में, जिसमें चीन, भारत और जापान शामिल हैं, पारंपरिक रूप से दवा के रूप में प्रयोग किए जाते हैं. अधिकांश ग्रंथियों को संरक्षित करने का सबसे अच्छा तरीका त्वरित ठंड है. ठंडा करने से पहले, ग्रंथियों को साफ करना जरूरी है, और आसपास की वसा और संयोजी ऊतक को ट्रिम करना चाहिए. ग्रंथियों को फिर मोम वाले कागज पर रखा जाता है और 18 डिग्री सेल्सियस या उससे कम पर रखा जाता है. कटिंग किए गए जानवरों से जानवरों की ग्रंथियों का संग्रह लागत और उपलब्धता के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है.

ब्लड से निकलता है बेहद कीमती सोर्स
जानवरों के रक्त से प्राप्त हाेम निकालना कार्बनिक लोहे का एक मूल्यवान स्रोत है और इसका उपयोग एक खाद्य अनुपूरक के रूप में किया जाता था. हालांकि, इस प्रक्रिया पर भारत में प्रतिबंध लगा दिया गया है. शुरुआत में, इंसुलिन की दवाएं उन भैंसों, सूअरों या सैल्मन से प्राप्त इंसुलिन से बनाई जाती थीं. यह जानवाड़ी इंसुलिन कई वर्षों तक काफी संतोषजनक काम करता रहा, लेकिन इंसुलिन में सूक्ष्म अशुद्धियों ने रक्त और त्वचा में प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाएं पैदा कीं. वर्तमान में मानव इंसुलिन को E. coli बैक्टीरिया से संश्लेषित करने के लिए पुनः संयोजी DNA जीन प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाता है. इसी प्रकार, कई हार्मोन और एंजाइम की कृत्रिम प्रकृति विकसित की गई. इसके चलते फार्मास्यूटिकल उपयोग के लिए मांस के उप-उत्पाद ठोस के एक महत्वपूर्ण बाजार का नुकसान हुआ.

Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Articles

मीट

Meat Production: किस तरह की होनी चाहिए मीट जैसे प्रोडक्ट की जांच, क्या है इसका तरीका

ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जो उपभोक्ताओं को परोसा जा...

मीट

Meat Production: पैक मीट के पैकेट पर लेबलिंग पर देनी होती है ये जानकारियां, जानें यहां

लेबल पर जरूरी घोषणा की डिटेल अंग्रेजी या हिंदी (देवनागरी लिपि) में...

मीट

Meat: इस तरह से भी मीट को किया जाता है पैक, यहां जानें इस बारे में

प्रिंसिपल डिस्पले पैनल का अर्थ है, कंटेनर, पैकेज का वह हिस्सा जो...

मीट

Packaging: मीट पैकिंग हो या कोई अन्य प्रोडक्ट, सभी के लिए FSSAI ने बनाए हैं ये नियम

यह गुणवत्ता नियंत्रण से गुणवत्ता प्रबंधन की ओर एक बदलाव को दर्शाता...