नई दिल्ली. नेपियर घास में 20 से 21 परसेंट तक प्रोटीन होता है. इसको खिलाने से गाय—भैंस की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. इससे पशु तंदुरुस्त होते हैं और ज्यादा उत्पादकता करते हैं. नेपियर घास को खुद के खेत में लगाने के लिए 3 से 4 किलो ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर या 35 से 40 हजार जड़युक्त जोड़ी (रूट स्लिप) प्रति हेक्टेयर की दर से दी जाती है. खेत की तैयारी की बात की जाए तो खेत की अच्छी तरह जुताई कर हरेक जुताई के बाद पाटा चलाकर खेत की मिट्टी को हल्की और भुर-भुरी बना लेते हैं. खेत से खर-पतवार और फसलों के वेस्ट को चुनकर निकाल देना चाहिए. बुआई से एक माह पहले 150-200 क्विंटल कम्पोस्ट प्रति हेक्टेयर की दर से खेतों में मिलाकर जुताई कर दी जानी चाहिए.
इसके बाद बुआई का नंबर आता है. इसकी बुआई गन्ने की तरह की जाती है. गन्ने की तरह कटिंग काट कर हरेक कटिंग में दो तीन आंख वाली (बड) नोड देखकर कटिंग कर लेते हैं जिसमें एक या दो (आंख) जमीन में गाड़ देते हैं शेष भाग ऊपर छोड़ दिया जाता है. इस फसल में जमने लायक बीज बड़ी मुश्किल से बनते हैं. इसलिए इसकी बुआई गगेड़ी बनाकर कटिंग से ही की जाती है. वहीं बुआई के समय 250 किलोगग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 50 किलोग ग्राम म्युरेट ऑफ पोटाश मिट्टी में मिला देते हैं. हर एक कटिंग के बाद 65 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से उपरिवेशन के रूप में डालनी चाहिए.
इस वक्त सिंचाई की पड़ती है जरूरत
रोपाई के तुरंत बाद पटवन कर देनी चाहिए ताकि पौधों में जड़ का विकास हो सके. सूखा मौसम पड़ने पर जमीन पर नमी बनाये रखनी चाहिए. बारिश के अभाव में जरूरत पड़ने पर सिंचाई करनी चाहिए. गर्मियों में 8 से 10 दिनों पर सिंचाई जरूर करें. जाड़े के दिनों में 15 से 20 दिनों पर सिंचाई करें. ज्यादा बारिश होने पर खेतों में जलजमाव को दूर रखना चाहिए. अधिक जल जमाव फसल के लिए नुकसानदेह होता है. खरपतवार नियंत्रण करने के लिए शुरूआत में खेत को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए. दो तीन निकाई-गुड़ाई कर खर-पतवार नियंत्रण करें. बाद में इसकी जरूरत नहीं पड़ती है.
जानें कब की जाती है कटाई
नेरियर घास में तना छेद और ग्रास-हॉपर का प्रकोप पाया जाता है. इससे बचाव के लिए इंडोसल्फान 35 ईसी का 1.5 लीटर दवा 800 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए. जरूरत पड़ने पर दूसरा छिड़काव करना चाहिए. पहली कटाई रोपाई के 75 दिनों बाद होती है. शेष अन्य कटाई 45 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए. कटाई जमीन से 15 सें.मी. ऊपर की जानी चाहिए. ज्यादा दिनों पर कटाई करने से चारा का पोषक मान घट जाता है. इसलिए समय पर ही कटाई करें ताकि चारा का पोषक मान बना रहे. जड़ों के पास से नये उत्पन्न बड को क्षति होने से बचायें ताकि अच्छी फसल फिर मिल सके. इस प्रकार 7 से 8 कटिंग प्राप्त किया जा सकता है. अच्छे प्रबंधन करने पर 1600 क्विंटल प्रति हेक्टयेर प्रतिवर्ष उपज प्राप्त किया जा सकता है.
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