नई दिल्ली. पेस्ट डेस पेटिट्स रूमिनेंट्स (PPR) और शीपपॉक्स ऐसी बीमारी हैं जिन्हें लेकर भेड़ पालक अक्सर परेशान रहते हैं. खासतौर पर ये बकरी और भेड़ के बच्चों के लिए जानलेवा बीमारी है. तीन से चार दिन में देखते ही देखते पशु की मौत हो जाती है. एनिमल एक्सपर्ट की मानें तो अभी इसका इलाज नहीं है. सिर्फ वैक्सीनेशन कराकर इसकी रोकथाम की जा सकती है. दोनों बीमारियों के लिए अलग-अलग टीका लगवाना पड़ता है. लेकिन भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (IVRI), बरेली ने भेड़पालकों को एक बड़ा तोहफा दिया है.
भेड़पालकों को अब दो बीमारियों के लिए अलग-अलग दो टीके नहीं लगवाने पड़ेंगे. पीपीआर और शीपपॉक्स की रोकथाम अब आईवीआरआई के एक टीके से हो जाएगी. आज भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के 96वें स्थापना एवं प्रौद्योगिकी दिवस के मौके पर नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान इस वैक्सीन को पशुपालकों के इस्तेमाल की अनुमति दी गई. भेड़ों को पीपीआर और शीपपॉक्स के लिए अलग-अलग टीके लगवाने की जगह अब एक ही टीके से काम हो जाएगा. ये टीका 3-4 साल तक दोनों बीमारियों में सुरक्षा प्रदान करेगा. भेड़ों में दो बीमारियों के लिए एक टीका लगाने से लागत, समय और मेहनत की बचत तो होगी ही साथ ही साथ टीकाकरण से जानवरों के तनाव को कम करने में भी मदद मिलेगी.
एक टीका भेड़ों को दो बीमारियों से बचाएगा- निदेशक
आईवीआरआई के निदेशक डा. त्रिवेणी दत्त ने टीका लांच किए जाने के मौके पर बताया कि पीपीआर और शीपपॉक्स अत्यधिक संक्रामक वायरल रोग है जो खासतौर पर छोटे जुगाली करने वाले पशुओं जैसे भेड़ों पर अटैक करता है. इसके चलते भेड़ों की मौत भी हो जाती है. इस वजह से किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है. असल में पीपीआर और शीपपॉक्स विषाणु जनित खतरनाक बीमारी हैं और यह बीमारी अक्सर भेड़ों में होती है. इस बीमारी के चपेट में आने पर भेड़ों को बुखार आता है. उनकी आंख और नाक से पानी बहने लगता है. मुंह के अंदर लालपन हो जाता है. साथ ही शरीर में गांठें बनने लगती हैं और उनमे से खून निकलने लगता है. अगर भेड़ों को वक्त पर टीका नहीं लगवाया गया तो इस बीमारी का संक्रमण होने पर एक हफ्ते के अंदर भेड़ों की मौत भी हो जाती है.
15 वैज्ञानिकों की टीम ने तैयार किया टीका
टीका तैयार करने वाली टीम में आईवीआरआई के साइंटिस्ट डॉ. डी. मुथुचेलवन, डॉ. भानुप्रकाश वी, डॉ. वी. ज्ञानवेल, डॉ. एम होसामनी, डॉ. वी. बालामुरुगन, डॉ. बी.पी. श्रीनिवास, डॉ. आर. पी. सिंह, डॉ. पी. धर, डॉ. आर. एन. रॉय, डॉ. एस. के. बंद्योपाध्याय, डॉ. राज कुमार सिंह, डॉ. एस. चंद्रशेखर, डॉ. अमित कुमार, डॉ. एम. ए. रामकृष्णन और डॉ. त्रिवेणी दत्त शामिल थे.
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