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Fish Farming: केज कल्चर फिश फार्मिंग में इन बातों पर दें ध्यान तो बढ़ जाएगा कई गुना मुनाफा

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तालाब में मछली.

नई दिल्ली. मछली पालन करके खूब कमाई की जा सकती है. सरकार नीली क्रांति के जरिए किसानों की आय को बढ़ाने के लिए कोशिशों में लगी है. मछली पालन को बढ़ावा देने का काम किया जा रहा है. मछली पालन में अब केज कल्चर का चलन बढ़ा रहा है. इस वजह से बहुत किसान इसके बारे में जानना चाहते हैं. केज कल्चर फिश फार्मिंग में भी ट्रेडिशनल फिश फार्मिंग की ही तरह कुछ बातों पर ध्यान देना होता है. अगर ऐसा न किया जाए तो फायदा कम होगा. हो सकता है नुकसान भी उठाना पड़ जाए. आइए कुछ बातों के बारे में इस आर्टिकल में जानते हैं.

एक्सपर्ट का कहना है कि तालाबों की तुलना में पिंजरों में मछली आसनी से पकड़ी जा सकती है. फ्लोटिंग पिंजरों को एक सुविधाजनक स्थान पर ले जाया जा सकता है और मांग के आधार पर जिनती जरूरत हो, उतनी मछली को जब चाहे पकड़ा जा सकता है. इस लिहाज से केज कल्चर फिश फार्मिंग बेहद ही फायदेमंद है.

केज मैनेजमेंट कैसे करें
पिंजरा पालन प्रबंधन का रिजल्ट न्यूनतम लागत पर उत्पादन का अनुकूलन होना चाहिए. मैनेजमेंट इतना कुशल होना चाहिए कि पालना दर और स्टॉकिंग घनत्व के संबंध में संवर्धित मछली जितनी अपेक्षा की जाए उस हिसाब से बढ़े. बीमारी और मछली खाने वाली शिकारी मछलियों के कारण होने वाले नुकसान को कम करे. पर्यावरणीय मापदंडों की निगरानी करें और तकनीकी सुविधाओं बनाए रखें. पिंजरे की बनावट और उसका रखरखाव भी महत्व रखता है. पिंजरे की जाल और पिंजरों का नियमित निरीक्षण किया जाना चाहिए. बंधी रस्सी और पिंजरे की जाल की समय—समय पर मरम्मत करनी चाहिए. पिंजरे के मासिक बदलाव पर भी विचार किया जाना चाहिए. क्योंकि इससे नेट में पानी का अच्छा आदान-प्रदान होता है. जिससे मल, बिना खाया हुआ फीड धुल जाता है और कुछ हद तक दूषण के प्रभाव को कम करता है.

केज और बीमारी पर रखें नजर
पिंजरे में माछली पालन करते समय सबसे सामान्य आने वाली समस्या यह है की पिंजरे का जाल माइक्रोआग्रेनिज्म, पौधों, शैवाल की वजह से ढक जाता है. जिसे पानी की गंदगी का अवसर बढ़ जाता है. यह संचयन की समस्या से बचने के लिए जरूरत होने पर जाल को बदला जाए जैसे की 2 से 4 हफ्तों तक जरूरत पड़ने पर बदला जाना चाहिए. ऑयस्टर फाउलिंग के दौरान, मौसमी स्पैट गिरने के तुरंत बाद पिंजरे की जाल को बदल देना चाहिए. खरगोश मछली (Siganus spp.), पर्ल स्पॉट (Etroplus suratensis) और स्कैट (Scatophagus sp.) जैसी शाकाहारी मछलियों का उपयोग बायोफाउलर्स को नियंत्रित करने के लिए किया जा सकता है. वहीं ज्यादा से ज्यादा फायदा पाने के लिए पिंजरो में रखी हुई मछलियो की निगरानी रखना जरूरी है और शुरुआती संकेत खासकर फीड देने के दौरान अक्सर मछली के व्यवहार में बदलाव से देखे जा सकते हैं.

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