नई दिल्ली. मुर्गी पालन में कई तरह बीमारियों की वजह से मुर्गियों की ग्रोथ रुक जाती है. मुर्गियों के उत्पादन पर भी इसका असर पड़ता है. मुर्गियों के पालन में नुकसान उठाना पड़ता है. पोल्ट्री एक्सपर्ट की मानें तो मुर्गियों में कई तरह कीड़े होते हैं. ये कीड़े जिन्हें परजीवी कहा जाता है ये मुर्गियों के शरीर में निवास करते हैं और मुर्गियों के खून को चूसते रहते हैं. इसके चलते मुर्गियों को बेहद ही दिक्कत होती है. ये कीड़े मुर्गियों में बैचेनी पैदा करते हैं और तमाम तरह के रोग फैलाने में सहायक होते हैं. इसलिए मुर्गियों को कीड़ों से बचाना बेहद ही जरूरी होता है.
पोल्ट्री एक्सपर्ट कहते हैं कि मुर्गियों में कई तरह के कीड़े होते हैं. इन्हें दो कैटेगरी में बांटा गया है. पहली कैटेगरी को बाह्य परजीवी – यानि बाहरी कीड़ों की होती है. जिसमें जुएं, चिचड़ी, माइट्स् एवं पिस्सू आते हैं. जबकि दूसरी कैटेगरी आंतरिक परजीवी प्रोटोजोआ की होती है. जिसे कृमि (हेलमिन्थ) के नाम से जाना जाता है.
जुएं (लाइस)- ये आमतौर पर सभी स्थानों पर मुर्गियों में अधिकतर पंखों के नीचे रहती हैं. इंसानों के जूं से मिलती-जुलती होती है.
लक्षण
पक्षी सो नहीं पाते हैं.
बेचैनी के कारण पंखों को झुकाए रहते हैं.
अंडा उत्पादन घट जाता है.
मुर्गियों के वजन में कमी हो जाती है तथा पक्षी दुबले हो जाते हैं.
चीचड़ (टिक्स)- मुर्गियों को प्रभावित करने वाली किलनी को सोफ्टटिक या अरगस परसिकस टिक कहते हैं. ये मुर्गियों में चीचड़ी बुखार या स्पाइरोकीटोसिस फैलाते हैं.
लक्षण
पक्षी के शरीर का तापमान बढ़ जाता है.
पक्षियों में खुजली एवं बैचेनी हो जाती है.
कलंगी व गलकम्बल पीले पड़ जाते हैं.
अंडा उत्पादन में कमी हो जाती है.
माइट्स: इन्हें स्केली लेग माइट्स भी कहते हैं, जो कि पैरों के स्केल्स में घुसकर रक्त चूसती है.
लक्षण
प्रभावित पक्षियों का तापक्रम अधिक हो जाता है.
माइट्स के पैरों में काटने से जलन व बेचैनी होती है.
पैरों में दिक्कत आ आ जाती है.
पक्षी लंगड़ा कर चलते हैं.
इसे शल्क रोग या स्केलीलेग डीजीज भी कहते हैं.
खटमल (बम्स या पिस्सू) ये गहरे खाकी या काले रंग के होते हैं. ये पक्षियों के शरीर से खून को चूसते हैं तथा ठंडे मौसम में अधिक विकसित होते हैं.
लक्षण
खुजली होती है तथा बैचेनी रहती है.
खून की कमी हो जाती है तथा उनकी ग्रोथ कम हो जाती है.
अंडा उत्पादन में कमी हो जाती है.
इनकी संख्या अधिक होने पर, कम उम्र के चूजे मर सकते हैं.
इन समस्याओं की रोकथाम कैसे करें
गैमेक्सीन 5 प्रतिशत अथवा डीडीटी. 1 भाग में 5 भाग राख मिलाकर छिड़काव करें. डी.टी.टी. 1 भाग में 20 भाग राख मिलाकर मुर्गियों के शरीर पर मलें.
मुर्गियों को टिक्स से वंचित करने के लिये उन्हें 0.1 प्रतिशत मैलाथियॉन और 0.025 प्रतिशत डाइजिनॉन या 0.55 प्रतिशत बीएचसी के एक्वस सोलूशन में डूबोना चाहिये.
पोल्ट्री फार्म के चारों ओर एक पतली नाली में मिट्टी का तेल व पानी के घोल को भरकर रखें ताकि खटमल व किलनियां आदि न आ सकें.
दीवारों दरार या छेद न रहने दें.
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