नई दिल्ली. कई बार डेयरी पशुओं को कुत्ते, बिल्ली, बन्दर, गीदड़, लोमड़ी या नेवले के काट लेते हैं. इसके चलते पशुओं के शरीर में सूक्ष्म विषाणु यानि माइक्रो वायरस की एंट्री हो जाती है, जिससे पशु पागलपन के शिकार हो जाते हैं. इसे रेबीज भी कहा जाता है. माइक्रो वायरस नाड़ियों के जरिए दिमाग में पहुंच कर उसमें बीमारी के लक्षण पैदा करते हैं. रोग ग्रस्त पशु की लार में यह वायरस बहुत ज्यादा होते हैं. सबसे खतरनाक बात ये है कि रोगी पशु द्वारा दूसरे पशु को काट लेने से या शरीर में पहले से मौजूद किसी घाव के ऊपर रोगी की लार लग जाने से यह बीमारी फैल सकती है.
पशु एक्सपर्ट के मुताबिक यह बीमारी रोग ग्रस्त पशुओं से इंसानों में भी आ सकती है. इसलिए इस बीमारी का इंसानों की हैल्थ से भी सीधा कनेक्शन है. एक बार पशु अथवा इंसानों में इस बीमारी के लक्षण पैदा होने के बाद उसका फिर कोई इलाज नहीं है. जबकि उसकी मौत तय है. वायरस के शरीर में जख्म आदि के जरिए एंट्री करने के बाद 10 दिन से 250 दिनों तक की अवधि में यह बीमारी हो सकती है. दिमाग के जितना अधिक नजदीक जख्म होता है. उतनी ही जल्दी बीमारी के लक्षण पशु में पैदा हो जाते हैं. जैसे कि सिर या चेहरे पर काटे गये पशु में एक हफ्ते के बाद यह रोग पैदा हो सकता है.
रेबीज बीमारी के लक्षण
रैबीज के लक्षण आमतौर पर दो रूपों में देखे जाते हैं. पहला जिसमें रोग ग्रस्त पशु काफी भयानक हो जाता है, दूसरा जिसमें वह बिल्कुल शांत रहता है. पहले या उग्र रूप में पशु में रोग के सभी लक्षण स्पष्ट दिखायी देते हैं लेकिन शांत रूप में रोग के लक्षण बहुत कम अथवा लगभग नहीं के बराबर ही होते हैं. बताते चलें कि कुत्तों में इस रोग की शुरुआती अवस्था में व्यवहार में परिवर्तन हो जाता है तथा उनकी आंखें अधिक तेज नजर आती हैं. कभी-कभी शरीर का तापमान भी बढ़ जाता है. 2-3 दिन के बाद उसकी बेचैनी बढ़ जाती है तथा उसमें बहुत ज्यादा चिड़चिड़ापन आ जाता है. वहीं काल्पनिक वस्तुओं की ओर या बिना किसी वजह के इधर-उधर काफी तेजी से दौड़ने लगता है तथा रास्ते में जो भी मिलता है उसे वह काट लेता है. वहीं आखिरी समय में पशु के गले में लकवा हो जाने के कारण उसकी आवाज बदल जाती है, शरीर में कपकपी तथा चाल में लड़खड़ाहट आजाती है. जिसके चलते लकवा ग्रस्त होकर बेहोशी की अवस्था में आ जाता है और उसकी मौत हो जाती है.
सिर को दीवार से टकराने लगते हैं पशु
गाय व भैंसों में इस बीमारी के भयानक रूप के लक्षण दिखते हैं. पशु काफी उत्तेजित अवस्था में दिखता है तथा वह बहुत तेजी से भागने की कोशिश करता है. वह जोर-जोर से रम्भाने लगता है और बीच-बीच में जम्भाइयां लेता हुआ दिखाई देता है. वह अपने सिर को किसी पेड़ अथवा दीवार के साथ टकराता है. कई पशुओं में मद के लक्षण भी दिखायी दे सकते हैं. रोग ग्रस्त पशु जल्द ही कमजोर होकर मर जाता है. इंसानों में इस बीमारी के प्रमुख लक्षणों में उत्तेजित होना, ज्यादा परेशान हो जाना, पानी या कोई खाद्य पदार्थ को निगलने में काफी तकलीफ महसूस करना आखिरी में लकवा होना आदि शामिल है.
उपचार तथा रोकथाम कैसे करें
एक बार लक्षण पैदा हो जाने के बाद इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है. जैसे ही किसी हैल्दी पशु को इस बीमारी से ग्रस्त पशु काट लेता है उसे तुरंत ही नजदीकी पशु चिकित्सालय में ले जाकर इस बीमारी से बचाव का टीका लगवाना चाहिए. इस काम में ढील बिल्कुल नहीं बरतनी चाहिए. क्योंकि ये टीके तब तक ही प्रभावकारी हो सकते हैं जब तक कि पशु में रोग के लक्षण पैदा नहीं होते. पालतू कुत्तों को इस बीमारी से बचाने के लिए नियमित रूप से टीके लगवाने चाहिए. पालतू कुत्तों का पंजीकरण स्थानीय संस्थाओं द्वारा करवाना चाहिए तथा उनके नियमित टीकाकरण किया जाना चाहिए.
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