नई दिल्ली. भेड़ पालन भी एक बेहतरीन व्यवसाय है. भेड़ से पशु पालक तीन तरह से कमाई कर सकते हैं. भेड़ का ऊन निकालकर इसे बेचा जाता है, वहीं कई भेड़ की नस्ल मीट के लिए काफी पसंद की जाती हैं. खासतौर पर बकरीद के त्योहार पर तो विदेशों में भी भेड़ की मांग होती है. तब पशु पालकों को अच्छा मुनाफा मिल जाता है. वहीं मादा से दूध निकालकर भी इसे बेचकर कमाई की जा सकती है. इस आर्टिकल में गंजाम भेड़ जो उड़ीसा के कोरापुट की नस्ल है, उसके बारे में बात की जा रही है, जो अब लुप्त होती जा रही है.
क्या है इस भेड़ की पहचान
गंजाम भेड़ उड़ीसा के कोरापुट, फुलबनी और पुरी जिलों के कुछ हिस्सों में पाई जाती है. इन जानवरों की मुख्य पहचान है कि ये मध्यम आकार के होते हैं और उनके कोट का रंग भूरा से लेकर गहरा भूरा तक होता है. कुछ जानवरों के चेहरे और शरीर पर सफेद धब्बे भी दिखाई देते हैं. वहीं कान मध्यम आकार के और झुके हुए होते हैं. उनकी नाक की बात की जाए तो नाक की रेखा थोड़ी उत्तल होती है. पूंछ मध्यम लंबाई की और पतली होती है. जबकि नर सींग वाले होते हैं, मादाएं परागित होती हैं. ऊन बालों वाला और छोटा होता है और कटा हुआ नहीं होता है आमतौर पर किसानों के झुंड में वार्षिक मेमने का प्रतिशत 83.6 और मृत्यु दर का प्रतिशत 10.35 दर्ज किया गया है.
मीट के लिए किया जाता है पालन
भेड़ सुधार पर नेटवर्क परियोजना के तहत, मटन के लिए उड़ीसा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, भुवनेश्वर में वर्ष 2001 में क्षेत्र आधारित गंजम इकाई शुरू की गई थी. जानकारी के मुताबिक गंजाम भेड़ को मुख्य रूप से मीट के लिए पाला जाता रहा है. क्योंकि इसका मीट स्वादिष्ट होता है. मेमने के प्रतिशत 60 से 90 के बीच होता है और इसका प्रजनन भी शुद्ध माना जाता है. 18वीं पशु पशुधन जनगणना के अनुसार देश में गंजाम भेड़ की संख्या केवल 55 है. राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो ने इस भेड़ की प्रजातियों की लुत्पप्राय सूची में डाल दिया है.
Leave a comment