नई दिल्ली. देश की अर्थव्यवस्था में पशुधन बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है.खासतौर पर अगर हम ग्रामीण परिवेश की बात करें तो पशुपालन के जरिए से प्राप्त होने वाली अतिरिक्त आय किसान, पशुपालकों को आत्मनिर्भर बनाती है. परंपरागत खेती के साथ ही एक साथ बड़े पैमाने पर बकरी पालन किया जा रहा है. बकरी पालन से जुड़कर लोग लाखों रुपये कमा रहे हैं. बहुत से ऐसे किसान हैं, जिनके शेड में सैकड़ो की संख्या में बकरो-बकरी हैं और उनकी कमाई करोड़ों में होती है. बकरी पालन खास तौर पर लघु और सीमांत किसानों के लिए एक बेहतरीन व्यवसाय का जरिया बनकर उभरा है. क्योंकि बकरी पालन को कम लागत में भी किया जा सकता है. हालांकि कई बार ऐसा भी होता है कि जानकारी के अभाव में किसान ऐसे पशु पाल लेते हैं, जो लाभ से ज्यादा नुकसान कर देते हैं. यही वजह है कि अगर आप बकरी या भेड़ पालन करना चाहते हैं कि तो ऐसी नस्ल पालें जो पशुपालकों को लाभ दे सकें. इसी में एक ऐसी ही भेड़ की नस्ल है जो एक साथ तीन-चार बच्चे देती है और साल में छह से आठ बच्चे देती है. इस नस्ल की भेड़ की डिमांड करीब दस राज्यों में बहुत की जाती है. ये दूध, मांस और ऊन में अन्य भेड़ों की तुलना में ज्यादा बेहतर है. चलो हम आपको बता देते हैं कि इस ये अविसान नस्ल की भेड़ है, जिसकी बेहद मांग है.
भारत में भेड़ पालन सदियों से किया जा जा रहा है और अच्छी आय का साधन भी है. भेड़ों की तादात के मामले में भारत विश्व के छठे स्थान पर है. हमारे देश में करीब 4.50 करोड़ भेड़ों की संख्या है. भेड़ पालन से दूध, ऊन और मांस हासिल करके किसान अच्छी खासी आमदनी भी कर लेते हैं. इसके अलावा भेड़ का खाद भी खेतों के लिए महत्वपूर्ण होती है, जो कृषि उत्पादन को बढ़ावा देती है. भेड़ पालन करने वाले किसानों को भेड़ के दाना पानी पर भी बहुत ज्यादा खर्च करने की जरूरत नहीं होती है. ये ऐसी जगह चर लेते हैं जहां पर अन्य पशु नहीं जा पाते हैं. कई गैरजरूरी खरपतवार का भी इस्तेमाल भेड़ अपने खाने के तौर पर करती है.अब आपको हम उस नस्ल के बारे में बताने जा रहे हैं, जो अन्य भेड़ों की तुलना में बिल्कुल अलग है.
अविशान भेड़ में क्या है खास बात
भेड़ की गई नस्ल होती हैं. इसमें अविसान भी एक भेड़ की नस्ल है. इस नस्ल की भेड़ राजस्थान, पंजाब और हिमाचल प्रदेश में शुरू हो गया है. इस नस्ल की भेड़ को 16 साल की रिसर्च के बाद 2016 तैयार किया गया. अविसान ब्रीड की ये भेड़ लंबे पैरों वाली और बड़े आकार की होती है. इसका चेहरा हल्का गहरे भूरे रंग का होता है. इसकी पूंछ पतली है और मध्यम आकार की होती है. इस ब्रीड के नर और मादा के सींग नहीं होते. इस प्रजाति की भेड़ एक साथ तीन-चार बच्चे देती है. ये भेड़ एक साल में दो बार बच्चे देती है. पशुपालकों को इस नस्ल की भेड़ साल में छह से आठ बच्चे मिल सकते हैं. यही वजह है कि इस नस्ल की भेड़ पशुपालकों को आर्थिक तौर पर बहुत मजबूती प्रदान करती है.
अविसान दूध, मांस और ऊन में भी बेहतर
अविसान भेड़ एक साल में दो बार बच्चे देती है, जिनकी संख्या छह से आठ हो सकती है. दसरा इस भेड़ से अन्य भेड़ों की तुलना में 40 फीसदी अधिक ऊन मिलती है. मांस भी अन्य भेड़ों की अपेक्षा ज्यादा होता है. दूसरी भेड़ों की तुलना में 200 ग्राम ज्यादा देती हैं. यही वजह है कि विशेषज्ञ इस नस्ल की भेड़ पालने की सलाह देते हैं. बताया जाता है कि इस किस्म की भेड़ से होने वाले बच्चे जन्म के समय 3 किलो से ज्यादा के होते हैं जबकि 3 महीने में ये 16 किलोग्राम तो छह माह में 25 किलोग्राम तक पहुंच जाता है और जब एक साल का होता है तो इसका वजन 35 किलो तक हो जाता है. इस कारण पशुपालकों को इस बकरी के पालने से ज्यादा लाभ हैं. इन भेड़ों की ऊन बेहद उच्च क्वालिटी की होती है.
इन राज्यों में है बहुत डिमांड
अविसान नस्ल की भेड़ की डिमांड देश के कई राज्यों मे हैं. इन प्रदेशों में उत्तर प्रदेश, झारखंड, तेलंगाना, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक, और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं. ऐसे में अगर आप पशुपालन करना चाहते हैं तो अविशान नस्ल की भेड़ पालकर अधिक लाभ कमा सकते हैं.
दक्षिणी प्रदेश की भेड़
दक्षिणी प्रदेश के विंध्य पहाड़ों से ले कर नीलगीरी तक फैले हुए दक्षिणी प्रदेशों में भेड़ों का घनत्व उत्तर भारत के मैदानों की अपेक्षा अधिक है. आम तौर पर इस क्षेत्र की भेड़ों की ऊन मुख्य रूप से काले और भूरे रंग की होती है.तथा अच्छी किस्म की नहीं होती. मान्डया नस्ल की भेड़े मांस के लिए प्रसिद्ध है. इस क्षेत्र में पाई जाने वाली नस्ले इस प्रकार है. जिसमें दक्कनी, नेलोर, बेलरी, मान्डया मुख्य हैं.
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