नई दिल्ली. राजस्थान में थार रेगिस्तान के इलाके में जीवन यापना कना कठिन ही नहीं बल्कि बेहद चुनौतीपूर्ण भी है. यहां के लोगों का मुख्य व्ययवसाय पशुधन है. इस क्षेत्र में न तो शिक्षा है और न रोजगार, ऐसे में पशुपालन ही यहां का प्रमुख रोजगार है जो यहां के इन सीमावर्ती चारागाहों पर चलता है. यहां के यह चारागाह, ओरण और गोचर है लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में सरकारी ज़मीनों के नाम से दर्ज है जिन्हें सरकार बंजर एवं उपयोगहीन बताकर सोलर व विंड कंपनियों को आवंटित कर रही है. अगर इन ओरण,गोचर और चारागाह की जमीनों को विंड कंपनियों को दे दिया तो यहां के लाखों पशुओं के सामने चारे-पानी का संकट तो खड़ा हो ही जाएगी, लाखों लोगों के सामने जीवन यापन भी खतरे में पड़ जाएगा.
जैसलमेर के इन सीमावर्ती विशाल चारागाहों में सदियों से ऐसे सैकड़ों कुएं है, जिनके जल से आमजन का जीवन चलता है.पशुधन पलता है. पशुपालन के लिए ही स्थानीय लोगों ने अपने चारागाहों (ओरण- गोचर) में यह कुएं बनाएं, जिससे उन्हें व उनके पशुधन को पानी मिल सके. इस क्षेत्र लाखों पशुओं के लिए सैकड़ों की संख्या पर कुएं हैं, जो आज से नहीं सैकड़ों सालों से बने हैं. इन सभी कुंओं पर अच्छी-खासी संख्या में पशु पानी पीते हैं. पशुओं के अलावा लोग भी इन्हीं कुंओं से पानी पीकर अपना जीवन यापन करते हैं. अगर सरकार ने इन चारागाह, गोचर और ओरण की जमीन को विंड कंपनियों को दे दिया तो मानव जाति के अलावा पशुओं के लिए भी बड़ा संकट पैदा हो जाएगा.
सरकार को मानवीय पहलू को सामने रखकर भी सोचना होगा
ओरण टीम जैसलमेर राजस्थान के संस्थापक सुमेर सिंह संवाता ने बताया कि रेगिस्तान, धार के इलाके में पानी की बहुत समस्या है. सैकड़ों सालों से बने इन कुंओं से ही पानी निकालकर लोग और पशु पानी पीते हैं. अगर इन जमीनों पर सरकार ने सोलर या विंड कंपनियों का अधिगृहण करा दिया तो पानी का संकट पैदा हो जाएगा. जब कंपनियां भूमि अधिगृहण कर लेंगी तो पशु और लोगों को यहां आने की अनुमति नहीं मिलेगी, जब अनुमति नहीं मिलगी तो पानी के लिए लोगों को भटकना पड़ेगा. जब सरकार इन ओरण को ही समाप्त कर देगी तो ये पशु कहां चरने के लिए जाएंगे. जब पशु नहीं बचेगा तो लोगों की अजीविका कैसे चलेगी. इसलिए जैसलमेर और धार की सीमावर्ती लोग किसी भी कीमत पर इन जमीनों का अधिगृहण नहीं करने देंगे. हमारी सरकार से भी मांग है कि सिर्फ व्यवसायिक नजरिये से ही नहीं मानवता के नजरिये भी सोचे. हमारी राजस्थान सरकार मांग है कि इस क्षेत्र में पानी के लिए कुछ कराया जाए.
ये हैं कालरां कुएं, जिन पर पशु और लोग दोनों पानी पीते हैं
—गाय-कालरां कुएं पर 1000-1500 पालतू गाय हैं और 700-800 आवारा गाय-बैल हैं.
—भेड़-बकरी- कालरां कुएं पर 40,000-50,000 हजार भेड़-बकरी हैं.
—ऊंट-कालरां कुएं पर 100- 150 पालतू ऊंट हैं और 100-150 आवारा ऊंट हैं.
—गधे-कालरां कुएं पर 70-80 पालतू गधे हैं और 70- 80 आवार गधे हैं.
—पेड़-पौधें-कालरां कुएं पर कैर- खेजड़ी-बोरडी-जाल-कुमत-रोहिड़ा व देशी बबूल के असंख्य पेड़-पौधें हैं. झाड़ी – कालरां कुएं पर फोग व खिंप की हज़ारों – लाखों झाड़ियां है.
—घास- कालरां कुएं पर सेवण- सिणीया-बुई-लाणा-लम्प- मोडीसी-गंठिया -भूरट-बेकर-घामण समेत अनेकों प्रकार की घास (चारा) बहुतायत में है.
—वन्यजीव, हिरण, खरगोश, जंगली बिल्ली, भेड़िया, गीदड़,सेह, बीजू, गोडावण, तिलोर, चील, तीतर, पाटेबडी सहित कई जीव जंतु हैं.
—दूध-कालरां कुएं पर मौसम के अनुसार 1-2 किविंटल से 5-6 क्विंटल तक दूध प्रति दिन बिक जाता है, जिसमें भेड़-बकरी एवं गाय का दूध शामिल है.
—घी-कालरां कुएं के कुछ लोग दूध नहीं बेच कर घी बना कर बेचते हैं.
—ऊन-कालरां कुएं पर साल में दो बार भेड़-बकरी व ऊंट की ऊन बेची जाती है.
—मांस-कालरां कुएं पर सालाना 15000-20000 हजार भेड़-बकरियां मांस के लिए बिकने भारत की बड़ी-बड़ी मंडियों में जाती हैं.
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