नई दिल्ली. ये बात बिल्कुल सच है कि पशुओं के लिए हरा चारा बहुत ही महत्वपूर्ण सोर्स होता है. अगर हरा चारा पशुओं को न मिले तो कई तरह की दिक्कतें भी हो सकती हैं. इसका असर उत्पादन पर भी पड़ता है. जबकि गर्मियों में हरे चारे की समस्या पूरे देश में होती है. खासतौर पर उन इलाकों में जहां पर बारिश बहुत कम होती है. अगर आप पशुपालक हैं तो आपको ये भी पता होनी चाहिए कि पशुओं को हरा चारा खिलाते समय कुछ सावधानियां भी बरतनी होती है. अगर ऐसा न किया जाए तो पशुओं को हरे चारे से दिक्कतें भी हो सकती हैं.
पशुपालन लोगों के लिए फायदेमंद हो, इसको लेकर काम करने वाले तमाम एक्सपर्ट कहते हैं कि हरा चारा पशुओं को खिलाने में कुछ सावधानियां रखनी चाहिए. दलहनी हरा चारा जैसे ग्वार, चंवला, रिजका आदि अकेले ही पशुओं को नहीं खिलाना चाहिए. इनको सूखे जबकि चारे के साथ मिलाकर खिलाना चाहिए. ऐसा करने से पशुओं को अफरा की समस्या से बचाया जा सकता है. बताते चलें कि अफारा, टिम्पनाइटिस, ब्लोट रूमिनल टिम्पनी चारा खा लेने की वजह से होता है. इसके चलते पशुओं का पेट फूलने लग जाता है और उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
मौत का कारण बन सकता है
एक्सपर्ट के मुताबिक अकेले दलहनी हरा चारा खिलाने पर पशुओं के पेट में आफरा आने से पशुओं की भी हो सकती है. इस प्रकार ज्वार की फसल को 40 दिन पहले पशुओं को नहीं खिलाना चाहिए. बेहतर तो यही है कि जब फसल में सिट्टे आने लगे तभी काट कर हरे चारे के लिए खिलाना चाहिए. इस अवधि से पहले खिलाने पर इसमें एचसीएन नामक जहरीला तत्व अधिक मात्रा में होता है. जिससे पशु की मृत्यु भी हो सकती है.
दवा का छिड़काव हुआ है तो न दें चारा
एनिमल एक्सपर्ट कहते हैं कि जब कभी भी हरे चारे के लिए जो भी फसल काट कर पशुओं को खिलाई जा रही है, उस पर काटने से पहले 15 दिन तक किसी भी दवा का छिड़काव किया जाना चाहिए. अगर फसल पर किसी कीड़े, बीमारी या खरपतवार नियंत्रण करने के लिए कोई दवा का छिड़काव करना मजबूरी हो तो पशुपालक भाई ये कर सकते हैं कि उसके 15 दिन बाद ही फसल को हरे चारे के लिए काटना चाहिए. कभी भी दवा के छिड़काव वाले चारे को पशुओं को नहीं देना चाहिए.
हरे चारे के तौर पर बोएं ये फसलें
देश के सबसे सूखे इलाके राजस्थान में हरे चारे के लिए मुख्यतया उगाई जाने वाली फसलें हैं बाजरा, ज्वार, मक्का, चंवला, ग्वार, जई, रिजका, बरसीम, जौ आदि है. हरे चारे के लिए इन फसलों को उगा कर फूल आने के बाद, पकने से पहले, काट कर हरेपन की स्थिति में पशुओं को कुट्टी काट कर या सीधे ही खिलाया जाता है. वर्ष भर हरा चारा उत्पादन के लिए इन फसलों की बुवाई का समय खरीफ ऋतु में जुलाई-अगस्त, रबी में अक्टूबर-नवम्बर व गर्मियों में मार्च-अप्रैल होती है. हरे चारे में ज्वार, बाजरा व मक्का के हरे चारे के साथ दलहनी फसलें जैसे चंवला या ग्वार का हरा चारा भी मिलाकर पशुओं को खिलाना चाहिए. इससे पशुओं को संतुलित पोषण मिलता है.
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